हरियाणा चुनाव: अंदरूनी कलह से विपक्ष को नुकसान, मोदी लहर पर सवार बीजेपी ने पिछले पांच सालों में तेजी से किया विस्तार
By अभिषेक पाण्डेय | Published: October 16, 2019 11:23 AM2019-10-16T11:23:06+5:302019-10-16T11:23:06+5:30
BJP: मोदी लहर और कांग्रेस और लोकदल जैसी पार्टियों की अंदरूनी कलह का फायदा उठाते हुए बीजेपी ने हरियाणा में तेजी से किया अपना विस्तार
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने 2019 लोकसभा चुनावों में हरियाणा की सभी 10 सीटों पर कब्जा जमाया था और इन चुनावों में 58 फीसदी वोट शेयर हासिल किया था। ये 2014 लोकसभा चुनावों में 35 फीसदी वोट शेयर हासिल करने वाली पार्टी के लिए जबर्दस्त जीत थी। इस जीत ने हरियाणा में बीजेपी के शानदार उदय को दशार्या।
हरियाणा में बीजेपी की जोरदार जीत का श्रेय निश्चित तौर पर नरेंद्र मोदी फैक्टर को जाता है, तो ना सिर्फ यहां बल्कि सभी हिंदी भाषी प्रदेशों में 2019 लोकसभा चुनावों में पार्टी की शानदार जीत में नजर आया। यहां तक कि बीजेपी ने दिसंबर 2018 में राजस्थान, मध्य प्रदेश और हरियाणा में विधानसभा चुनाव हारने के बावजूद इन राज्यों में भी 2019 लोकसभा चुनाव में जोरदार जीत हासिल की।
2014 से 2019 के बीच हरियाणा में सिमटा विपक्ष
इन हरियाणा चुनावों में बीजेपी को सत्ता विरोधी लहर का कितना सामना करना पड़ेगा, ये तो 24 अक्टूबर को ही पता चल पाएगा। लेकिन इतना तो तय है कि 2014 के चुनावों के बाद से ही विपक्षी दलों कांग्रेस, इंडियन नेशनल लोकदल जैसी पार्टियों का जनाधार तेजी से सिकड़ा है।
बीजेपी के हरियाणा में इस उभार की वजह ना सिर्फ गठबंधन की पार्टियों का एकदूसरे से अलग-थलग होना है बल्कि दो मुख्य विपक्षी दलों कांग्रेस और इंडियन नेशनल लोकदल (INLD) की आंतरिक कलह है।
2014 के विधानसभा चुनावों तक हरियाणा में कांग्रेस और आईएनएलडी का वोट शेयर 45 फीसदी था और उस साल हुए लोकसभा और विधानसभा चुनावों में बीजेपी की जीत के दौरान मुकाबला त्रिकोणीय रहा था।
आंतरिक कलह से कांग्रेस लोकदल ने गंवाई बढ़त
लेकिन 2014 के बाद से कांग्रेस और आईएनएलडी दोनों ही पार्टियां आंतरिक कलह से परेशान हो गईं। इंडियन नेशनल लोकदल 2019 आम चुनावों से पहले टूट गई और पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला के पोते दुष्यंत चौटाला ने अलग होकर जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के नाम से अपनी अलग पार्टी बना ली।
हालांकि कांग्रेस टूटने से तो बच गई, लेकिन उसके पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर ने टिकट बंटवारे के मुद्दे पर पार्टी से इस्तीफा दे दिया। दलित नेता तवंर पूर्व सीएम और जाट नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा के साथ कोल्ड वॉर में उलझे थे। तंवर के पार्टी छोड़ने से इस बात के भी संकेत मिले कि कांग्रेस 2019 विधानसभा चुनावों में भी शायद ही एकजुट होकर लड़ रही है।
