धर्मस्थल की जमीन पर खुदाई, 100 हड्डियां, इंसानी खोपड़ी और नया गवाह..., कैसे मीडिया के आधी-अधूरी जानकारी ने धर्मस्थल मंदिर को बदनाम किया
By अंजली चौहान | Updated: August 15, 2025 08:07 IST2025-08-15T08:04:17+5:302025-08-15T08:07:59+5:30
Dharmasthala Controversy: 3 जुलाई को दक्षिण कन्नड़ ज़िले के धर्मस्थल स्थित 800 साल पुराने तीर्थस्थल श्री धर्मस्थल मंजुनाथेश्वर मंदिर में कार्यरत एक सफ़ाई कर्मचारी ने ज़िले के पुलिस अधीक्षक के पास एक औपचारिक शिकायत दर्ज कराई थी।

धर्मस्थल की जमीन पर खुदाई, 100 हड्डियां, इंसानी खोपड़ी और नया गवाह..., कैसे मीडिया के आधी-अधूरी जानकारी ने धर्मस्थल मंदिर को बदनाम किया
Dharmasthala Controversy: कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ जिले में स्थित धर्मस्थल मंजीनाथेश्वर मंदिर करीब 800 साल पुराना है। इस मंदिर में हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं लेकिन अब इस मंदिर के साथ एक आरोप के जुड़ने से इसकी बदनामी हो रही है। इस पूरे विवाद की शुरुआत एक पूर्व सफाई कर्मचारी के सनसनीखेज आरोपों से हुई। उसने दावा किया कि उसे 1998 से 2014 के बीच मंदिर परिसर के पास सैकड़ों शवों को दफनाने के लिए मजबूर किया गया था।
ये आरोप बेहद गंभीर थे। व्हिसलब्लोअर ने दावा किया कि शवों में ज़्यादातर महिलाएं और नाबालिग लड़कियां थीं, जिनके साथ कथित तौर पर यौन उत्पीड़न और हत्या की गई थी। इन दावों ने तुरंत लोगों का ध्यान खींचा और विवाद को जन्म दिया।
इन दावों के बाद, कर्नाटक सरकार ने मामले की गंभीरता को देखते हुए एक विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया।
मीडिया की सनसनीखेज कवरेज
गौरतलब है कि एसआईटी की जांच शुरू होने के साथ ही मीडिया में खबरें आनी शुरू हो गईं। इन खबरों में अक्सर 'इंसानी खोपड़ी', 'सैकड़ों हड्डियां' और 'नए गवाह' जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया। हालांकि, ये हेडलाइन अक्सर जांच की पूरी तस्वीर पेश नहीं करती थीं।
मीडिया में अक्सर यह बताया गया कि जांच के दौरान इंसानी खोपड़ियां और हड्डियां मिली हैं। हालांकि, इन अवशेषों की वैज्ञानिक पुष्टि और उनकी उम्र के बारे में पूरी जानकारी अक्सर गायब थी। यह भी साफ नहीं था कि ये अवशेष क्या दशकों पुराने थे या हाल के दिनों के।
कई मीडिया आउटलेट्स ने सनसनीखेज भाषा का इस्तेमाल किया, जिससे पाठकों और दर्शकों के बीच एक धारणा बन गई कि मंदिर प्रशासन इन अपराधों में सीधे तौर पर शामिल है, जबकि यह अभी तक साबित नहीं हुआ है।
सोशल मीडिया पर इन खबरों को बहुत तेजी से फैलाया गया, अक्सर बिना किसी तथ्यात्मक जांच के। इसमें कई बार आधी-अधूरी जानकारी को पूरी सच्चाई की तरह पेश किया गया, जिससे मंदिर की छवि को काफी नुकसान पहुंचा।
सोशल मीडिया का दुष्प्रचार
सोशल मीडिया पर इन आरोपों से जुड़े वीडियो, पोस्ट और लेख बहुत तेजी से वायरल हुए। लोग बिना किसी तथ्यात्मक जांच के इन खबरों को शेयर करते रहे, जिससे दुष्प्रचार और अफवाहें तेजी से फैलीं।
कई सोशल मीडिया यूजर्स ने इन आरोपों को मंदिर की छवि को खराब करने की एक साजिश बताया। इस तरह की चर्चाओं ने विवाद को और बढ़ा दिया और इसे एक वैचारिक लड़ाई का रूप दे दिया।
यह सच है कि एसआईटी ने कुछ स्थानों पर खुदाई की और इंसानी अवशेष बरामद किए हैं। लेकिन यह भी सच है कि इन अवशेषों की फॉरेंसिक रिपोर्ट अभी आनी बाकी है, जिससे यह पता चल सकेगा कि वे कितने पुराने हैं और उनकी मौत का कारण क्या था।
धर्मस्थला मंदिर के प्रशासक, डॉ. वीरेंद्र हेगड़े, ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया है और जांच में पूरा सहयोग करने का आश्वासन दिया है। उन्होंने कहा कि इन आरोपों के पीछे मंदिर की छवि को धूमिल करने की साजिश हो सकती है।
इस मामले में, यह महत्वपूर्ण है कि हम केवल मीडिया और सोशल मीडिया की सनसनीखेज खबरों के आधार पर किसी निष्कर्ष पर न पहुंचें। जांच अभी भी जारी है, और जब तक एसआईटी अपनी अंतिम रिपोर्ट नहीं सौंपती, तब तक कोई भी निर्णय लेना जल्दबाजी होगी।
जांच की धीमी गति और अनिश्चितता
कर्नाटक सरकार ने इन आरोपों की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया। हालांकि, जांच की धीमी गति और लगातार सामने आ रहे नए दावों ने लोगों के बीच अनिश्चितता और भ्रम को बढ़ा दिया।
जब तक एसआईटी की अंतिम रिपोर्ट नहीं आती, तब तक सच्चाई पूरी तरह से सामने नहीं आ सकती। इस बीच, अफवाहें और अटकलें जारी हैं, जो धर्मस्थला की बदनामी का एक बड़ा कारण बन रही हैं।
संक्षेप में, धर्मस्थला की बदनामी का कारण केवल व्हिसलब्लोअर के आरोप नहीं हैं, बल्कि यह एक जटिल समस्या है जिसमें सनसनीखेज मीडिया कवरेज, सोशल मीडिया पर दुष्प्रचार और जांच की अनिश्चितता ने अहम भूमिका निभाई है।