भाजपा के लिए सत्ता सेवा का माध्यम है, मेवा का माध्यम नहीं, अर्थव्यवस्था पैसेंजर ट्रेन के तौर पर विरासत में मिली: जयंत
By भाषा | Published: July 8, 2019 05:26 PM2019-07-08T17:26:02+5:302019-07-08T17:26:02+5:30
लोकसभा में आम बजट 2019-20 पर चर्चा में भाग लेते हुए भाजपा के जयंत सिन्हा ने कहा कि आर्थिक विकास की जो गति है, उसमें थोड़ी सी वृद्धि करके हम अगले कुछ वर्षों में पांच हजार अरब डॉलर ही नहीं, बल्कि 10 हजार अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य तक पहुंच सकते हैं।
भाजपा ने मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले आम बजट को ‘ऐतिहासिक एवं दूरदर्शी’ करार देते हुए सोमवार को कहा कि 2014 में उसे अर्थव्यवस्था पटरी से उतरी पैसेंजर ट्रेन के तौर पर मिली थी जिसे पिछले पांच वर्षों में राजधानी एक्सप्रेस ट्रेन बनाया गया और अब इसे बुलेट ट्रेन बनाया जाएगा।
लोकसभा में आम बजट 2019-20 पर चर्चा में भाग लेते हुए भाजपा के जयंत सिन्हा ने कहा कि आर्थिक विकास की जो गति है, उसमें थोड़ी सी वृद्धि करके हम अगले कुछ वर्षों में पांच हजार अरब डॉलर ही नहीं, बल्कि 10 हजार अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य तक पहुंच सकते हैं।
उन्होंने कहा कि 2014 में मोदी सरकार को जो अर्थव्यवस्था विरासत में मिली थी वो बहुत दयनीय स्थिति में थी। वह पटरी से उतरी पैसेंजर ट्रेन की तरह थी। हमारी सरकार ने पांच वर्षों में उसे राजधानी ट्रेन बनाया और अब इसे बुलेट ट्रेन बनाएंगे।
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि पांच साल पहले मोदी सरकार बनने के समय देश की जीडीपी 111 लाख करोड़ रुपये थी, जिसे पांच वर्षों में 188 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचाया गया। उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था के विकास की जो मौजूदा गति है उसमें थोड़ी बढ़ोतरी करके हम जीडीपी को 350 लाख करोड़ रुपये और 700 लाख करोड़ रुपये तक ले जा सकते हैं।
सिन्हा ने कहा कि दुनिया में किसी भी संघीय ढांचे वाले देश में जीएसटी को दो साल के समय में क्रियान्वित नहीं किया जा सका। मलेशिया में ऐसी कोशिश करते हुए सरकार चली गई। परंतु भारत में जनता ने मोदी सरकार को और बड़े बहुमत से दोबारा चुना।
उन्होंने कहा कि भाजपा के लिए सत्ता सेवा का माध्यम है, मेवा का माध्यम नहीं है। सिन्हा ने कहा कि ग्रामीण, गरीब और किसान पर खर्च करके ही उपभोग को बढ़ाया जा सकता है जिससे अर्थव्यवस्था को ताकत मिलेगी। मोदी सरकार इसी काम को महत्व दे रही है। उन्होंने कहा कि इस सरकार ने गरीबों को ‘स्लोगन’ नहीं, बल्कि साधन दिए हैं।