इस आंतरिक कलह का नुकसान कांग्रेस और आईएनएलडी दोनों को उठाना पड़ा। 2019 लोकसभा चुनावों में कांग्रेस, आईएनएलडी और जेजेपी का वोट शेयर 35 फीसदी थी। इन चुनावों में आईएनएलडी पूरी तरह बिखरी नजर आई और महज 7 फीसदी वोट ही हासिल कर सकी।
अगर विधानसभा सीटों के आधार पर देखें तो लोकसभा चुनावों में जेजेपी 63 विधानसभा सीटों में से महज एक पर बढ़त बना सकी थी, जबकि लोकदल तो एक पर भी बढ़त नहीं बना पाई थी। कांग्रेस 2014 विधानसभा चुनावों की तुलना में अपना वोट शेयर तो 8 फीसदी बढ़ाने में सफल रही लेकिन 2019 लोकसभा चुनावों में महज 11 विधानसभा सीटों पर ही बढ़त हासिल कर सकी।
हरियाणा की जाति राजनीति को भी बीजेपी ने मजबूती से साधा
साथ ही बीजेपी ने हरियाणा की जाति की राजनीति को भी अच्छे से समझा और उसमें भी मजबूती से सेंध लगाई। राज्य में 25 फीसदी आबादी वाले जाट वोटरों के बीच बीजेपी ने तेजी से पैठ बनाई।
सीएसडीएस-लोकनीति के आंकड़ों के मुताबिक, कांग्रेस का जाट वोट बैंक 2009 से 2014 लोकसभा चुनावों के बीच 42 फीसदी से घटकर 21 फीसदी रह गया। 2014 में इसका सबसे ज्यादा फायदा इंडियन नेशनल लोकदल को हुआ था, जिसने 54 फीसदी वोट हासिल किए थे।
2014 लोकसभा चुनावों में समुदायों के बीच पार्टियों का वोट शेयर
सवर्ण: बीजेपी-48 फीसदी, कांग्रेस-12 फीसदी
जाट: बीजेपी-19 फीसदी, कांग्रेस 21 फीसदी
ओबीसी: बीजेपी-43 फीसदी, कांग्रेस-30 फीसदी
दलित: बीजेपी-19 फीसदी, कांग्रेस-39 फीसदी
2019 लोकसभा चुनावों में समुदायों के बीच पार्टियों का वोट शेयर
सवर्ण: बीजेपी-74 फीसदी, कांग्रेस-18 फीसदी
जाट: बीजेपी-50 फीसदी, कांग्रेस 33 फीसदी
ओबीसी: बीजेपी-73 फीसदी, कांग्रेस-22 फीसदी
दलित: बीजेपी-58 फीसदी, कांग्रेस-28 फीसदी
जाट वोट बैंक खिसकना कांग्रेस की हार की प्रमुख वजह बना। इसका फायदा उठाकर बीजेपी ने सर्वणों और अन्य पिछड़ा वर्गों (OBC) के बीच भी अपनी पकड़ मजबूत कर ली। वहीं कांग्रेस की तरह ही इंडियन नेशनल लोकदल ने भी दलियों और अन्य समुदायों के बीच अपने वोट शेयर को मजबूत करने की कोशिश नहीं की।
2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने जाटों के बीच अपना वोट शेयर 2014 के 19 फीसदी के मुकाबले बढ़ाकर 50 फीसदी कर लिया, जबकि ओबोसी के बीच उसका वोट शेयर 43 फीसदी से बढ़कर 73 फीसदी और दलितों के बीच 19 से बढ़कर 58 फीसदी हो गया। वहीं सवर्णों के बीच भी बीजेपी का वोट बैंक बढ़कर 48 से 74 फीसदी हो गया।
यानी बीजेपी ने ना सिर्फ जाट वोटों पर पकड़ मजबूत की बल्कि अन्य समुदायों के बीच भी अपनी पैठ बनाई और कांग्रेस और लोकदल को लगभग हर समुदाय के वोटरों के बीच पछाड़ दिया। अगर बीजेपी इन विधानसभा चुनावों में भी 2019 लोकसभा चुनावों का करिश्मा दोहराती है, तो कांग्रेस और इंडियन नेशनल लोकदल के लिए अपनी जगह बचाना काफी मुश्किल साबित हो सकता है।