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हाथरस कांडः हाईकोर्ट को इसे देखने दिया जाए, उच्चतम न्यायालय ने कहा-अगर कोई समस्या होगी तो हम यहां पर हैं ही

By भाषा | Updated: October 15, 2020 17:42 IST

हाथरस मामलाः प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ इस मामले को लेकर दायर जनहित याचिका और कार्यकर्ताओं तथा वकीलों के हस्तक्षेप के आवेदनों पर सुनवाई कर रही थी।

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ठळक मुद्देउत्तर प्रदेश में निष्पक्ष सुनवाई संभव नहीं है क्योंकि पहले ही जांच कथित रूप से चौपट कर दी गयी है।दलित लड़की का कथित रूप से बर्बरतापूर्ण तरीके से बलात्कार किया गया था और बाद में उसकी मृत्यु हो गयी थी।मामले में कई अन्य वकील भी बहस करना चाहते थे लेकिन पीठ ने कहा, ‘‘हमे पूरी दुनिया की मदद की आवश्कता नहीं है।’’

नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि हाथरस मामले की निगरानी इलाहाबाद उच्च न्यायालय को करने को दी जाएगी। इस मामले में एक दलित लड़की का कथित रूप से बर्बरतापूर्ण तरीके से बलात्कार किया गया था और बाद में उसकी मृत्यु हो गयी थी।

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ इस मामले को लेकर दायर जनहित याचिका और कार्यकर्ताओं तथा वकीलों के हस्तक्षेप के आवेदनों पर सुनवाई कर रही थी। पीठ से कहा गया कि उत्तर प्रदेश में निष्पक्ष सुनवाई संभव नहीं है क्योंकि पहले ही जांच कथित रूप से चौपट कर दी गयी है।

पीठ ने इस आशंका को दूर करते हुये कहा, ‘‘उच्च न्यायालय को इसे देखने दिया जाये। अगर कोई समस्या होगी तो हम यहां पर हैं ही।’’ इस मामले में सुनवाई के दौरान सालिसीटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे, इन्दिरा जयसिंह और सिद्धार्थ लूथरा सहित अनेक वकील विभिन्न पक्षों की ओर से मौजूद थे। इस मामले में कई अन्य वकील भी बहस करना चाहते थे लेकिन पीठ ने कहा, ‘‘हमे पूरी दुनिया की मदद की आवश्कता नहीं है।’’

परिवार के सदस्यों और गवाहों को पूरी सुरक्षा और संरक्षण जैसे मुद्दों पर बहस हुयी

सुनवाई के दौरान पीड़ित की पहचान उजागर नहीं करने से लेकर उसके परिवार के सदस्यों और गवाहों को पूरी सुरक्षा और संरक्षण जैसे मुद्दों पर बहस हुयी। पीड़ित के परिवार के वकील ने इस मामले की सुनवाई उप्र से बाहर राष्ट्रीय राजधानी की अदालत में स्थानांतरित करने की मांग की। वरिष्ठ अधिवक्ता इन्दिरा जयसिंह ने भी इस मामले की उप्र में निष्पक्ष सुनवाई को लेकर अपनी आशंका व्यक्त की और गवाहों के संरक्षण का मुद्दा उठाया।

इससे पहले, सुनवाई शुरू होते ही सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने उप्र सरकार द्वारा दाखिल हलफनामे का जिक्र किया जिसमे पीड़ित के परिवार और गवाहों को प्रदान की गयी सुरक्षा और संरक्षण का विवरण दिया गया था। राज्य सरकार ने न्यायालय के निर्देश पर इस हलफनामे में गवाहों की सुरक्षा के बारे में सारा विवरण दिया है। राज्य सरकार इस मामले को पहले ही सीबीआई को सौंप चुकी है और उसने शीर्ष अदालत की निगरानी के लिये भी सहमति दे दी है।

मेहता ने न्यायालय के आदेश पर अमल करते हुये हलफनामा दाखिल करने का जिक्र करते हुये कहा कि पीड़ित के परिवार ने सूचित किया है कि उन्होंने वकील की सेवायें ली हैं और उन्होंने राज्य सरकार के वकील से भी उनकी ओर से मामले को देखने का अनुरोध किया है। उप्र के पुलिस महानिदेशक की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा कि पीठ से अनुरोध किया गया है कि गवाहों की सुरक्षा के लिये सीआरपीएफ तैनात की जानी चाहिए।

