छायावाद युग का साहित्य सामाजिक सांस्कृतिक और औपनिवेशिक दासता से मुक्ति का साहित्य है: प्रो चंद्रदेव यादव
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: December 8, 2022 01:07 PM2022-12-08T13:07:06+5:302022-12-08T13:08:09+5:30
जामिया मिल्लिया इस्लामिया के हिन्दी विभाग के अनुसंधान परिषद द्वारा हर महीने के पहले सप्ताह में शोध-पत्र वाचन संगोष्ठी आयोजित की जाती है। छह दिसम्बर को आयोजित संगोष्ठी में प्रोफेसर चंद्रदेव यादव और शोधार्थी नितिन नारंग ने अपने शोधपत्र प्रस्तुत किए।
नई दिल्ली: मंगलवार (छह दिसम्बर) को जामिया मिल्लिया इस्लामिया के हिन्दी विभाग के अनुसंधान परिषद ने शोध पत्र संगोष्ठी का आयोजन किया। संगोष्ठी में दो शोध पत्रों का वाचन किया गया।
हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर चन्द्रदेव यादव ने 'छायावादी कविता : आह्वान और मुक्ति का स्वर' विषय पर अपने शोध-पत्र को पस्तुत किया। अपने शोधपत्र में प्रोफेसर यादव ने कहा कि वास्तव में छायावाद युग का साहित्य सामाजिक सांस्कृतिक और औपनिवेशिक दासता से मुक्ति का साहित्य है।
प्रोफेसर यादव ने स्थापना दी कि "सामाजिक-सांस्कृतिक विसंगतियों और ब्रिटिश शासन से मुक्ति की चाह छायावाद का केन्द्रीय भाव है। उनकी वैयक्तिक स्वतंत्रता सामाजिक-सांस्कृतिक रूढ़ियों से मुक्ति के लिए ही थी। इन सभी मामलों में मुक्ति के लिए जितनी छटपटाहट छायावादी कवि-लेखकों में दिखाई देती है, उतनी विकलता नवजागरणकालीन दूसरे कवि-लेखकों में कम ही देखने को मिलती है। यद्यपि 1857 से लेकर 1947 तक के दौर में अनेक रचनाकारों ने सामाजिक सांस्कृतिक और राष्ट्रीय समस्याओं को लेकर मुक्ति के गीत गाए, किन्तु मुक्ति का तीक्ष्ण स्वर छायावादी कवि लेखकों में सर्वाधिक है।"
संगोष्ठी में दूसरा शोधपत्र शोधार्थी नितिन नारंग ने प्रस्तुत किया। नारंग के शोधपत्र का विषय था, 'साहित्य के विवेचन में मनोविज्ञान की भूमिका' जिसमें उन्होंने मनोविज्ञान के अग्रणी अध्येताओं के विचारों के आलोक में साहित्य आलोचना में उनकी उपयोगिता पर चर्चा की। नितिन नारंग ने साहित्य के मनोविज्ञान को संकीर्ण सोच से विराट फलक पर ले जाने पर जोर दिया एवं उसे विहंगावलोकन के बजाय परत दर परत विवेचन की बात कही।
प्रोफेसर नीरज कुमार ने संगोष्ठी में लेखों पर विचारगर्भित टिप्पणी दी एवं विभाग के अन्य प्रोफेसरों ने अपने विचार प्रस्तुत किये। शोधपत्रों की प्रस्तुति के बाद सभा में उपस्थित शोधार्थियों ने अपने प्रश्न रखे जिसका समुचित उत्तर वक्ताओं ने दिया।
जामिया मिल्लिया इस्लामिया के इस अनुसंधान परिषद का गठन शोधछात्रों में शोधवृत्ति को बढ़ावा देने के उद्देश्य से किया गया था। अनुसंधान परिषद प्रत्येक माह के पहले हफ्ते में एक शोध-संगोष्ठी का आयोजन करता है जिसमें आमंत्रित विद्वान अपना शोधपत्र प्रस्तुत करते हैं।
इस संगोष्ठी का संचालन एवं संयोजन अनुसंधान परिषद के संयोजक प्रोफेसर दिलीप शाक्य, सचिव गोविन्द वर्मा और उपसचिव श्वेता वर्मा ने किया था।