जोड़-तोड़ और चुनाव प्रबंधन में शाह पर भारी गहलोत

By प्रदीप द्विवेदी | Published: April 20, 2019 05:59 AM2019-04-20T05:59:11+5:302019-04-20T05:59:25+5:30

राजस्थान में इस बार चुनावी तस्वीर बदली हुई है. कुछ समय पहले भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की सियासी जोड़-तोड़ देशभर में चर्चा में थी, परंतु इस बार राजस्थान में सीएम अशोक गहलोत ने उन्हें मात दे दी है.

Gehlot on Shah in Junking and Election Management | जोड़-तोड़ और चुनाव प्रबंधन में शाह पर भारी गहलोत

जोड़-तोड़ और चुनाव प्रबंधन में शाह पर भारी गहलोत

कुछ समय में ही न केवल एक दर्जन से ज्यादा बागी भाजपाइयों ने कांग्रेस का हाथ थामा है, बल्कि ज्यादातर निर्दलीय विधायकों को भी अपने साथ लेने में सीएम गहलोत कामयाब रहे हैं, मतलब, लोकसभा चुनाव के बाद भी सियासी जोड़-तोड़ से प्रदेश की गहलोत सरकार को हटाने की संभावनाएं खत्म हो गई हैं. 

चुनाव प्रबंधन में भाजपा, कांग्रेस से काफी आगे रही है, लेकिन इस बार इस मामले में भी वह पुरानी व्यवस्थाओं जैसी मजबूत नजर नहीं आ रही है. हालांकि, आम चुनाव के लिए चार स्तरीय व्यवस्था की गई है, जिसमें संसदीय क्षेत्र के प्रभारी-संयोजक सहित बूथ स्तर तक के नेताआें-कार्यकर्ताओं को भी शामिल किया गया है. इनके अलावा, नमो वॉलिंटियर्स भी हैं. लेकिन, इस बार चुनाव प्रबंधन में भाजपा की अग्निपरीक्षा है, क्योंकि प्रदेश स्तर पर कोई ऐसा प्रमुख नेता पूरे राज्य में सक्रिय नहीं है, जिसका प्रभाव और लोकप्रियता पूरे राजस्थान में हो. वैसे भी राजस्थान में इस वक्त केवल पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ही ऐसी नेता हैं, जिनकी पूरे प्रदेश में पहचान है, किंतु वे भी विधानसभा चुनाव की तरह आक्र ामक नजर नहीं आ रही हैं.

अभी प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कर्इं सभाएं होने जा रही है, जिनमें यह साफ हो जाएगा कि इस वक्त भाजपा का पॉलिटिकल मैनेजमेंट कितना वास्तविक है और कितना दिखावटी, भाजपा नेताओं की सक्रि यता कितनी असली है और कितनी रस्म अदायगी है? राजस्थान में भाजपा के लिए चुनौती इसलिए भी बड़ी है कि 2014 में यहां की सभी 25 सीटें भाजपा ने जीत लीं थी, लेकिन अब उन्हें फिर से हासिल करना बेहद मुश्किल लग रहा है. राजस्थान में 25 संसदीय क्षेत्र हैं, जिनमें प्रत्येक लोकसभा क्षेत्र में 8 विधानसभा क्षेत्र आते हैं. 

भाजपा का खास फोकस बूथ स्तर पर है. भाजपा की हार-जीत इन बूथ समितियों की सक्रियता पर ही निर्भर है कि ये अधिक से अधिक मतदान कैसे करवाती हैं. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यदि राजस्थान में भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं को 2014 की तरह एकजुट और सक्रिय नहीं किया जा सका, तो सैद्धांतिक सियासी प्रबंधन का कोई बड़ा लाभ नहीं होगा जो कांग्रेस के लिए लाभदायी है.

Web Title: Gehlot on Shah in Junking and Election Management

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