संपादकीय: भुखमरी से जूझते देश में खाद्यान्न सड़ना त्रासदी
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: November 30, 2019 07:15 AM2019-11-30T07:15:00+5:302019-11-30T07:15:00+5:30
अगर प्याज की कीमतें आसमान न छूतीं तो लोगों को शायद पता भी न चलता कि बफर स्टॉक का आधा प्याज सड़ चुका है.
एक तरफ जहां देश में प्याज की कीमतें आसमान छू रही हैं, वहीं बफर स्टॉक के रूप में रखे गए 65 हजार टन में से 32 हजार टन अर्थात करीब 50 प्रतिशत प्याज का सड़ना बहुत बड़ी त्रसदी है. इस खबर की सच्चाई पर संदेह भी नहीं किया जा सकता, क्योंकि खुद केंद्रीय उपभोक्ता मंत्री रामविलास पासवान ने संसद में यह जानकारी दी है.
बुधवार को उन्होंने सदन को यह भी बताया कि इस साल बारिश और बाढ़ के चलते प्याज की पैदावार में 26 प्रतिशत तक की गिरावट आई है. उल्लेखनीय है कि देश भर में इन दिनों प्याज की कीमतों में भारी उछाल आया हुआ है और दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई जैसे महानगरों में यह 100 से 120 रु. किलोग्राम तक के भाव में बिक रहा है.
अगर प्याज की कीमतें आसमान न छूतीं तो लोगों को शायद पता भी न चलता कि बफर स्टॉक का आधा प्याज सड़ चुका है. यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति केवल प्याज ही नहीं बल्कि सरकारी भंडारगृहों में रखे सभी तरह के अनाजों, सब्जियों के बारे में है. पिछले साल आरटीआई में हुए एक खुलासे के अनुसार दस सालों में देश में सरकारी गोदामों में रखा 7.80 लाख क्विंटल अनाज सड़ गया. अनाज के सड़ने की सबसे बड़ी वजह इसका भीगना होता है क्योंकि ज्यादातर गोदामों में अनाज रखने की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होती.
यह स्थिति तब है जब देश में प्रतिदिन करीब 20 करोड़ लोगों को भूखे पेट रहना पड़ता है या बहुत कम भोजन मिलता है. यहां तक कि रोज 821 बच्चे पर्याप्त खाना नहीं मिल पाने के कारण दम तोड़ देते हैं. वैश्विक भूख सूचकांक की 117 देशों की सूची में भारत 102वें स्थान पर है. वर्ष 2014 के बाद से ही भारत की कमोबेश यही हालत रही है. यहां तक कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देश भी सूची में भारत से आगे हैं.
ऐसे में यह लापरवाही अक्षम्य है और इसे आपराधिक मान कर इसके जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई की जानी चाहिए. एक तरफ तो अन्नदाता किसान की हालत ऐसी है कि वह आत्महत्या करने पर मजबूर है, दूसरी तरफ उसके द्वारा उगाया जाने वाला अन्न भूखों के पेट में न जाकर सड़ रहा है.
यह सच है कि प्राकृतिक आपदा के चलते पैदावार अक्सर प्रभावित होती है, लेकिन तकनीकी दृष्टि से उन्नत आज के समय में भी उत्पादित अनाज, सब्जियों को सहेज कर न रखा जा सके, यह अक्षम्य है. यह विडंबना ही है कि एक तरफ तो हम दुनिया के दूसरे सबसे बड़े खाद्यान्न उत्पादक देश हैं, वहीं कुपोषण के मामले में भी हम दुनिया में दूसरे नंबर पर हैं. इस त्रसदी को हर हाल में रोका जाना जरूरी है.