हाथरस मामलाः सुप्रीम कोर्ट ने कहा-सीबीआई जांच की निगरानी इलाहाबाद उच्च न्यायालय करेगा

By भाषा | Published: October 27, 2020 08:54 PM2020-10-27T20:54:48+5:302020-10-27T20:54:48+5:30

शीर्ष अदालत ने कहा कि इस मामले की सुनवाई उत्तर प्रदेश से बाहर कराने के मुद्दे पर यदि भविष्य में आवश्यकता हुई तो विचार किया जायेगा। न्यायालय ने कहा कि इस समय इस मामले के सारे पहलू उच्च न्यायालय के विचार के लिये खुले छोड़े गये हैं। सीबीआई की जांच पूरी होने के बाद ही विचार किया जायेगा।

Hathras case Supreme Court Allahabad High Court supervise CBI investigation up | हाथरस मामलाः सुप्रीम कोर्ट ने कहा-सीबीआई जांच की निगरानी इलाहाबाद उच्च न्यायालय करेगा

सप्ताह के भीतर पीड़ित के परिवार और गवाहों को सीआरपीफ की सुरक्षा प्रदान की जाये।

Highlightsलखनऊ पीठ ने हाथरस घटना का संज्ञान लिया है ओर उसने स्वत: ही याचिका दर्ज करने का निर्देश दिया है।इस मामले में विभिन्न विभागों से रिपोर्ट मंगाने सहित उचित आदेश पारित किये जा रहे हैं।मौजूदा किस्म के मामले में सामान्य धारणा और निराशावाद पर विचार करना जरूरी है क्योंकि ऐसा नही कहा जा सकता कि यह बेवजह हैं।

नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले की एक दलित लड़की के साथ कथित सामूहिक बलात्कार और फिर उसकी अस्पताल में उपचार के दौरान मौत के मामले की केन्द्रीय जांच ब्यूरो की जांच की इलाहाबाद उच्च न्यायालय निगरानी करेगा।

शीर्ष अदालत ने कहा कि इस मामले की सुनवाई उत्तर प्रदेश से बाहर कराने के मुद्दे पर यदि भविष्य में आवश्यकता हुई तो विचार किया जायेगा। न्यायालय ने कहा कि इस समय इस मामले के सारे पहलू उच्च न्यायालय के विचार के लिये खुले छोड़े गये हैं। सीबीआई की जांच पूरी होने के बाद ही विचार किया जायेगा।

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने अपने फैसले मे इस तथ्य का उल्लेख किया कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने हाथरस घटना का संज्ञान लिया है ओर उसने स्वत: ही याचिका दर्ज करने का निर्देश दिया है।

पीठ ने कहा, ‘‘उच्च न्यायालय के आदेश से यह पता चलता है कि उच्च न्यायालय ने इस मामले की निष्पक्ष जांच से संबंधित पहलुओं पर विस्तार से विचार किया है और उसने पीड़ित के माता-पिता, भाई और भाभी की उपस्थिति भी दर्ज करायी है और इस मामले में विभिन्न विभागों से रिपोर्ट मंगाने सहित उचित आदेश पारित किये जा रहे हैं।’’

कार्यवाही की निगरानी इस न्यायालय के ऊपर लेना जरूरी नहीं समझते

पीठ ने 16 पृष्ठ के फैसले में कहा, ‘‘ऐसी परिस्थिति में, हम उच्च न्यायालय को कार्यवाही से वंचित करने और जाचं एवं कार्यवाही की निगरानी इस न्यायालय के ऊपर लेना जरूरी नहीं समझते।’’ न्यायालय ने इस घटना और पीड़ित के अंतिम संस्कार करने के तरीके पर चिंता व्यक्त करते हुये दायर याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया।

पीठ ने अपने फैसले में उत्तर प्रदेश सरकार के हलफनामे का जिक्र किया है जिसमें पीड़ित के परिवार के सदस्यों और गवाहों को प्रदान की गयी सुरक्षा का विवरण दिया गया है। फैसले में न्यायालय ने कहा, ‘‘दलीलों और राज्य सरकार की ओर से दाखिल हलफनामे के अवलोकन के बाद हम संतुष्ट हैं कि पीड़ित के परिवार और गवाहों की सुरक्षा के लिये राज्य सरकार ने पर्याप्त बंदोबस्त किये हैं।’’

पीठ ने कहा, ‘‘हालांकि, मौजूदा किस्म के मामले में सामान्य धारणा और निराशावाद पर विचार करना जरूरी है क्योंकि ऐसा नही कहा जा सकता कि यह बेवजह हैं। इसे ध्यान में रखते हुये, राज्य पुलिस के सुरक्षाकर्मियों पर किसी प्रकार के आक्षेप के बगैर आशंकाओं को दूर करने तथा विश्वास बहाल करने के उपाय के रूप में हम यह निर्देश देना उचित समझते हैं कि आज से एक सप्ताह के भीतर पीड़ित के परिवार और गवाहों को सीआरपीफ की सुरक्षा प्रदान की जाये।’’

