डॉ. राजेंद्र सिंह के प्रयासों से किसान बन गए चंबल के डकैत, जानिए भारत के 'वाटरमैन' के बारे में

By अनुभा जैन | Published: May 29, 2023 05:40 PM2023-05-29T17:40:52+5:302023-05-29T17:43:16+5:30

स्टॉकहोम जल पुरस्कार के विजेता राजेंद्र सिंह अलवर के तरुण भारत संघ से जब जुड़े उस समय यह संगठन कैंपस में आग के शिकार लोगों की मदद के लिए बनाया गया था। 1984 में संघ का भार पूरी तरह से सिंह के कंधों पर आ गया और यह उनके जीवन का प्रमुख मोड़ था जहां से पर्यावरण और जल संरक्षण की दिशा में उन्होने रूख किया।

Due to efforts of India's 'Jal Purush' Dr. Rajendra Singh dacoits of Chambal became farmers know about him | डॉ. राजेंद्र सिंह के प्रयासों से किसान बन गए चंबल के डकैत, जानिए भारत के 'वाटरमैन' के बारे में

डॉ. राजेंद्र सिंह एक स्थायी पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर रहे हैं

Highlightsडॉ. राजेंद्र सिंह एक स्थायी पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर रहे हैं64 वर्षीय सिंह को भारत के 'वाटरमैन' या 'जल पुरुष' के रूप में जाना जाता है 26 साल की छोटी उम्र में, अलवर जिले के गोपालपुरा गाँव से शुरुआत की थी

बेंगलुरु: संयुक्त राष्ट्र 2023 जल सम्मेलन में वर्ष 2024 को 'जल शांति वर्ष' घोषित किया गया। सम्मेलन के दौरान विचारक एक आम सहमति पर पहुंचे कि दुनिया को पानी के माध्यम से शांति मिल सकती है। इसी कड़ी में पानी के माध्यम से विश्व स्तर पर शांति बनाए रखने और एक अहिंसक अर्थव्यवस्था या नॉन वायलेंट इकॉनमी विकसित करने के दृष्टिकोण के लिये डॉ. राजेंद्र सिंह प्रयासरत हैं।

डॉ. राजेंद्र सिंह एक स्थायी पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर रहे हैं। मैग्सेसे पुरस्कार विजेता, प्रसिद्ध पर्यावरणविद्, और नदी पुनर्जीवनकर्ता, 64 वर्षीय सिंह को भारत के 'वाटरमैन' या 'जल पुरुष' के रूप में जाना जाता है। नदियों को पुनर्जीवित करना, प्राकृतिक जल निकायों का कायाकल्प करना, जल संरक्षण और जल संकट पर काबू पाना ऐसे पहलू हैं जिन पर सिंह अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। सिंह कहते हैं, “समुदायों के समर्थन से, हम मनुष्यों और प्रकृति के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं।’’

2013 में लंदन में आई भयंकर बाढ़ के समय, ब्रिटेन के प्रिंस चार्ल्स ने सिंह को अपने ज्ञान को साझा करने के लिये आमंत्रित किया। सिंह के मार्गदर्शन से वहां के इंजीनियरों को इस मुद्दे को हल करने और बाढ़ के पानी के सर्वोत्तम उपयोग में बेहद सहायता मिली। स्टॉकहोम जल पुरस्कार के विजेता राजेंद्र सिंह अलवर के तरुण भारत संघ से जब जुड़े उस समय यह संगठन कैंपस में आग के शिकार लोगों की मदद के लिए बनाया गया था। 1984 में संघ का भार पूरी तरह से सिंह के कंधों पर आ गया और यह उनके जीवन का प्रमुख मोड़ था जहां से पर्यावरण और जल संरक्षण की दिशा में उन्होने रूख किया। सिंह के नेतृत्व में, तरूणभारत संघ समुदाय के सहयोग से जल संरक्षण के लिए कार्य करता है और प्राकृतिक संसाधनों के समुदाय-संचालित-विकेन्द्रीकृत प्रबंधन को बढ़ावा देता है।

