16 दिसंबर, 2012 दिल्ली गैंगरेप का मामला: जानिए इन 7 सालों में दिल्ली में क्या बदला और क्या नहीं
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: December 16, 2019 08:14 AM2019-12-16T08:14:23+5:302019-12-16T08:14:23+5:30
दिल्ली की सड़कें कई दिनों तक आंदोलनाकरियों की वजह से थमी रही। देश के दूसरे हिस्सों में भी लोगों ने अपने घर से बाहर आकर महिलाओं की सुरक्षा को लेकर अपने आवाज को बुलंद किया। तब सत्ता में बैठे लोगों और अधिकारियों ने बेहतर और सुरक्षित सार्वजनिक परिवहन, महिलाओं के लिए सुरक्षित माहौल देने का वायदा किया।
सात साल पहले, दिसंबर की उस भयावह रात को बीते सात साल हो चुके हैं, जब 23 वर्षीय पैरामेडिकल छात्रा के साथ चलती बस में सामूहिक बलात्कार करने के बाद उसे दक्षिणी दिल्ली के एक इलाके में चलती बस से बाहर फेंक दिया गया था। 16 दिसंबर की रात की घटना के बाद पूरे देश में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर आंदोलन हुआ।
दिल्ली की सड़कें कई दिनों तक आंदोलनाकरियों की वजह से थमी रही। देश के दूसरे हिस्सों में भी लोगों ने अपने घर से बाहर आकर महिलाओं की सुरक्षा को लेकर अपने आवाज को बुलंद किया। तब सत्ता में बैठे लोगों और अधिकारियों ने बेहतर और सुरक्षित सार्वजनिक परिवहन, महिलाओं के लिए सुरक्षित माहौल देने का वायदा किया।इस घटना ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों से संबंधित राष्ट्रव्यापी विरोध और कानूनों में बदलाव को गति दी।
इस मामले ने पुलिस, प्रशासन और महिलाओं के लिए शहर को सुरक्षित बनाने वाले पहलुओं के मामले में कई दोषों को भी उजागर किया।
सत्ताधीशों ने इस तरह की घटना ना हो इस बात को सुनिश्चित करने के लिए दिल्ली की सड़कों पर लाइटें, मामले के शीघ्र निपटारे के लिए फास्ट-ट्रैक कोर्ट स्थापित करने और पुलिस बल को मजबूत करने सहित कई उपायों का वादा किया था। एचटी की खबर के मुताबिक, आइये जानने की कोशिश करते हैं कि इस घटना के सात साल बाद सरकार ने अपने वायदे को कितना पूरा किया और क्या किया जाना बाकी है।
क्या बदलाव आया है-
सीसीटीवी
राजधानी में महिला सुरक्षा को लेकर निगरानी के लिए पिछले सात वर्षों में तकनीकी रूप से विकास हुई है। दिल्ली सरकार की दो चरणों में 2.8 लाख सीसीटीवी लगाने की परियोजना पटरी पर है। पहला चरण, जिसमें 1.4 लाख कैमरे लगाए जाने थे, लगभग खत्म हो चुके हैं। इस महत्वाकांक्षी परियोजना के तहत हर विधानसभा क्षेत्र में 4,000 सीसीटीवी लगाए जाएंगे।
सरकार द्वारा लगाए गए कैमरे के उच्च-रिज़ॉल्यूशन लाइव फ़ीड प्रदान करते हैं। हर चार कैमरों के लिए, NVR (नेटवर्क वीडियो रिकॉर्डर), वाई-फाई राउटर, घंटे भर की पावर बैकअप के लिए UPS और कैमरों का पता लगाने और नेटवर्क कनेक्टिविटी के लिए एक सिम कार्ड के साथ एक उपयोगिता बॉक्स है। सार्वजनिक निर्माण विभाग के मुख्यालय में इसके लिए एक नियंत्रण कक्ष निर्माणाधीन है। दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस ने कहा है कि ऐसे सीसीटीवी कैमरे लगाने से अपराध कम होंगे।
सार्वजनिक वाहनों में मार्शल-