न्यायालय ने इस इस तथ्य का भी जिक्र किया कि उससे अनुरोध किया गया था

न्यायालय ने इस इस तथ्य का भी जिक्र किया कि उससे अनुरोध किया गया था लेकिन यह निर्विवाद तथ्य है कि राज्य सरकार ने 10 अक्टूबर को ही इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी थी। पीठ ने कहा, ‘‘इसलिए, याचिकाकर्ताओं और आवेदनकर्ताओं द्वारा व्यक्त की जा रही यह आशंका कि अगर यह जांच उप्र पुलिस करेगी तो ठीक से नही होगी, इस समय विचार के योग्य नहीं है और इस संबंध में शिकायत का समाधान हो गया है।’’

शीर्ष अदालत ने कहा कि यह घटना उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में हुयी है और इसका सारा विवरण उपलब्ध है, ‘‘ऐसी स्थिति में उच्च न्यायालय के लिये अपने हिसाब से इस मामले की जांच की निगरानी करने के लिये कार्यवाही करना उचित होगा।’’ पीठ ने कहा कि इस मामले में याचिकाकर्ता चाहें तो उच्च न्यायालय में हस्तक्षेप करने की अनुमति मांग सकते हैं और ऐसा अनुरोध उच्च न्यायालय के विचार के दायरे में होगा।

जांच से संबंधित पहलू के बारे में न्यायालय ने कहा कि चूंकि हमने यह संकेत दिया है कि उच्च न्यायालय सारे पहलुओं पर गौर करेगा, सीबीआई इस मामले में उच्च न्यायालय के समय समय पर आदेशों में दिये गये निर्देशों के अनुसार उसे रिपोर्ट करेगी। इस मामले में विशेष लोक अभियोजक की नियुक्ति के सवाल पर पीठ ने कहा कि अनुसूचित जाति और जनजाति (अत्याचारों की रोकथाम) कानून, 1989 के प्रावधानों के आलोक में उच्च न्यायालय इस पर गौर करेगा।

न्यायालय ने कहा, ‘‘इसलिए प्रतिद्वन्दियों की दलीलों के गुण-दोष के बारे में कोई राय व्यक्त किय बगैर ही इस घटना से संबंधित सभी पहलुओं को उच्च न्यायालय के विचारार्थ खुला रखा जा रहा है जिनकी जांच सीबीआई करेगी। न्यायालय ने उप्र के मुख्य सचिव को निर्देश दिया कि पीड़ित परिवार और गवाहों की सुरक्षा के बारे में यह आदेश सीआरपीएफ के सक्षम अधिकारी के संज्ञान में लाया जाये और सीआरपीएफ इस बारे में कदम उठायेगी। पीठ ने कहा कि जहां तक इस मामले को दिल्ली स्थानांतरित करने के पीड़ित परिवार की ओर से किये गये अनुरोध का सवाल है तो इसकी जरूरत जांच पूरी होने के बाद ही आयेगी।

पीठ ने उच्च न्यायालय द्वारा 12 अक्टूबर को पारित आदेश में पीड़ित के परिवार के सदस्यों के नाम और उनके संबंधों का उजागर किये जाने के बारे में उप्र सरकार की ओर से सालिसीटर जनरल तुषार मेहता के कथन का संज्ञान लिया। न्यायालय ने कहा, ‘‘कानून के तहत यह जरूरी है कि इस तरह के खुलासे से बचा जाये, उच्च न्यायालय से अनुरोध किया जाता है कि इसे हटा दे और अपने डिजिटल रिकार्ड में इसे विरूपित कर दे और भविष्य में ऐसे संकेत देने से बचे।

न्यायालय ने इसके साथ ही सभी याचिकाओं का निस्तारण कर दिया। हाथरस के एक गांव में 14 सितंबर को 19 वर्षीय दलित लड़की से अगड़ी जाति के चार लड़कों ने कथित रूप से बलात्कार किया था। इस लड़की की 29 सितंबर को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में इलाज के दौरान मृत्यु हो गयी थी।

पीड़ित की 30 सितंबर को रात के अंधेरे में उसके घर के पास ही अंत्येष्टि कर दी गयी थी। उसके परिवार का आरोप है कि स्थानीय पुलिस ने जल्द से जल्द उसका अंतिम संस्कार करने के लिये मजबूर किया। स्थानीय पुलिस अधिकारियों का कहना था कि परिवार की इच्छा के मुताबिक ही अंतिम संस्कार किया गया था। 

Web Title: Hathras case Supreme Court Allahabad High Court supervise CBI investigation up

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