कश्मीरी पंडित राहुल भट्ट की हत्या से उपजे तनाव को बुजुर्ग दुलारी की मौत ने किया कम, 80 साल की वृद्धा का मुसलमानों ने परिजनों के साथ मिलकर किया अंतिम संस्कार
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: May 14, 2022 10:35 PM2022-05-14T22:35:28+5:302022-05-14T22:41:17+5:30
कश्मीर में राहुल भट्ट की हत्या से उपजे के बीच एक और दुखद घटना हुई लेकिन इस घटना से कश्मीरी पंडितों को घाटी के मुसलमानों से हौसला मिला। कुलगाम में एक 80 साल की कश्मीरी पंडित महिला दुलारी भट्ट की प्राकृतिक मौत हो गई। जिनका अंतिम संस्कार उनके गांव के मुलमानों ने परिजनों के साथ मिलकर किया।
कश्मीर: आतंकियों के हाथों हुई कश्मीरी पंडित राहुल भट्ट की हत्या के बाद से जम्मू-कश्मीर समेत पूरा देश घाटी में रह रहे कश्मीरी पंडितों की सुरक्षा के लिए चिंता में है।
ऐसे तनाव भरे समय में एक और दुखद घटना हुई लेकिन इस घटना से कश्मीरी पंडितों को घाटी के मुसलमानों से हौसला मिला। जानकारी के मुताबिक बडगाम के बेहद तनाव भरे माहौल के बीच कुलगाम में एक 80 साल की कश्मीरी पंडित महिला दुलारी भट्ट की प्राकृतिक मौत हो गई।
वृद्धा दुलारी की मौत के बाद मुसलमानों ने कश्मीरी पंडितों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर उनका अंतिम संस्कार किया। दुलारी कुलगाम के वाई के पोरा गांव की रहने वाली थीं।
जानकारी के मुताबिक 80 साल की भट्ट एक विवाह समारोह में शामिल होने के लिए कुलगाम से अनंतनाग गई थीं, जहां अचानक उनकी तबियत खराब हो गई और उन्होंने दम तोड़ दिया।
इसके बाद दुलारी के परिजन उनका शव लेकर अनंतनाग से लेकर कुलगाम स्थित उसके पैतृक गांव वाई के पोरा लेकर आये, जहां गांव के सैकड़ों मुस्लिम पड़ोसी वृद्धा दुलारी भट्ट के शव की प्रतिक्षा कर रहे थे।
समाचार वेबसाइट 'इंडिया टुडे' के मुताबिक मट्टन के गाव के रहने वाले अल्ताफ अहमद ने कहा, “मट्टन बहुत अच्छी थीं, उनके हर त्योहारों पर गांव के मुसलमान उनसे मिलने के लिए जाते थे और जब भी गांव में किसी की मौत हो जाती थी वो सभी तरह के रिचुअल के पारे में गांववालों को बताया करती थीं। वह कश्मीरियत की जिंदा मिसाल थीं। अब जब वो चली गईं तो हमारा फर्ज था कि हम भी उन्हें इज्जत और सम्मान के साथ आखिरी विदाई दें।”
मृत वृद्धा दुलारी भट्ट के पति जानकी नाथ भट्ट की हत्या आतंकियों द्वारा दशकों पहले कर दी गई थी। उसके बाद भी दुलारी बिना किसी भय या दहशत के जीवनभर कुलगाम के उसी वाई के पोरा के गांव में बड़े आराम से रहीं।
दुलारी की मृत्यु के बाद उनके बेटे सुभाष भट ने कहा कि वे गांव के मुसलमानों के बेहद शुक्रगुजार हैं जो उन्होंने दुख के वक्त में हमारा साथ दिया और हमें अकेल महसूस नहीं होने दिया।
उन्होंने कहा, “90 के उस खतरनाक माहौल में आतंकियों ने मेरे पिता की हत्या कर दी लेकिन उसके बाद भी पूरा गांव हमारे साथ डंटकर खड़ा रहा। गांववालों ने हमें हिम्मत दी और हमने कभी घाटी नहीं छोड़ी।"
दिवंगत दुलारी के रिश्तेदार चुन्नी लाल भट ने कहा कि वाई के पोरा गांव के मुसलमान वाकई सच्चे इंसान हैं। उन्होंने कश्मीर की सांझी संस्कृति और भाईचारे का बेशकीमती उदाहरण दिया है।
उन्होंने कहा, "दुलारी के जाने का बाद गांव के सारे मुसलमान उसके शव के पास इकट्ठा हुए और पूरे रीति-रिवाज के साथ दुलारी का अंतिम संस्कार किया। घाटी में मुस्लिम और पंडित एक दूसरे के बिना हमेशा अधूरे रहेंगे।"