16 दिसंबर की घटना के बाद वाहनों में महिलाओं की सुरक्षा एक बड़ी चिंता बन गई थी। अधिकारियों ने वादा किया था कि राज्य की बसों में मार्शल तैनात किए जाएंगे। हालांकि, दिल्ली सरकार ने इसी साल अक्टूबर में अपनी सभी बसों में महिलाओं के लिए मुफ्त बस सवारी शुरू की तो यह पहली बार था, जब इन बसों में मार्शल (पुरुष और महिलाएं) नागरिक सुरक्षा के लिए तैनात किए गए। वर्तमान में, 12,895 मार्शल दिल्ली शहर के 5,558 बसों में तैनात हैं। अधिकांश महिला यात्रियों ने कहा कि उन्होंने विशेष रूप से शाम को बस लेते समय सुरक्षित महसूस किया है। रोहिणी में रहने वाली सुधा सिक्का ने कहा, "बस पर आजकल अधिक सुरक्षित महसूस करती हूं, हममें से कई लोग यह भी महसूस करते हैं कि अनचाही स्थिति का सामना करने में सक्षम होने के लिए मार्शलों को किसी तरह का हथियार दिया जाना चाहिए।"
सेंटर फॉर सोशल रिसर्च (CSR) की निदेशक रंजना कुमारी ने कहा, “मार्शलों की उपस्थिति एक ऐसा कदम है जिसने निश्चित रूप से महिलाओं को बस में सुरक्षित महसूस कराया है। हालांकि, यह देखा जाना चाहिए कि क्या ये उपाय अच्छी तरह से और पूरे तरीके से लागू किए गए हैं। ”
मेट्रो में यात्रा करने वाली कई महिलाओं ने कहा कि दिल्ली में मेट्रो को अपनी फीडर बस सेवा की ताकत बढ़ानी चाहिए। दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्रा देवांशी राज ने कहा, '' बस मुट्ठी भर बसें हैं, जो पीक आवर्स के दौरान भर जाती हैं। यह सार्वजनिक परिवहन का एक विश्वसनीय रूप है, लेकिन बहुत सीमित है। ”
घटनाओं की संख्या में नहीं आई कमी, लेकिन महिलाएं हुई सशक्त-
2011 में, राष्ट्रीय राजधानी में बलात्कार के 572 मामले दर्ज किए गए। तब से आज तक रिपोर्ट किए गए मामलों की संख्या में लगभग चार गुना बढ़ गई है। पिछले साल शहर में 2,135 बलात्कार के मामले सामने आए थे। इससे साफ होता है कि बलात्कार के मामलों की संख्या केवल बढ़ी है। हालांकि, दिल्ली पुलिस ने दावा किया है कि ऐसा केवल इसलिए हुआ है क्योंकि अधिक महिलाएं घर से बाहर आने लगी हैं और घटनाओं की रिपोर्ट करने के लिए वह पहले से अधिक सशक्त महसूस करती हैं। 2012 के बाद से पुलिस कर्मियों के पास जाने और रिपोर्ट लिखाने में महिलाएं अब घबराती नहीं है। यही वजह है कि अब और अधिक महिलाएं पुलिस स्टेशन जाकर इस तरह की घटना के विरोध में रिपोर्ट लिखाती है।
तीन चीजें जो नहीं बदली-
पुलिस सिस्टम-
महिलाओं के प्रति अपराधों के लिए दिल्ली एक बदनाम शहर है। पिछले सालों की तुलना में कथित बलात्कार के मामलों में चार गुना वृद्धि हुई है। पुलिस बल में नए लोगों की नियुक्ती हुई है। 2011 में, शहर की पुलिस में लगभग 67,000 कर्मचारी थे। और दिल्ली पुलिस बल की वर्तमान ताकत लगभग 80,000 है। केवल 9,793 महिला अधिकारी हैं, जिनमें से बलात्कार के मामलों की जांच के लिए महिला उप-निरीक्षकों की संख्या केवल 928 है।
फास्ट-ट्रैक कोर्ट
दिल्ली में फास्ट-ट्रैक अदालतें अभी भी बस नाम मात्र की हैं। इस वर्ष केवल 18 स्थायी फास्ट-कोर्ट के लिए दिल्ली सरकार ने मंजूरी दी थी। वकील सुमित चंदर, जिन्होंने इस मुद्दे पर याचिका दायर की थी, उन्होंने कहा, "सरकार ने केवल एक मंजूरी दी है। अभी कर्मचारियों की नियुक्तियां प्रक्रिया में हैं। फास्ट-ट्रैक अदालतों को शुरू करने में समय लगताहै क्योंकि ऐसी किसी भी अदालत के लिए कार्यात्मक, स्थायी न्यायाधीश और अन्य अदालत के कर्मचारियों की आवश्यकता होती है। "
स्ट्रीटलाइट और ब्लाइंड स्पॉट
दिल्ली पुलिस ने पिछले साल शहर भर में 187 जगहों की पहचान की थी,जो महिला सुरक्षा के ख्याल से खतरनाक थे। यहां लाइटें लगाने आदि के लिए सभी सड़क के ठेकेदार और नागरिक एजेंसियों को प्रशासन ने पत्र भेजा था। हालांकि, ऐसे खतरनाक क्षेत्रों की संख्या घटने के बजाय और बढ़ी हैं, ऐसा एक अधिकारी का कहना है।