किसानों की लोन माफी प्रतियोगिता में कौन सी पार्टी है सबसे आगे, चुनाव से पहले ही क्यों याद आते हैं किसान?
By विकास कुमार | Published: December 18, 2018 06:15 PM2018-12-18T18:15:17+5:302018-12-18T18:15:17+5:30
सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने के लिए लोन माफी प्रतियोगिता की शुरुआत सबसे पहले कांग्रेस पार्टी ने ही की थी। 2009 के लोकसभा चुनाव से पहले जब पार्टी के ऊपर तमाम तरह के भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे थे, तब चुनाव से पहले किसानों के 70 हजार करोड़ का लोन माफ कर कांग्रेस ने हारी हुई बाजी को जीत लिया था।
भारत की राजनीति में चुनाव से ठीक पहले किसानों को लोन माफ करने का वादा करना देश के राजनीतिक दलों का राष्ट्रीय फैशन हो गया है। और यह तरकीब अब काम भी कर रही है। उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने किसानों का लोन माफ करने का वादा किया था, चुनाव हुए और वोटों की बंपर फसल लहलहाई। योगी आदित्यनाथ की सरकार ने अपने पहले फैसले में ही प्रदेश के किसानों का 36,359 करोड़ का लोन माफ कर दिया। इसके पहले भाजपा शासित महाराष्ट्र ने भी किसानों के 30,000 करोड़ के लोन को माफ किया था।
भाजपा द्वारा इस ट्रेंड को अपनाने के बाद कांग्रेस ने खुद को रेस में पिछड़ता हुआ पाया। पंजाब विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने भी किसानों के लोन माफ करने का वादा किया। और नतीजा भाजपा और अकाली दल को हटाते हुए सरकार बना ली। जून 2017 में अमरिंदर सिंह ने पंजाब के किसानों के 20,500 करोड़ के लोन माफ कर दिए। उनके इस फैसले के बाद भाजपा और कांग्रेस में किसानों की सबसे ज्यादा हितैषी पार्टी होने का प्रतियोगिता शुरू हो गया।
कांग्रेस और भाजपा में लोन माफी प्रतियोगिता
इसके जवाब में राजस्थान में वसुंधरा राजे की सरकार ने सितम्बर 2017 में किसानों के 20,000 करोड़ के लोन माफ करने की बात कही। इससे साफ झलकता है कि राजनीतिक मकसद को पूरा करने के लिए कैसे इन दोनों पार्टियों ने किसानों को तत्कालिक राहत देकर जनता का आशीर्वाद प्राप्त किया है। कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस की गठबंधन सरकार ने किसानों के 9000 करोड़ का लोन माफ कर दिया। अब मामला बराबर का हो गया था।
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों से पहले राहुल गांधी को ये लग गया था कि हिंदी हार्टलैंड के तीन महत्त्वपूर्ण राज्यों में अगर सरकार बनाना है तो भाजपा के सबसे बड़े दाव को उसके ही खिलाफ क्यों न अजमाया जाए ? इधर, केंद्र में मोदी सरकार और आरबीआई के बीच तनातनी चरम पर पहुंच गया था। बढ़ते एनपीये के बोझ के कारण आरबीआई ने बैंकों पर नकेल कसना शुरू कर दिया था। और केंद्र को भी अपने रिज़र्व से नगदी देने से मना कर दिया। इसके कारण बीजेपी इन राज्यों में लोन माफ करने के दावे से चूक गई। कांग्रेस सत्ता में नहीं थी, इसलिए कुछ भी दावे कर सकती थी। राहुल गांधी ने इन सभी राज्यों में सत्ता में आने के 10 दिनों के भीतर किसानों के लोन माफ करने का वादा किया था।
हुआ भी ऐसा ही, कांग्रेस सत्ता में आई और किसानों के लोन को माफ कर दिया गया। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने किसानों के 2 लाख तक के लोन को माफ कर दिया। राज्य के खजाने पर इसका 35,000 करोड़ का बोझ पड़ सकता है। कमलनाथ के इस फैसले के बाद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी अनुशासित नेता का प्रदर्शन करते हुए 6100 करोड़ के लोन को माफ कर दिया। इससे फायदा राज्य के 16 लाख किसानों को मिलेगा। राहुल गांधी ने कहा था कि अगर उनके मुख्यमंत्री किसानों का लोन माफ 10 दिनों के भीतर नहीं करते, तो राहुल ग्यारहवें दिन मुख्यमंत्री बदल देते। खैर, कांग्रेस में किसी की मजाल है जो आलाकमान के फैसले को खारिज कर दे।
कांग्रेस है संस्थापक
सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने के लिए लोन माफी प्रतियोगिता की शुरुआत सबसे पहले कांग्रेस पार्टी ने ही की थी। 2009 के लोकसभा चुनाव से पहले जब पार्टी के ऊपर तमाम तरह के भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे थे, तब चुनाव से पहले किसानों के 70 हजार करोड़ का लोन माफ कर कांग्रेस ने हारी हुई बाजी को जीत लिया था। कहा जाता है कि इसके बाद सभी पार्टियों ने चुनाव जीतने के लिए किसानों के लोन माफी को चुनावी हथकंडे के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया, जो आजतक जारी है। आगे भी रहेगी।