कश्मीर में सरकारी प्रतिबंध घोट रहे मीडिया का गला, प्रेस काउंसिल की रिपोर्ट में कहा गया- छह साल में 49 पत्रकार गिरफ्तार, 8 पर लगा UAPA
By विशाल कुमार | Published: March 14, 2022 08:05 AM2022-03-14T08:05:13+5:302022-03-14T08:11:37+5:30
भारतीय प्रेस परिषद की एक फैक्ट फाइंडिंग समिति की स्थापना सितंबर, 2021 में तत्कालीन पीसीआई अध्यक्ष जस्टिस (सेवानिवृत्त) सीके प्रसाद ने जम्मू कश्मीर में मीडिया की स्थिति को देखने के लिए की थी। पीडीपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने इसके लिए परिषद को पत्र लिखा था।
श्रीनगर: भारतीय प्रेस परिषद (पीसीआई) की एक फैक्ट फाइंडिंग समिति (एफएफसी) ने पाया है कि जम्मू कश्मीर क्षेत्र में और विशेष रूप से घाटी में समाचार मीडिया को धीरे-धीरे मुख्य रूप से स्थानीय प्रशासन द्वारा लगाए गए व्यापक प्रतिबंधों के कारण दबाया जा रहा है।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले सप्ताह पेश की गई अपनी रिपोर्ट में समिति ने कहा कि आतंकवादियों द्वारा हिंसा का भी खतरा है जो हतोत्साहित करता है।
बता दें कि, एफएफसी की स्थापना सितंबर, 2021 में तत्कालीन पीसीआई अध्यक्ष जस्टिस (सेवानिवृत्त) सीके प्रसाद ने जम्मू कश्मीर में मीडिया की स्थिति को देखने के लिए की थी। पीडीपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने इसके लिए परिषद को पत्र लिखा था।
रिपोर्ट में कहा गया कि व्यक्तिगत रूप से प्रताड़ित किए गए पत्रकारों की एक लंबी सूची है। इसका उद्देश्य सरकारी लाइन का पालन करने के लिए भय और धमकी पैदा करना है।
रिपोर्ट के अनुसार, स्थानीय सरकार के प्रशासन और पत्रकारों के बीच संचार की सामान्य लाइनें सरकार के इस संदेह के कारण बाधित हो गई हैं कि बड़ी संख्या में स्थानीय पत्रकार आतंकवादियों के प्रति सहानुभूति रखते हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने एफएफसी से साफ रूप से कहा है कि कई पत्रकार राष्ट्र विरोधी प्रवृत्ति के थे।
उन्होंने (सिन्हा) स्वीकार किया कि जब उन्हें पहली बार नियुक्त किया गया था, तो वे खुले प्रेस कॉन्फ्रेंस को प्रोत्साहित करते थे, लेकिन अब पसंदीदा पत्रकारों के साथ ही सूचनाएं साझा करते हैं।
पुलिस ने एफएफसी से स्वीकार किया कि 2016 से अब तक 49 पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया है और उन पर आरोप लगाए गए हैं। यह इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है कि जम्मू कश्मीर में बहुत कम मीडिया हैं, यह एक छोटी संख्या नहीं है।
इनमें से 8 को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार किया गया है, जिससे जमानत लगभग असंभव हो जाती है। पुलिस का मामला है कि कई पत्रकार 'राष्ट्र-विरोधी' गतिविधियों में लिप्त हैं।
रिपोर्ट में पत्रकारों को सभी तरह के सामान्य कामकाज सुचारू रूप से करने देने को बहाल करने की मांग की गई है।