चुनावी किस्साः ...जब मथुरा लोकसभा सीट से अटल बिहारी वाजपेयी की जमानत जब्त हो गई थी!

By भाषा | Published: April 4, 2019 01:32 PM2019-04-04T13:32:05+5:302019-04-04T14:01:40+5:30

इतिहास के झरोखे सेः उस चुनाव में मथुरा में कांग्रेस और जनसंघ के उम्मीदवारों को पछाड़ते हुए स्वतंत्र रूप से लड़े राजा महेंद्र प्रताप सिंह विजयी घोषित हुए थे। चौथे स्थान पर रहे अटल बिहारी वाजपेयी की जमानत जब्त हो गई थी।

Election Stories: When Atal Bihari Vajpeyi defeated, Interesting facts about Mathura | चुनावी किस्साः ...जब मथुरा लोकसभा सीट से अटल बिहारी वाजपेयी की जमानत जब्त हो गई थी!

चुनावी किस्साः ...जब मथुरा लोकसभा सीट से अटल बिहारी वाजपेयी की जमानत जब्त हो गई थी!

Highlightsअटल बिहारी वाजपेयी को मथुरा में पड़े कुल पड़े 2 लाख 34 हजार 19 मतों में से मात्र 23 हजार 620 मत मिले थे।मथुरा लोकसभा सीट का इतिहास भी बड़ा ही विचित्र रहा है।भाजपा उम्मीदवार बतौर हेमामालिनी 3 लाख 30 हजार से अधिक मतों से विजयी रहीं।

आम चुनाव के इतिहास में मथुरा शहर की एक खास जगह है। दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी 1957 में दूसरे आम चुनाव में न केवल मथुरा से चुनाव हार गए थे, बल्कि उनकी जमानत भी जब्त हो गई थी। हालांकि भारतीय जनसंघ व भारतीय जनता पार्टी के संस्थापकों में शामिल रहे वाजपेयी इस चुनाव में पहली बार उत्तर प्रदेश की बलरामपुर लोकसभा सीट से जीत गए थे। उस समय उन्होंने बलरामपुर और मथुरा दो सीटों से लोकसभा का चुनाव लड़ा था।

उस चुनाव में मथुरा में कांग्रेस और जनसंघ के उम्मीदवारों को पछाड़ते हुए स्वतंत्र रूप से लड़े राजा महेंद्र प्रताप सिंह विजयी घोषित हुए थे। इससे पहले के चुनाव में कांग्रेस के प्रो. कृष्ण चंद्र को जिताने वाली जनता ने राजा महेंद्र प्रताप को हाथों-हाथ लेते हुए जनसंघ के अटल बिहारी वाजपेयी को चौथे नंबर पर ढ़केल दिया था। तब उन्हें मात्र 10 फीसद मत मिल पाए थे। किंतु, उस समय वह बलरामपुर के साथ-साथ मथुरा व लखनऊ से भी जनसंघ प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े थे।

लखनऊ से तो उन्होंने 33 प्रतिशत मत प्राप्त कर जैसे-तैसे इज्जत बचा ली थी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के चौधरी दिगम्बर सिंह दूसरे, पूरन निर्दलीय तीसरे व वाजपेयी चौथे स्थान पर रहे। उस समय उन्हें कुल पड़े 2 लाख 34 हजार 19 मतों में से मात्र 23 हजार 620 मत मिले थे। हालांकि, मथुरा के वरिष्ठतम जनसंघ एवं भारतीय जनता पार्टी के नेता तथा मथुरा में अटल बिहारी वाजपेयी के सहयोगी रहे बांकेबिहारी माहेश्वरी का कहना है कि जब मतदान में एक-दो दिन ही शेष रह गए थे, तो वाजपेयी ने स्वयं मथुरा की जनता से अपील की थी कि वे उन्हें मत न देकर राजा महेंद्र प्रताप को जिताएं।

इसके पीछे वह तर्क देते हैं कि वाजपेयी कांग्रेस को हर कीमत पर हराना चाहते थे। उनकी नजर में राजा महेंद्र प्रताप का मथुरा और पूरे देश व समाज के लिए किया गया त्याग व समर्पण एक सांसद बनने से बहुत ज्यादा महत्व रखता था। इसलिए वे उन्हें जिताना चाहते और उन्होंने यह करके भी दिखा दिया। लेकिन, मथुरा लोकसभा सीट का इतिहास भी बड़ा ही विचित्र रहा है। अगले ही चुनाव में मथुरा ने पलटा खाया और पूरा परिणाम उल्टा हो गया। 1962 में, राजा महेंद्र प्रताप दूसरे नंबर पर रहे और चौधरी दिगम्बर सिंह चुनाव जीत गए।

मथुरा के सादाबाद क्षेत्र के कुरसण्डा निवासी चौधरी दिगम्बर सिंह इस जनपद के उन प्रतिनिधियों में से एक हैं जो इस सीट से तीन बार लोकसभा पहुंचने में कामयाब हुए। 1962 के बाद वह चौथी लोकसभा के दौरान मथुरा के तत्कालीन सांसद गिरिराज शरण सिंह उर्फ राजा बच्चू सिंह के निधन के चलते 1970 में हुए उपचुनाव में विजयी हुए। इसके बाद, 1980 में जनता पार्टी (सेकुलर) के टिकट पर तीसरी बार मथुरा के सांसद बने।

