हिंदी दिवस 2020: राष्ट्रभाषा की संभावना और हिंदी का यथार्थ
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: September 14, 2020 03:43 PM2020-09-14T15:43:23+5:302020-09-14T15:43:23+5:30
हिंदी भाषा कतिपय राजनीतिक विद्वेष के चलते आज अपने ही भू भाग पर उपेक्षा की शिकार होती रही है, जबकि आज हिंदी अनिवार्य रूप से बाजार की भाषा बन चुकी है, लेकिन आज हिंदी का अपना बाजार सिकुड़ता जा रहा है।
हिंदी दिवस के अवसर पर गुरु घासीदास विश्वविद्यालय के राजभाषा प्रकोष्ठ के तत्वावधान में हिंदी और पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के संयुक्त प्रयास से राष्ट्रभाषा की संभावना और हिंदी का यथार्थ विषय पर वेबीनार का आयोजन किया गया। गूगलमीट के जरिये हिंदी व पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के छात्रों, अध्यापकों ने हिंदी की संभावना पर अलग-अलग नजरिये से विचार-विमर्श किया।
सह प्राध्यापक डॉ. गौरी त्रिपाठी हिंदी विभाग ने विचार गोष्ठी का संचालन और विषय प्रवर्तन करते हुए रेखांकित किया कि दुनिया में दूसरे नम्बर पर लोगों द्वारा बोली जाने वाली यह हिंदी भाषा कतिपय राजनीतिक विद्वेष के चलते आज अपने ही भू भाग पर उपेक्षा की शिकार होती रही है, जबकि आज हिंदी अनिवार्य रूप से बाजार की भाषा बन चुकी है, लेकिन आज हिंदी का अपना बाजार सिकुड़ता जा रहा है।
अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में विभागाध्यक्ष डॉ. देवेंद्र नाथ सिंह ने कहा कि कतिपय राजनीतिक अवरोधों के चलते भले ही सरकारी कागजों में हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा नही दिया गया, लेकिन वह लोकमानस में प्रतिष्ठित होकर आज जन भाषा का गौरव हासिल कर चुकी है।
आज हिंदी का यह गौरव राष्ट्रभाषा की कागजी खानापूर्ति का मोहताज नहीं है। जैसे राष्ट्रपिता का महत्व किसी सरकारी पद से बहुत ऊंचा है, हमारी हिंदी का गौरव भी ठीक उसी तरह आज लोक हृदय में अपने को प्रतिष्ठित करके अपनी ऊंचाई को प्राप्त कर चुकी है।
इस अवसर पर पत्रकारिता विभाग की सहायक प्राध्यापक डॉ अमिता ने लोगों में हिंदी को लेकर फैली हीनता ग्रन्थि से मुक्त होने की बात पर विशेष बल दिया। इस अवसर पर राजभाषा प्रकोष्ठ के अखिलेश तिवारी ने सरकारी दस्तावेजों में हिंदी के प्रयोग में होने वाली कोताही को एक बड़ी और व्यावहारिक समस्या बताया।इस अवसर पर कुछ छात्रों, अध्यापकों ने काव्यपाठ भी किया।