लोकमत को दिए साक्षात्कार में जानकारी देते हुये सिंह ने कहा, “26 साल की छोटी उम्र में, अलवर जिले के गोपालपुरा गाँव में, मेरे करियर की शुरुआत हुई। मैं आयुर्वेद चिकित्सा स्नातक भी था। मैं 1980 में सरकारी सेवा में शामिल हुआ और एक अनपढ़ किसान मंगू मीणा द्वारा साझा किये उसके ज्ञान के माध्यम से जल संरक्षण की क्षेत्र में काम करने की मुझे दिशा मिली। मंगू ने मिट्टी और पानी में अपनी निपुणता से यह समझा दिया कि कुएं में जहां सीमित खड़ी दरारें होती हैं, वहां पानी मिलने के साथ लंबी पत्तियां भी उग आती हैं। जबकि, असीमित क्षैतिज फ्रैक्चर के परिणामस्वरूप बंजर भूमि होती है। इससे मुझे जलभृतों को रिचार्ज करने के लिए उपयुक्त वर्षा जल संरक्षण संरचनाओं को डिजाइन करने में मदद मिली। सिंह ने चंबल के डकैतों के जीवन में एक बेहद महत्वपूर्ण बदलाव लाते हुये पानी की उपलब्धता के जरिये ’अहिंसा’ और ’शांति’ के मार्ग की ओर उन्हें अग्रसर किया।

राजेंद्र सिंह ने बताया, “हां, मेरी देखरेख में तरूणभारत संघ ने चंबल क्षेत्र के 2000 से अधिक डकैतों के जीवन में परिवर्तन किया। हमने इन डकैतों की बंजर भूमि में पानी पहुँचाया और उन्हें खेती की ओर मोड़ा। एक बड़ी क्रांति के रूप में इन लोगों ने बंदूकें और लूटपाट का पेशा छोड़ दिया और किसान बन आज अहिंसा और शांति का परिवर्तित जीवन जी रहे हैं। इस तरह संघ के समर्थन और लगभग 300 ग्रामीण समुदायों के प्रयास से, जहां विकेंद्रीकृत समुदाय संचालित वर्षा जल संरक्षण विधियों के माध्यम से चंबल क्षेत्र की सैरनी और पार्वती नदियां पुनर्जीवित हुईं वहीं विकेंद्रीकृत जल संचयन संरचनाओं के माध्यम से नदियों के किनारे एक अहिंसक आर्थिक प्रणाली विकसित हुई जिसने शुष्क भूमि को जल-सुरक्षित भूमि में बदला और वहां रह रहे ग्रामीणों के आजीविका का साधन भी बनी।

तरूणभारत संघ वर्षा जल संचयन के क्षेत्र में अग्रणी है। अब तक, लगभग 14,000 वर्षा जल संचयन संरचनाएं रिस्टोर की हैं जिन्होंने बंजर भूमि को बहाल कर कृषि अर्थव्यवस्था में सुधार किया है। सिंह राष्ट्रीय जल बिरादरी संगठन का भी नेतृत्व कर रहे हैं, जो देशभर की नदियों और पानी से संबंधित अन्य मुद्दों की बहाली के लिए काम कर रहा है। संगठन ने कर्नाटक के गदग जिले, यूपी और एमपी में नदियों के पुनरुद्धार के लिए काम किया है। अब महाराष्ट्र सरकार के सहयोग से राष्ट्रीय जल बिरादरी “आओ नदी को जाने“ कार्यक्रम के जरिये महाराष्ट्र की नदियों के पुनरुद्धार के लिए काम कर रही है। 

यहां संगठन ने महाराष्ट्र की 117 से अधिक नदियों के लिए नदी प्रहरी बनाए हैं जिन्हें प्रशिक्षित किया जाता है। अब तक महाराष्ट्र की दो नदियों अग्रनी और महाकाली को पुनर्जीवित किया गया है। राजेंद्र सिंह सूखे और बाढ़ पर पीपुल्स वर्ल्ड कमीशन के अध्यक्ष हैं और कमीशन संयुक्त राज्य अमेरिका की कोन घाटी और केन्या की एक काउंटी में जल संसाधन विकास के माध्यम से बाढ़ और सूखा प्रबंधन पर काम कर रहा है।

अंत में सिंह कहते हैं, "पानी की कमी, सूखा, और बाढ़ भी़ संघर्ष का कारण बनती है और हिंसा को जन्म देती है। पानी से ही शांति, सुरक्षा और अहिंसा है। लोग अपनी जड़ों की ओर लौटते हैं और अर्थव्यवस्था प्रकृति को भी पोषित करती है।"

Web Title: Due to efforts of India's 'Jal Purush' Dr. Rajendra Singh dacoits of Chambal became farmers know about him

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