हैदरपोरा मुठभेड़ : आमिर के पिता ने शव दिए जाने की मांग को लेकर उच्च न्यायालय में दायर की याचिका
By भाषा | Updated: December 30, 2021 16:24 IST2021-12-30T16:24:32+5:302021-12-30T16:24:32+5:30

हैदरपोरा मुठभेड़ : आमिर के पिता ने शव दिए जाने की मांग को लेकर उच्च न्यायालय में दायर की याचिका
जम्मू, 30 दिसंबर श्रीनगर के हैदरपोरा इलाके में नवंबर में हुई मुठभेड़ में मारे गए चार लोगों में से एक आमिर माग्रे के पिता ने बृहस्पतिवार को जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर अपने बेटे का शव दिलाने का अनुरोध किया है। याचिका में मृतक की “बेगुनाही” की बात दोहराते हुए आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अपने परिवार के योगदान का जिक्र किया।
आमिर के पिता मोहम्मद लतीफ ने अपने वकीलों दीपिका सिंह राजावत और मोहम्मद अरशद चौधरी के जरिये 18 पन्नों की याचिका दायर की है।
हैदरपोरा मुठभेड़ की जांच कर रहे जम्मू-कश्मीर पुलिस के विशेष जांच दल (एसआईटी) ने मंगलवार को कहा था कि एक विदेशी आतंकवादी ने एक नागरिक को मार डाला जबकि मकान का मालिक और एक स्थानीय “आतंकवादी” (आमिर माग्रे) की गोलीबारी में मौत हो गई।
हैदरपोरा में 15 नवंबर को मुठभेड़ में एक पाकिस्तानी आतंकवादी और तीन अन्य व्यक्ति मारे गये थे। पुलिस ने दावा किया था कि मारे गये सभी व्यक्तियों का आतंकवाद से संबंध था। हालांकि इन तीन व्यक्तियों के परिवारों ने दावा किया था कि वे बेगुनाह थे और उन्होंने इस मुठभेड़ में गड़बड़ी का आरोप लगाया था। उसके बाद पुलिस ने जांच का आदेश दिया था। उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने भी मामले में अलग से एक मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दिए हैं।
रामबन जिले के गूल इलाके में रहने वाले लतीफ ने अपनी याचिका में कहा. “…आमिर का करीबी होने के कारण याचिकाकर्ता को उसकी हर अच्छी बुरी बात का पता था, इसलिए वह शपथ लेकर कह सकता है कि उसका बेटा कभी राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल नहीं रहा और न ही कभी ऐसे किसी संगठन से उसका जुड़ाव रहा जो राष्ट्र को नुकसान पहुंचाने की साजिश रचते हैं।”
अपने बेटे के लिये, सम्मानजनक तरीके से धार्मिक रीतिरिवाजों व नियमों के मुताबिक अंतिम संस्कार का अधिकार देने वाले, संविधान के अनुच्छेद 21 का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता ने कहा कि उसने सेना के साथ एक नागरिक स्वयंसेवक के रूप में काम करके गूल और सिंगलदान क्षेत्र में आतंकवाद से लड़ने और उसे रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
उन्होंने याचिका में 6 अगस्त 2005 की एक घटना का उल्लेख किया जब उसने अपनी पत्नी और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर घर में घुसकर अंधाधुंध गोलीबारी करने वाले लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के एक आतंकवादी को मार डाला था, और कहा कि उसे सम्मानित किया गया था। गोलीबारी में घायल होने के बावजूद अनुकरणीय साहस दिखाने के लिए जम्मू-कश्मीर सरकार द्वारा 2012 के लिए बहादुरी का राज्य पुरस्कार उसे दिया गया था। इस दौरान हुई गोलीबारी में उनके एक रिश्तेदार की मृत्यु हो गई थी।
याचिका में कहा गया, “इसके अलावा, याचिकाकर्ता को भारतीय सेना ने अपने क्षेत्र - गूल संगलदान, रामबन- में आतंकवाद को खत्म करने में राष्ट्र के प्रति सेवा के लिए उनकी सराहना की है।”
उन्होंने कहा कि सेना को परिवार का खुला समर्थन देखते हुए याचिकाकर्ता हमलों के प्रति संवेदनशील बना हुआ है, जिसके कारण उन्हें सुरक्षा प्रदान की गई थी, जो अब भी उनके घर के बाहर तैनात है।
याचिका में कहा गया, “... यह स्पष्ट है कि आमिर को देशभक्ति के माहौल में और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों और ताकतों से दूर तैयार किया गया था, इसलिए आमिर को आतंकवाद से जोड़ना किसी भी लिहाज से उचित नहीं है और उन सब को भी हतोत्साहित करेगा जिनके दिल भारत के करीब हैं और अपने जीवन व परिवारों की परवाह किए बिना, जम्मू-कश्मीर में मुश्किल स्थिति में आतंकवाद से लड़ रहे हैं।”
दो अन्य, एक मकान मालिक और एक डॉक्टर, जिनके साथ आमिर 18 नवंबर को कार्यालय चपरासी के रूप में काम कर रहा था, के शवों की वापसी का जिक्र करते हुए याचिका में अदालत से प्रतिवादियों- केंद्रीय गृह मंत्रालय, जम्मू कश्मीर प्रशासन और पुलिस महानिदेशक- को परिवार को शव सौंपने का निर्देश देने का अनुरोध किया।
Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।