चंद्रयान 2: इसरो ने धरती की तस्वीरों का पहला सेट जारी किया
By भाषा | Published: August 5, 2019 06:56 AM2019-08-05T06:56:39+5:302019-08-05T06:56:39+5:30
वैसे चंद्रयान-2 के प्रक्षेपण के बाद कई ऐसी तस्वीरें आयी थीं जिनके बारे में दावा किया गया था कि उन्हें चंद्रयान-2 ने खींचा है, लेकिन इसरो ने कहा था कि ये तस्वीरें चंद्रयान-2 ने नहीं खींचीं। भारत ने अपने सबसे शक्तिशाली रॉकेट के माध्यम से चंद्रयान-2 मिशन को 22 जुलाई को प्रक्षेपित किया था।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने रविवार को ‘चंद्रयान 2’ से ली गई पृथ्वी की तस्वीरों का पहला सेट जारी किया। इसरो के प्रमुख के सिवन ने कहा कि चंद्रयान 2 के लैंडर पर लगे कैमरे से ये तस्वीरें ली गयी हैं। उन्होंने पीटीआई भाषा से कहा कि इन तस्वीरों से संकेत मिलता है कि यह मिशन अच्छी स्थिति में है। ये तस्वीरें शनिवार को ली गयीं।
इसरो के एक अधिकारी ने बताया कि चंद्रयान 2 पर लगे एल 14 कैमरे ने ये तस्वीरें लीं जिनमें दक्षिण अमेरिका और प्रशांत महासागर के हिस्से नजर आते हैं। इसरो ने पांच तस्वीरों के एक सेट के साथ एक ट्वीट में कहा, ‘‘चंद्रयान 2 के एल14 कैमरे से तीन अगस्त, 2019 को भारतीय समयानुसार रात ग्यारह बजकर चार मिनट पर (17:34 UT) देखी गयी धरती।’’
वैसे चंद्रयान-2 के प्रक्षेपण के बाद कई ऐसी तस्वीरें आयी थीं जिनके बारे में दावा किया गया था कि उन्हें चंद्रयान-2 ने खींचा है, लेकिन इसरो ने कहा था कि ये तस्वीरें चंद्रयान-2 ने नहीं खींचीं। भारत ने अपने सबसे शक्तिशाली रॉकेट के माध्यम से चंद्रयान-2 मिशन को 22 जुलाई को प्रक्षेपित किया था।
योजना के मुताबिक चंद्रयान-2 सात सितंबर को रोवर को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतारेगा जिसका अब तक कोई अध्ययन नहीं हो पाया है। इसरो ने 11 साल पहले ‘‘चंद्रयान 1’’ को रवाना किया था जिसने चंद्रमा की 3400 से अधिक बार परिक्रमा कर एक इतिहास रचा। इसका कार्यकाल 312 दिन का था और यह 29 अगस्त, 2009 तक कार्यरत रहा था।
चंद्रयान 2 में आर्बिटर, लैंडर और रोवर लगाए गए हैं और इसके सितम्बर के पहले सप्ताह में चांद पर उतरने की उम्मीद है। वैज्ञानिक चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर इसकी ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ कराएंगे। इस इलाके में अब तक कोई देश पहुंच नहीं सका है। यदि सबकुछ ठीक रहता है तो चीन, रूस और अमेरिका के बाद भारत ऐसा चौथा देश होगा जो चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग के जरिए रोवर उतारेगा। चंद्रयान-2 को इसरो का सबसे जटिल और प्रतिष्ठित मिशन माना जा रहा है।