ऑनलाइन गेमिंग के सामने आये भयावह शोध नतीजे, ' बच्चे ने पैंट में पेशाब कर दिया लेकिन गेम को नहीं रोका'

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: March 5, 2022 02:48 PM2022-03-05T14:48:17+5:302022-03-05T14:53:20+5:30

लॉकडाउन के प्रभाव के अनुसार 128 प्रतिभागी छात्रों में से 50.8 फीसदी छात्रों ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान उनके गेमिंग में वृद्धि हुई थी। इस दौरान छात्रों का कहना था कि गेमिंग तनाव से निपटने में उनकी मदद करता है।

Horrifying research results in online gaming, 'the child urinated in the pants but did not stop the game' | ऑनलाइन गेमिंग के सामने आये भयावह शोध नतीजे, ' बच्चे ने पैंट में पेशाब कर दिया लेकिन गेम को नहीं रोका'

सांकेतिक तस्वीर

Highlightsकोरोना महामारी के कारण बच्चों में ऑनलाइन गेमिंग की लत ने जोर पकड़ लियाकोरोना महामारी के दौरान लगभग सभी आयु के छात्र आसानी से इंटरनेट का उपयोग कर रहे थेऑनलाइन गेमिंग के कारण बच्चों के व्यवहार में मनोवैज्ञानिक खतरों के बढ़ने के आसार देखे गये हैं

मुंबई: बच्चे में तेजी से बढ़ रहा ऑनलाइन गेमिंग का चलन उन्हें किसी कदर अपनी गिरफ्त में ले रहा है। इसका खुलासा उस समय हुआ जब एक 15 साल की लड़की चौबीसों घंटे ऑनलाइन गेमिंग के एडिक्शन में उस कदर डूब जाती ती कि वह पैंट में ही पेशाब कर देती थी और अपने शरीर से संबंधित जरूरी कार्यों का भी ख्याल नहीं रख पाती थी।

चौबीसों घंटे के इस खतरनाक ऑनलाइन गेम की लत छुड़ाने के लिए लकड़ी के मां-बाप ने उसे एक मनोवैज्ञानिक के यहां भर्ती करवाया। मामले की गंभीरता के बारे में बात करते हुए मुंबई मनोवैज्ञानिक डॉक्टर सागर मुंडाडा ने कहा, “लड़की इस खेल में इस तरह से उलझ जाती थी कि उसने कई बार अपनी पैंट में पेशाब कर दिया लेकिन गेम को बीच में रोकने के लिए तैयार नहीं हुई। यहां तक की गेमिंग के चक्कर में उसने पढ़ना बंद कर दिया, स्कूल की कक्षाओं में जाना बंद कर दिया और माता-पिता भी उसकी गेमिंग की लत पर लगाम नहीं लगा सके।”

मुंबई में इन दिनों कई मनोवैज्ञानिक डॉक्टरों के पास ऐसे किशोर आ रहे हैं, जिनमें ऑनलाइन गेमिंग की लत के हल्के से लेकर गंभीर लक्षण दिखाई दे रहे हैं। डॉक्टर मुंडाडा ने कहा, “एक हद लत के कारण वे बच्चे रात में सोते भी नहीं हैं। अगर उन्हें गेम खेलने से रोका जाता है तो कभी-कभी वो हिंसक भी हो जाते हैं और मारपीट भी शुरू कर देते हैं। कुछ बच्चों ने माना कि वो गेम के इतने ऑनलाइन गेमिंग या उसके जरिये खेले जाने वाले जुए के इतने आदी हो गये थे कि खेलते समय खाना खाना भी भूल जाते थे या फिर गेम खेलने के दौरान खाने से पहले और बाद में हाथ धोने के लिए भी नहीं उठते थे।”

वहीं एक अन्य घटना में एक किशोर बच्चे को नायर अस्पताल में भर्ती कराया गया क्योंकि उसने ऑनलाइन गेम में खेले गए 'हिंसक' गेम के कारण खुद को घायल कर लिया था। चोटों के ईलाज के बाद उसे अस्पताल के मनोरोग विभाग में आगे के इलाज और गेमिंग की लत छुड़ाने के लिए  भेज दिया गया।

इस मामले में नायर अस्पताल में मनोचिकित्सा विभाग के प्रमुख डॉ हेनल शाह ने कहा, "अस्पताल में भर्ती होने वाला बच्चा पहले बेहद आज्ञाकारी था और अच्छे से पढ़ाई कर रहा था लेकिन कोरोना महामारी के दौरान वह ऑनलाइन गेमिंग में शामिल हो गया। इस बात का पता उनके माता-पिता को बी नहीं चला और जब उन्हें जानकारी हुई तो उन्हें यह नहीं पता था कि गेमिंग की लत से अपने बच्चे की दूर कैसे करें।"

