संपादकीय: देश में डर के माहौल को लेकर बढ़ती चिंता

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: December 2, 2019 08:13 AM2019-12-02T08:13:45+5:302019-12-02T08:13:45+5:30

बजाज अपने विचारों को खुलेआम व्यक्त करने का साहस दिखा रहे हैं, वहीं कुछ लोग परिणामों की चिंता में अपने विचार अपने मन में रख कर बैठे हैं.

Editorial: India under atmosphere of fear is a cause of concern | संपादकीय: देश में डर के माहौल को लेकर बढ़ती चिंता

संपादकीय: देश में डर के माहौल को लेकर बढ़ती चिंता

बेबाक और बेखौफ विचारों को रखने के लिए विख्यात देश के जाने-माने उद्योगपति राहुल बजाज ने फिर एक बार सार्वजनिक मंच पर अपने दिल की बात कहने से गुरेज नहीं किया. मुंबई में आयोजित कार्यक्रम में मोदी सरकार के प्रमुख मंत्रियों की मौजूदगी में बजाज ने कुछ ऐसी बातें कहीं, जो देश के वर्तमान परिदृश्य पर सवाल खड़ा कर रही थीं. 

वह पिछली सरकारों से तुलना कर नई सरकार को लेकर बने डर के साये को रेखांकित कर रहे थे. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सांसद साध्वी प्रज्ञा के बयानों से भी आहत बजाज के विचार इतने आक्रामक थे कि मंच पर उनके सवालों का सही जवाब देने वाला कोई नहीं मिला. मगर लोगों के दिल का गुस्सा जरूर खुल कर सामने आ गया. हाल के दिनों में देश में एक बड़ा वर्ग मान रहा है कि उसे अपने विचारों को व्यक्त करने में कहीं न कहीं डर का सामना करना पड़ रहा है, जो राजनीतिक न होकर सरकारी है.
 
यूं तो देश में आपातकाल के दौरान आम आदमी पर पहरा तत्कालीन व्यवस्था का हिस्सा था, क्योंकि वह घोषित सरकारी कार्रवाई थी. किंतु वर्तमान समय में अघोषित तौर पर निगरानी और अंकुश को लेकर बजाज जैसे अनेक व्यक्तियों के मन में सवालों का उठना स्वाभाविक है. 

बजाज अपने विचारों को खुलेआम व्यक्त करने का साहस दिखा रहे हैं, वहीं कुछ लोग परिणामों की चिंता में अपने विचार अपने मन में रख कर बैठे हैं. दरअसल उद्योग, कला, संस्कृति जैसे अनेक क्षेत्रों से यह नई चिंता का कारण है, जिसे दूर करने के लिए सरकार की तरफ से केवल जुबानी कोशिशें जारी हैं. दूसरी तरफ यदि कोई विरोधी आवाज उठती है तो उसे दबाने की तयशुदा रणनीति बेखौफ काम करती है. 

हालांकि सरकारी स्तर पर गांधीवाद से लेकर संविधान और स्वतंत्रता से लेकर सुधारों तक अनेक किस्म के प्रयासों का जोर-शोर से प्रचार-प्रसार होता है. किंतु कभी खुली तो कभी दबी आवाज में चिंताएं तो बनी हुई हैं. इसका समाधान केवल आश्वासनों से नहीं, बल्कि आचरण में बदलाव से दिखना चाहिए. 

संभव है कि लंबे समय से व्यवस्था में अनेक गड़बड़ियां घर कर रही होंगी, अनेक लोगों ने लोकतांत्रिक आजादी का नाजायज फायदा उठाया होगा, आर्थिक खुलेपन ने स्वार्थी तैयार किए होंगे, मगर सबका इलाज एक दवा से असंभव है. एक व्यक्ति के गुनाह की सजा यदि सैकड़ों लोग भुगतेंगे तो असंतोष बढ़ेगा और सरकार कठघरे में खड़ी होगी. इसलिए छवि-सुधार के दिखावटी प्रयासों से काम नहीं चलेगा, क्योंकि इस डर के आगे जीत नहीं, बल्कि हार भी संभव है.

Web Title: Editorial: India under atmosphere of fear is a cause of concern

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