इन 9 आंदोलनों ने भारत को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी...
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: June 6, 2022 03:33 PM2022-06-06T15:33:45+5:302022-06-06T15:36:13+5:30
अंग्रेजों के औपनिवेशिक शासन से भारत को 1947 में मिली आजादी दिलाने में सालों के संघर्ष के दौरान आंदोलनों की बड़ी और महत्वपूर्ण भूमिका थी। आज हम आपको ऐसे ही 9 आंदोलन के बारे में बताएंगे।
नई दिल्ली: अंग्रेजों के औपनिवेशिक शासन से भारत को 1947 में मिली आजादी दिलाने में सालों के संघर्ष के दौरान आंदोलनों की बड़ी और महत्वपूर्ण भूमिका थी। आज हम आपको ऐसे ही 9 आंदोलन के बारे में बताएंगे।
1857 का विद्रोह:
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ पहला संगठित आंदोलन 1857 में हुआ था जिसका नेतृत्व अंग्रेज सरकार में सिपाही रहे मंगल पांडे ने किया था। इस आंदोलन में नाना साहब, तात्या टोपे और रानी लक्ष्मीबाई भी बाद में शामिल हो गई थीं।
बंगाल विभाजन:
दूसरा आंदोलन भारत के वायसराय लॉर्ड कर्जन द्वारा अक्टूबर, 1905 में संयुक्त बंगाल के विभाजन की घोषणा के बाद हुआ था। बड़े पैमान पर विरोध के बाद 1911 में बंगाल को एक बार फिर एक कर दिया गया जो कि 1947 में दोबारा बंट गया।
जलियांवाला बाग नरसंहार:
पंजाब के अमृतसर स्थित जलियांवाला बाग 13 अप्रैल 1919 को अंग्रेजों की दमनकारी नीति, रोलेट एक्ट और सत्यपाल व सैफुद्दीन की गिरफ्तारी के खिलाफ आयोजित सभा में अंग्रेज जनरल डायर ने गोलियां चलवा दी थीं जिसमें 1000 से अधिक लोग शहीद हुए थे। इस नरसंहार ने जहां शहीद भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी को जन्म दिया तो वहीं रबींद्रनाथ टैगोर ने नाइटहुड की उपाधि लौटा दी थी।
खिलाफत आंदोलन:
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान तुर्की से तुर्क साम्राज्य को बेदखल करने और खलीफा को सत्ता से हटाने से मुस्लिम नाराज हो गए थे। इसके बाद शौकत अली और मोहम्मद अली ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ खिलाफत आंदोलन को शुरू कर दिया। वर्ष 1919 से 1924 के मध्य यह आंदोलन हुआ था। बाद में कांग्रेस ने अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ लड़ाई के लिए मुस्लिम लीग के साथ हाथ मिला लिया था जिसके बाद यह आंदोलन राजनीतिक बन गया था।
असहयोग आंदोलन:
अंग्रेजों की बढ़ती ज्यादतियों का विरोध करने के लिए महात्मा गांधी ने 1920 में 1 अगस्त को असहयोग आंदोलन का आगाज किया था। आंदोलन के दौरान विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में जाना छोड़ दिया था। विभिन्न पेशों के लोगों ने बहिष्कार कर दिया था। हालांकि, फरवरी, 1922 में चौरी-चौरा कांड होने के बाद आंदोलनकारियों की हिंसा का विरोध करते हुए गांधीजी ने आंदोलन वापस ले लिया था।
दिल्ली केंद्रीय असेंबली विस्फोट:
साल 1929 में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने अंग्रेजी हुकुमत तक अपनी आवाज पहुंचाने और दुनिया को दिखाने के लिए दिल्ली केंद्रीय असेंबली में दो बम फेंके थे जिससे कोई घायल नहीं हुआ था।
उन्होंने असेंबली में पर्चे फेंक कर लागातार आजादी के नारे लगाते रहे और अपनी गिरफ्तारी दी थी।
सविनय अवज्ञा आंदोलन:
सविनय अवज्ञा आंदोलन मार्च 12 मार्च 1930 से 6 अप्रैल 1930 तक ब्रिटिश नमक एकाधिकार के खिलाफ कर प्रतिरोध और अहिंसक विरोध के प्रत्यक्ष कार्रवाई अभियान के रूप में चला। दांडी पहुंचकर गांधीजी ने नमक कानून को तोड़ दिया था।
आजाद हिंद फौज का गठन:
नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1942 में आजाद हिंद फौज बनाकर अंग्रेजी हुकुमत को चुनौती दी थी। हालांकि, संसाधन और सहयोग नहीं मिलने के कारण आंदोलन असफल रह गया था।
भारत छोड़ो आंदोलन:
अगस्त, 1942 में महात्मा गांधी ने अंग्रेजों को भारत छोड़ने की चेतावनी दी थी। अगस्त क्रांति के नाम से जाने जाने वाले इस आंदोलन का अंग्रेजों की ताबूत में आखिरी कील माना जाता है।