जम्मू-कश्मीर के आतंकवाद की कीमत: 52 हजार मौतें, डेढ़ लाख हमले
By सुरेश डुग्गर | Published: August 20, 2018 08:48 PM2018-08-20T20:48:05+5:302018-08-20T20:48:05+5:30
आंकड़े कहते हैं कि 30 साल का अरसा 6500 सुरक्षाकर्मियों को लील गया। अर्थात अगर 4 आतंकी मारे गए तो उनके बदले में एक सुरक्षाकर्मी की जान कश्मीर में अवश्य गई है।
श्रीनगर, 20 अगस्त: कश्मीर में फैले आतंकवाद की कीमत है 52 हजार लाशें। यह आधिकारिक कीमत है। बकौल गैर सरकारी कीमत के डेढ़ लाख लाशें। इनमें सभी की लाशें शामिल हैं। आतंकवाद मरने वालों में मतभेद नहीं करता। नतीजतन डेढ़ लाख हमलों को सहन करने वाली कश्मीर घाटी इन 30 सालों में एक लाख से अधिक लोगों का लहू बहता देख चुकी है।
अगर आधिकारिक आंकड़ों को ही लें तो मरने वाले 52 हजार लोगों में से जितने आतंकी मारे गए हैं उनमें से कुछेक ही कम आम नागरिक भी थे तो मरने वालों में सबसे अधिक वे ही मुसलमान मारे गए हैं जिन्होंने जेहाद की खातिर कश्मीर में आतंकवाद को छेड़ रखा है।
बकौल आधिकारिक आंकड़ों के, इस महीने की 18 तारीख तक कश्मीर में 30 सालों का अंतराल 52234 लोगों को लील गया। इनमें 24000 आतंकी भी शामिल हैं जिन्हें विभिन्न मुठभेड़ों में सुरक्षाबलों ने इसलिए मार गिराया क्योंकि उन्होंने उन्हें मजबूर किया कि वे उनकी जानें लें। हालांकि इन मरने वाले आतंकियों में से एक अच्छी खासी संख्या सीमाओं पर ही मारी गई। उस समय जब उन्होंने पाक कब्जे वाले कश्मीर से भारतीय क्षेत्र में घुसने की कोशिश की।
कश्मीर में फैले आतंकवाद का एक रोचक तथ्य। कश्मीर में तथाकथित जेहाद और आजादी की लड़ाई को आरंभ करने वाले थे कश्मीरी नागरिक और बाद में जो मुठभेड़ो में मरने लगे वे हैं पाकिस्तानी और अफगानी नागरिक। पाकिस्तानी तथा अफगानी नागरिक इसलिए मरने लगे क्योंकि वे कश्मीर के आतंकवाद को आगे बढ़ाने का ठेका लेकर आए हुए हैं। फिलहाल मारे गए 24 हजार आतंकियों में 13000 विदेशी आतंकियों का आंकड़ा भी शामिल है।
ऐसा भी नहीं है कि बिना कोई कीमत चुकाए सुरक्षाबलों ने इन आतंकियों को ढेर कर दिया हो बल्कि आतंकियों को मुठभेड़ों में मार गिराने की कीमत भी सुरक्षाबलों को चुकानी पड़ी है। कभी यह कीमत आत्मघाती हमलों के रूप में तो कभी सीमाओं पर आतंकियों के साथ जूझते हुए। आंकड़े कहते हैं कि 30 साल का अरसा 6500 सुरक्षाकर्मियों को लील गया। अर्थात अगर 4 आतंकी मारे गए तो उनके बदले में एक सुरक्षाकर्मी की जान कश्मीर में अवश्य गई है।
यहीं पर मौत का चक्र रूका नहीं। मौत का आंकड़ा दिनोंदिन अपनी रफ्तार को तेज करता गया था। परिणामस्वरूप आतंकियों के साथ-साथ नागरिक भी आतंकियों की गोलियों का शिकार हुए। जिन कश्मीरी नागरिकों को कभी ’आजादी‘ दिलाने तथा ’भारतीय उपनिवेशवाद से मुक्ति‘ दिलवाने की बात आतंकवादियों ने की थी उन्हें नहीं मालूम था कि एक दिन वे उन्हें जिन्दगी से ही मुक्ति दिलवा देंगें।
हुआ वही जो आतंकवाद में होता आया है। मारे गए लोगों में जहां प्रथम स्थान पर आतंकियों का आंकड़ा था तो दूसरे स्थान पर आम नागरिकों का। दोनों में थोड़ा सा ही अंतर था। कुल 15506 नागरिक इन 30 सालों में मौत के ग्रास बन गए।
ऐसा भी नहीं है कि जेहाद छेड़ने वाले मुस्लिम आतंकियों ने सिर्फ हिन्दुओं या फिर सिखों को मौत के घाट उतारा हो इस अरसे के भीतर। बल्कि चौंकाने वाली बात यह है कि मारे गए 15506 नागरिकों में 12 हजार से अधिक की संख्या उन मुस्लमानों की है जिन्हें ‘आजादी’ दिलवाने की बात आज भी आतंकी करते हैं। शायद उनकी आजादी के मायने यही रहे होंगें।