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हरिशंकर तिवारी, जिसने बदल दी पूर्वांचल की राजनीति की तस्वीर, गोरखपुर में बोलती थी इनकी तूती

By पल्लवी कुमारी | Updated: April 10, 2019 21:31 IST

हरिशंकर तिवारी जेल की सलाखों के पीछे रहकर विधायक बनने के बाद लगातार 22 सालों तक चिल्लूपार विधानसभा सीट से विधायक रहे। सिर्फ विधायक ही नहीं बल्कि साल 1997 से लेकर 2007 तक लगातार यूपी कैबिनेट में मंत्री भी रहे।

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ठळक मुद्देपुलिस के रिकॉर्ड में हरिशंकर तिवारी लंबे समय तक हिस्ट्रीशीटर माफिया रहे हैं।80 के दशक में गोरखपुर के इलाके में तिवारी के खिलाफ 26 से  ज्यादा मुकदमे दर्ज हुए।

अपराधी के राजनेता बनने की और नेता के अपराधी बनने की लिस्ट हमारे देश में काफी लंबी है। लेकिन अपराध से राजनीति की और राजनीति से अपराध की दोस्ती कराने वालों के लिस्ट की जब बात की जाती है तो सबसे पहला नाम आता है गोरखपुर के हरिशंकर तिवारी का। हरिशंकर तिवारी को, जिन्हें राजनीति के अपराधीकरण का श्रेय जाता है। 

गोरखपुर जिले की एक विधानसभा सीट चिल्लूपार 1985 में एकाएक उस वक्त चर्चा में आई जब हरिशंकर तिवारी नाम के निर्दलीय उम्मीदवार ने जेल से चुनाव लड़ा और जीता। हरिशंकर तिवारी के चुनाव जीतने के बाद से ही भारतीय राजनीति में 'अपराध' के डायरेक्ट एंट्री का दरवाजा भी खुल गया। ये कहना गलत नहीं होगा कि इसके बाद से ही भारत में अपराध के राजनीतिकरण की बहस शुरू हुई। 

हरिशंकर तिवारी ने पूर्वांचल की राजनीति बदल दी

हरिशंकर तिवारी उस वक्त राजनीति में उठे थे जब देश में नेता इंदिरा के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे। देश समाजवाद की लड़ाई लड़ रहा था लेकिन गोरखपुर के कुछ लोगों ने अपने लिए अलग जगह बना ली। अपराध को राजनीति में तब्दील कर दिया। हरिशंकर तिवारी ने जाने या अनजाने में राजनीति ही बदल दी। जहां जनता बिजली, पानी, सड़क खोजने लगी थी, अचानक लोग बंदूकें गिनने लगे थे, गाड़ियों के काफिले देखने लगे थे, ये देखने लगे कि किसकी गाड़ी के सामने कौन रास्ता बदल लेता है। 

हरिशंकर तिवारी जेल की सलाखों के पीछे रहकर विधायक बनने के बाद लगातार 22 सालों तक चिल्लूपार विधानसभा सीट से विधायक रहे। सिर्फ विधायक ही नहीं बल्कि साल 1997 से लेकर 2007 तक लगातार यूपी कैबिनेट में मंत्री भी रहे। हरिशकंर तिवारी का अपना अलग ही स्वैग था, निर्दलीय चुनाव लड़ो और हर पार्टी की सरकार में मंत्री रहो। 1980 में राजनीति में उतरने के बाद से केवल दो बार 2007 और 2012 में तिवारी को हार का मुंह देखना पड़ा।

सबसे पहली बार हरिशंकर तिवारी 1998 में कल्याण सिंह द्वारा बसपा को तोड़कर बनाई सरकार में साइंस और टेक्नोलॉजी मंत्री रहे। दूसरी बार 2000 में राम प्रकाश गुप्त की भारतीय जनता पार्टी सरकार में स्टाम्प रजिस्ट्रेशन मंत्री बने। 2001 में राजनाथ सिंह की सरकार में भी मंत्री रहे। 2002 में मायावती की बसपा सरकार में भी मंत्रिमंडल के सदस्य रहे। 2003 से  2007 तक मुलायम सिंह की सरकार में भी मंत्री रहे। 

हरिशंकर तिवारी की सक्रिय राजनीति में एंट्री ही अपराध की वजह हुई

हरिशंकर तिवारी की सक्रिय राजनीति में एंट्री ही अपराध की वजह से होती है। उनका कहना था कि उत्तर प्रदेश के तत्कालिन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह ने उन्हें झूठे केसों में फंसाकर जेल भेजा था।  बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में हरिशंकर तिवारी ने कहा था '' कांग्रेस पार्टी में मैं पहले से ही था। पीसीसी का सदस्य था, AICC का सदस्य था। इंदिरा जी के साथ काम कर चुका था, लेकिन चुनाव कभी नहीं लड़ा था। तत्कालीन राज्य सरकार ने मेरा बहुत उत्पीड़न किया, झूठे मामलों में जेल भेज दिया और उसके बाद ही जनता के प्रेम और दबाव के चलते मुझे चुनाव लड़ना पड़ा।" ) 