कोरोना महामारी के दौरान लगभग सभी आयु के छात्र आसानी से इंटरनेट का उपयोग कर सकते थे और इस दौरान पढ़ाई भी बड़ी मुश्किल से हो रही थी। उसी महामारी के कारण बच्चों में ऑनलाइन गेमिंग की लत ने जोर पकड़ लिया।

कोविड-19 के कारण देश में लगे पहले लॉकडाउन के शुरुआती महीनों के बाद एम्स में प्रोफेसरों द्वारा किये गये एक ऑनलाइन सर्वे को इंडियन जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित किया गया। इस सर्वे में कॉलेज के छात्रों का अध्ययन किया गया था कि लॉकडाउन के दौरान उनके गेमिंग व्यवहार में व्यवहार में क्या-क्या परिवर्तन हुए हैं।

लॉकडाउन के प्रभाव के अनुसार 128 प्रतिभागी छात्रों में से 50.8 फीसदी छात्रों ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान उनके गेमिंग में वृद्धि हुई थी। इस दौरान छात्रों का कहना था कि गेमिंग तनाव से निपटने में उनकी मदद करता है।

दिसंबर 2021 में प्रकाशित एल्सेवियर्स साइंस डायरेक्ट रिसर्च पेपर में इलेक्ट्रॉनिक गेम की लत के बढ़ते जोखिमों पर कोविड-19 महामारी के प्रभावों पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। इसके लिए कुल 289 बच्चों का अध्ययन किया गया। रिसर्च में पता चला कि 6-17 वर्ष की आयु वर्ग में 80.47 फीसदी बच्चों में कोविड लॉकडाउन के दौरान गेमिंग की लत का खतरा अपने चरम पर था।

यूएई की रिसर्च में कहा गया है कि ऑनलाइन गेमिंग के कारण बच्चों के व्यवहार में सामाजिक और मनोवैज्ञानिक खतरों के बढ़ने के आसार देखे गये हैं।

पिछले महीने दादर के रहने वाले एक किशोर ने इसी ऑनलाइन गेमिंग के कारण खुदकुशी कर ली। जांच में मुंबई पुलिस ने कहा कि ऑनलाइन गेमिंग की लत इस आत्महत्या का प्रमुख कारण था। इस घटना के संदर्भ में मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने कहा कि ऑनलाइन गेमिंग को दोष देने से पहले आत्महत्या करने वाले बच्चे का मनोवैज्ञानिक शव परीक्षण करके देखना चाहिए कि आखिरकार किशोरी आत्महत्या जैसे घातक कदम उठाने पर मजबूर क्यों हुआ।

इस संबंध में मुंबई के मनोचिकित्सक डॉ हरीश शेट्टी ने कहा, "हमें हर समय बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को ध्यान से देखने और समझने की जरूरत है। ऐसे मामलों में मनोवैज्ञानिक शव परीक्षण की इसलिए आवश्यकता होती है क्योंकि इससे पचा चलता है कि खेल में ऐसा क्या था कि बच्चा आत्महत्या करने तक को मजबूर हो गया। मनोवैज्ञानिक शव परीक्षण से हमें मृत बच्चे के खेल के प्रति उसके व्यवहार और छुपे हुए तमाम पहलुओं के बारे में जानकारी मिल सकती है।"

डॉक्टर हेनल शाह ने कहा कि उनके अस्पताल में कई ऐसे मामले सामने आते हैं कि जिसमें माता-पिता को पचा ही नहीं होता कि उनका बच्चा गेमिंग की लत का शिकार है। जबकि किशोरावस्था में ही छात्रों की गेमिंग की लत गंभीर बन जाती है और माता-पिता उस ओर ध्यान ही नहीं देते हैं। ऐसे मामलों में माता-पिता को जिम्मेदारी लेनी चाहिए कि वह बच्चों की जांच करें और उन सभी गैजेट्स के उपयोग पर प्रतिबंध लगाएं जो ऑनलाइन गेमिंग को बढ़ावा देते हैं।

शाह ने कहा, "ऑनलाइन गेमिंग के लत के कारण बच्चे धीरे-धीरे उन खेलों में पैसा भी लगाना शुरू कर देते हैं और दुनिया भर में अनजान दोस्त भी बनाने लगते हैं।"

डॉ शाह ने आगे कहा, "माता-पिता को बच्चों का मनोविज्ञान समझने की जरूरत है और उन्हें अनुशासित बनाये रखने की पूरी जिम्मेदारी माता-पिता की ही होती है क्योंकि वो हमेशा उनके करीब रहते हैं। अगर ऑनलाइन गेम खेलने वाले बच्चे माता-पिता से बगावत करने लगें तो उन्हें फौरन मनोवैज्ञानिक परामर्श की जरूरत होती है।”

Web Title: Horrifying research results in online gaming, 'the child urinated in the pants but did not stop the game'

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