नामिबिया से लाए जा रहे 8 चीते, पीएम मोदी अपने जन्मदिन पर 17 सितंबर को करेंगे 'स्वागत', जानिए क्या है इसका मकसद
By विनीत कुमार | Published: September 13, 2022 06:34 PM2022-09-13T18:34:48+5:302022-09-13T18:43:02+5:30
भारत में 1952 में चीतों को विलुप्त घोषित कर दिया गया था। हालांकि अब एक बार फिर यहां चीतों को बसाने तैयारी चल रही है। 8 चीतों को नामिबिया से भारत लाया जा रहा है। पीएम नरेंद्र मोदी अपने जन्मदिन पर 17 सितंबर को इन चीतों को क्वारंटीन किए गए क्षेत्र में छोड़ेंगे।
नई दिल्ली: भारत से लुप्त हो चुके चीतों को एक बार फिर यहां बसाने की तैयारी जारी है। इसके लिए 8 चीतों को अफ्रीका के नामिबिया से भारत लाया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 17 सितंबर को अपने जन्मदिन के मौके पर स्वयं अपने हाथों से इस योजना की शुरुआत करेंगे। इसके तहत चीतों को कुछ दिनों तक मध्य प्रदेश के कूनो-पालपुर राष्ट्रीय उद्यान में एक क्वारंटीन किए गए स्थान पर रखा जाएगा।
भारत पहले एशियाई चीतों का गढ़ हुआ करता था। हालांकि ये प्रजाति 1952 में विलुप्त घोषित कर दी गई। माना जाता है कि एक राजा ने आखिरी तीन चीतों का मार डाला था।
साल 2020 के बाद से सरकार चीतों के पुन:वास के लिए काम कर रही है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने इजाजत दे चुकी है कि एक अलग उप-प्रजाति यानी अफ्रीकी चीतों को प्रयोगात्मक आधार पर "सावधानीपूर्वक चुने गए स्थान" में बसाया जा सकता है।
पांच नर और तीन मादा चीते पहुंच रहे भारत
नामिबिया से पांच नर और तीन मादा चीते लाए जा रहे हैं। आने वाले दिनों में भारत सरकार कुछ और चीतों को भी अफ्रीका से मंगा सकती है। न्यूज एजेंसी एएफपी ने बताया कि पर्यावरण मंत्रालय के एक अधिकारी के अनुसार शनिवार को भारत पहुंच रहे चीतों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं क्वारंटीन किए गए क्षेत्र में छोड़ेंगे।
कुछ दिनों बाद चीतों को कुछ बड़े सुरक्षित इलाके में छोड़ा जाएगा। वहां की परिस्थिति में ढल जाने के बाद इन्हें कूनो-पालपुर राष्ट्रीय उद्यान के खुले जंगल में छोड़ दिया जाएगा।
10 घंटे की यात्रा के बाद चीते पहुंचेंगे जयपुर
चीते हवाई मार्ग से 10 घंटे की लंबी यात्रा के बाद सबसे पहले नामिबिया से जयपुर पहुंचेंगे। वहां से इन्हें हेलीकॉप्टर के जरिए कूनो पार्क लाया जाएगा। पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि यह परियोजना जानवरों के संरक्षण के वैश्विक प्रयासों का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि लॉन्च के लिए पीएम मोदी की उपस्थिति 'हम सभी को उत्साह और ऊर्जा देगी।'
चीतों को बसाने में चुनौतियां भी कम नहीं
मध्य प्रदेश के कूनो में प्रचुर मात्रा में शिकार और घास के मैदानों के कारण इसे अफ्रीकी चीतों को बसाने के लिए चुना गया है। हालांकि, कुछ आलोचकों का कहना है कि चीतों को यहां के अनुकूल होने के लिए संघर्ष करना पड़ सकता है। खासकर इन इलाकों में पहले मौजूद तेंदुओं से उनकी भिड़ंत हो सकती है।
परियोजना में शामिल प्रिटोरिया विश्वविद्यालय में एक पशु चिकित्सक और वन्यजीव प्रोफेसर एड्रियन टॉर्डिफ ने कहा कि दक्षिण अफ्रीका ने भारत को दो प्रजातियों को अलग-अलग रखने के लिए अतिरिक्त पार्कों का उपयोग करने की सलाह दी थी।
उन्होंने कहा, 'मुझे नहीं लगता कि यह बड़े चीतों के लिए एक समस्या होगी..वे अन्य शिकारियों के साथ रहने की कला से परिचित हैं। लेकिन हमारे पास ऐसी स्थिति हो सकती है जहां हमें शावकों को जीवित रहने में समस्या हो।'
भारत में कैसे खत्म हो गए चीते?
भारत में चीता के विलुप्त होने के पीछे उनके निवास वाले स्थानों और जंगलों में में इंसानों की घुसपैठ और अत्यधिक शिकार जैसी वजहें मुख्य हैं। स्थानीय राजाओं और ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा चीतों के शिकार से संख्या में तेजी से कमी आई।
माना जाता है कि महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने 1940 के दशक के अंत में भारत में देखे गए अंतिम तीन चीतों को मार डाला था। 1948 में अंतिम तीन एशियाई चीतों का शिकार किया गया। 1952 में चीता को भारत में विलुप्त घोषित कर दिया गया था। फिलहाल चीते दुनिया भर में 7,000 से भी कम बचे हैं। इसमें से भी मुख्य रूप से चीते अफ्रीकी सवाना में हैं।