80 के दशक में गोरखपुर के इलाके में तिवारी के खिलाफ 26 से  ज्यादा मुकदमे दर्ज हुए। जिसमें हत्या करवाना, हत्या की कोशिश करना, रंगदारी, छिनैती, अमीर बिजनेस मैन के बेटे को अगवा करवाना, सरकारी काम में बाधा डालना ये सब शामिल थे। हत्या की कोशिश करवाने का मतलब साफ था, इलाके में लोगों के दिलों में खौफ पैदा करना। 

हरिशंकर तिवारी पर आरोप तो ना जाने कितने लगे लेकिन साबित एक भी नहीं हो पाया,..हरिशंकर तिवारी ने उस वक्त अपना दामन साफ बनाए रखेने के लिए नायाब तरीका निकाला था। हरिशंकर तिवारी खुद जुर्म करते नहीं थे बल्कि उसके लिए लोगों को हायर करते थे। कहते हैं हरिशंकर तिवारी के दो शार्प शूटर थे साहेब सिंह और मटनू सिंह। ये दोनों को जैसे ही हरिशंकर तिवारी का इशारा मिलता ये काम पर लग जाते। इन हायर किए शूटर्स की वजह से हरिशंकर तिवारी की व्हाइट कॉलर वाली छवि बनी रही। 

 पूर्वाचल में दिया जाना वाला हर ठेका तिवारी को ही मिलता था

पुलिस के रिकॉर्ड में हरिशंकर तिवारी लंबे समय तक हिस्ट्रीशीटर माफिया रहे हैं। छात्र जीवन में गोरखपुर के बीचो-बीच एक किराए के कमरे में रहने वाले तिवारी का आज जटाशंकर मुहल्ले में किले जैसा घर है। जो पूरे गोरखपुर में तिवारी हाता के नाम से जाना जाता है। बरसों से पूर्वाचल में दिया जाना वाला हर ठेका रेलवे से लेकर खनन तक का या तो तिवारीजी को खुद या उनके आदमी को ही मिलता था। तब वे निजी सुरक्षा गार्डो की सुरक्षा में रहते थे। लेकिन मंत्री बनने के बाद पुलिस के जवान उनकी सुरक्षा करते हैं। एक वक्त ऐसा आया, जब उन्हें पूर्वांचल के किसी भी विरोधी माफिया से खतरा नहीं था क्योंकि जो उनके खतरा बन सके ऐसा कोई जिन्दा ही नहीं बचा था। कहा जाता है कि उनके शूटरों नें तिवारी के सभी दुश्मिनों को ठिकाने लगा दिया था 

आप सोच रहे होंगे कि जेल जाना, हिस्ट्रीशीटर, माफिया रहना,  दर्जनों मुकदमों के बावजूद ऐसा इंसान चुनाव कैसे जीतता गया। इसके जवाब बेहद साधारण थे हरिशंकर तिवारी ने वो पढ़ लिया जो सबसे आसान भी था और सबसे मुश्किल भी ..हरिशंकर तिवारी ने चिल्लूपार की जनता का मन पढ़ लिया था। हरिशंकर तिवारी का चुनाव जीतने का वहीं पुराना फॉर्मूला था , रॉबिनहुड वाला। अपने इलाके में किसी गरीब को परेशान नहीं होने देना, अमीरों का पैसा लूटकर गरीबों में बांट देना, किसी के घर शादी-विवाह में पहुंच कर अनुग्रहीत कर देना है।.हरिशंकर तिवारी ने यही फॉर्मूला अपनाया और कामयाब रहे। सुनने में अजीब भले लगे लेकिन हरिशंकर तिवारी के लिए चिल्लूपार के लोगों के दिलों में खौफ और इज्जत दोनों एक साथ थी। 

फिलहाल हरिशंकर तिवारी की उम्र तकरीबन 82 साल है। 2012 में मिली हार के बाद उन्होंने एक भी चुनाव नहीं लड़ा। लेकिन चिल्लूपार इलाके में इनका वर्चस्व आज भी कम नहीं हुआ है। शायद यही वजह है कि 2017 की मोदी लहर में भी हरिशंकर तिवारी ने अपने छोटे बेटे विनय शंकर तिवारी को चिल्लूपार सीट के विधायक बनाने में सफल हुए। कहा जाता है कि अगर आपको यूपी की राजनीति में दिलचस्पी है तो आप हरिशंकर तिवारी को प्यार कर सकते हैं, नफरत कर सकते हैं लेकिन उनको इग्नोर नहीं कर सकते। 

टॅग्स :गोरखपुर
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