वैसे, पहली लोकसभा के लिए वह एटा-मैनपुरी-मथुरा सीट से भी सांसद चुने जा चुके थे। उनके बाद भाजपा के चौ. तेजवीर सिंह ने 1996, 1998 व 1999 में लगातार जीतकर तिकड़ी बनाई। उनसे पूर्व कांग्रेस के कुंवर मानवेंद्र सिंह 1984 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस तथा 1989 में जनता दल से, दो बाद जीत चुके थे। कुंवर मानवेंद्र सिंह को 2004 में एक बार फिर कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में पुनः सांसद चुने जाने में सफलता मिली और वह भी तीन बार मथुरा के सांसद बनने में सफल हुए। मथुरा सीट से जीतने वालों के कई किस्से बहुत मशहूर हैं।

मूलतः मांट के निवासी सिंडीकेट बैंक के पिग्मी खाता एजेंट 80 वर्षीय रामबाबू तिवारी बताते हैं कि 1967 में मथुरा से सांसद बने भरतपुर राजपरिवार के सदस्य राजा बच्चू सिंह ने तो क्षेत्र में पैर रखे बिना ही जीत हासिल कर ली थी। उस समय गिरिराज शरण सिंह उर्फ राजा बच्चू सिंह ने ऐलान कर दिया था कि वे मथुरा में पैर तक नहीं रखेंगे और चुनाव जीतकर दिखाएंगे। इसके लिए उन्होंने प्रचार के नाम पर बस अपनी तरफ से एक अपील छपवाकर हैलिकॉप्टर द्वारा पूरे मथुरा जनपद में पैम्फलेट बरसवा दिए थे और वे भारी मतों से जीते। उनके बाद, 1971 में कांग्रेस के ठा. चकलेश्वर सिंह विजयी रहे।

1977 में बाहरी प्रत्याशी मनीराम बागड़ी ने तो भारतीय लोकदल की टिकट पर ऐसा रिकॉर्ड बनाया जिसे अभी तक कोई दल या कोई प्रत्याशी तोड़ना तो दूर, आसपास तक नहीं पहुंच सका है। उन्होंने उस समय पड़े 3 लाख 92 हजार 137 मतों में से रिकॉर्ड 76.79 प्रतिशत (2 लाख 96 हजार 518) मत प्राप्त कर एक ऐसा कीर्तिमान स्थापित कर दिया जो बयालीस वर्ष बाद तक अक्षुण्ण है। लेकिन, यहां के मतदाताओं को उनकी सबसे बड़ी जो याद है, वह यह है कि आपातकाल लागू करने वाली कांग्रेस के राज से मुक्ति पाने के लिए चुनावी सभाओं में वोट के साथ-साथ खुलेआम नोट की भी मांग की और बाकायदा उस समय की करेंसी के सबसे छोटे सिक्के (एक पैसा, दो पैसा) तक झोली फैलाकर लोगों से लेने से नहीं चूके।

दूसरे, वे एक बार जीत कर गए तो फिर कभी मथुरा की ओर मुड़कर भी नहीं देखा। शायद, यही वजह है कि मथुरा के मतदाता बाहरी प्रत्याशियों से जल्दी तालमेल नहीं बना पाते। लेकिन, जब वे अपने यहां नेतृत्व-शून्यता का अहसास करते हैं तो फिर उन्हीं पर दांव खेलने को मजबूर हो जाते हैं। 1991 में, भारतीय जनता पार्टी ने साधू समाज के सच्चिदानन्द हरि साक्षी को सांसद बनने का मौका दिया। लेकिन, पांच वर्ष के कार्यकाल में वे कुछ ऐसा प्रभाव न छोड़ सके जिससे पार्टी उन्हें दुबारा यहां से लड़ा पाती।

2009 में, कांग्रेस समर्थित राष्ट्रीय लोकदल के उम्मीदवार जयंत चैधरी ने जाट मतदाता बहुल सीट पर कब्जा कर लिया। लेकिन, पिछले चुनाव में वे नरेंद्र मोदी की आंधी में उसे बचा न सके। भाजपा उम्मीदवार बतौर हेमामालिनी 3 लाख 30 हजार से अधिक मतों से विजयी रहीं। इस बार भाजपा ने एक बार फिर उन्हीं पर दांव लगाया है। जबकि, सपा-बसपा-रालोद गठबंधन ने पूर्व सांसद कुंवर मानवेंद्र सिंह के छोटे भाई नरेंद्र सिंह को उतरने का मौका दिया है। लेकिन कांग्रेस के महेश पाठक निश्चित रूप से विपक्ष के मतों का बंटवारा कर उन्हें कमजोर करने का प्रयास करेंगे। इस सीट पर तो लड़ाई इन्हीं तीन उम्मीदवारों के बीच होती दिखाई दे रही है।

English summary :
Mathura city has a special place in the history of general elections. Late former prime minister Atal Bihari Vajpayee, in 1957, lost his election not only from Mathura but also his security was seized.


Web Title: Election Stories: When Atal Bihari Vajpeyi defeated, Interesting facts about Mathura



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