महोदय आप जिसे भी चाहें, सुरक्षा सौंप सकते हैं

साल्वे ने कहा, ‘‘महोदय आप जिसे भी चाहें, सुरक्षा सौंप सकते हैं।’’ उन्होंने कहा कि इसे राज्य सरकार पर किसी प्रकार का आक्षेप नहीं माना जाना चाहिए। मेहता ने कहा, ‘‘राज्य पूरी तरह से अपक्षतपातपूर्ण है।’’ पीड़ित के परिवार की ओर से पेश अधिवक्ता सीमा कुशवाहा ने कहा कि वे चाहते है कि जांच के बाद इसकी सुनवाई दिल्ली की अदालत में करायी जाये। उन्होने कहा कि जांच एजेन्सी को अपनी प्रगति रिपोर्ट सीधे शीर्ष अदालत को सौंपने का निर्देश दिया जाये।

मेहता ने कहा कि सही स्थिति तो यह है कि राज्य सरकार पहले ही कह चुकी है कि उसे कोई आपत्ति नहीं है और कोई भी जांच कर सकता है। उन्होंने कहा कि सीबीआई ने 10 अक्टूबर से जांच अपने हाथ में ली है। मेहता ने कहा कि पीड़ित की पहचान किसी भी स्थिति में सार्वजनिक नहीं की जानी चाहिए क्योंकि कानून इसकी अनुमति नही देता है। सालिसीटर जनरल ने कहा, ‘‘कोई भी ऐसा कुछ नहीं लिख सकता जिसमें पीड़ित का नाम या और कुछ हो जिससे उसकी पहचान का खुला हो सकता हो।’’

एक हस्तक्षेपकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता इन्दिरा जयसिंह ने कहा कि इस समय आरोपी को नहीं सुना जाना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘हमें उप्र राज्य में निष्पक्ष सुनवाई की उम्मीद नहीं है। जांच पहले ही चौपट की जा चुकी है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘पीड़ित के परिवार और गवाहों को उप्र द्वारा को दी गयी सुरक्षा से हम संतुष्ट नहीं है। उन्नाव मामले की तरह इसमें भी सुरक्षा सीआरपीएफ को दी जानी चाहिए।’’ एक आरोपी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि इस मामले का सारा विवरण पूरी मीडिया में है।

आप अधिकार क्षेत्र वाले उच्च न्यायालय जायें

पीठ ने लूथरा से कहा, ‘‘आप अधिकार क्षेत्र वाले उच्च न्यायालय जायें।’’ सालिसीटर जनरल ने एक संगठन द्वारा दायर आवेदन का विरोध किया जिसमे हाथरस घटना की जांच सीबीआई को सौंपने का अनुरोध किया गया है। मेहता ने कहा, ‘‘न्यायालय को यह निर्देश देना चाहिए कि किसी को भी पीड़ित के नाम पर धन एकत्र नहीं करना चाहिए। हमने पहले यह देखा है। मैं इस आवेदन का विरोध कर रहा हूं।’’ एक हस्तक्षेपकर्ता ने कहा कि इस मामले की जांच न्यायालय की निगरानी में विशेष जांच दल से करायी जानी चाहिए।

हाथरस के एक गांव में 14 सितंबर को 19 वर्षीय दलित लड़की से अगड़ी जाति के चार लड़कों ने कथित रूप से बलात्कार किया था। इस लड़की की 29 सितंबर को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में इलाज के दौरान मृत्यु हो गयी थी। पीड़ित की 30 सितंबर को रात के अंधेरे में उसके घर के पास ही अंत्येष्टि कर दी गयी थी। उसके परिवार का आरोप है कि स्थानीय पुलिस ने जल्द से जल्द उसका अंतिम संस्कार करने के लिये मजबूर किया। स्थानीय पुलिस अधिकारियों का कहना था कि परिवार की इच्छा के मुताबिक ही अंतिम संस्कार किया गया। 

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