जेल से रिहा होते ही डॉ. कफील खान ने योगी सरकार को घेरा, 'यूपी STF का धन्यवाद, रास्ते में मुझे एनकाउंटर में मारा नहीं'
By पल्लवी कुमारी | Published: September 2, 2020 10:19 AM2020-09-02T10:19:56+5:302020-09-02T10:19:56+5:30
डॉक्टर कफील खान पर नागरिकता संशोधन कानून (CAA)के खिलाफ 2019 में अलीगढ़ में भड़काऊ भाषण देने के आरोप में कार्रवाई की गई थी। उसके बाद राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत करीब साढ़े 7 महीने से वह मथुरा जेल में बंद थे।
मथुरा: इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर डॉक्टर कफील खान को मथुरा जेल से रिहा कर दिया गया है। मंगलवार (1 सितंबर) को इलाहाबाद हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह की पीठ ने डॉक्टर कफील की मां नुजहत परवीन की याचिका पर यह आदेश पारित किया। नुजहत परवीन ने डॉक्टर कफील की रिहाई की मांग की थी। इसी के साथ कफील पर लगाए एनएसए (राष्ट्रीय सुरक्षा कानून) को भी रद्द कर दिया था।
रिहाई के बाद डॉ. कफील खान ने उत्तर प्रदेश के योगी सरकार पर जमकर निशाना साधा है। डॉ. कफील खान ने कहा है कि 'यूपी STF का धन्यवाद, जिन्होंने मुझे एनकाउंटर में मारा नहीं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया है कि जेल में पांच दिन तक उनको भूखे-प्यासे रखा गया था।
रिहाई के बाद डॉ. कफील खान ने जुडिशरी का भी धन्यवाद दिया है। उन्होंने कहा, 'मैं जुडिशरी का बहुत शुक्रगुजार हूं, जिन्होंने अच्छा आदेश दिया। सभी 138 करोड़ देशवासियों का भी धन्यवाद दिया। डॉ. कफील खान ने कहा, मैं उन लोगों का भी धन्यवाद देता हूं, जिन्होंने संघर्ष में मेरा साथ दिया है।
योगी सरकार पर हमला बोलेत हुए डॉ. कफील खान ने कहा,
''उत्तर प्रदेश सरकार ने एक झूठा बेसलेस केस मेरे ऊपर थोपा दिया था। बिना बात के ड्रामा करके केस बनाया गया और 8 महीने तक इस जेल में रखा। इस जेल में मुझे पांच दिन तक बिना खाना, बिना पानी दिए प्रताड़ित किया गया। मैं उत्तर प्रदेश के एसटीएफ को भी धन्यवाद दूंगा, जिन्होंने मुंबई से मथुरा लाते समय मुझे एनकाउंटर में मारा नहीं।''
जानिए हाई कोर्ट ने क्या-क्या कहा?
हिरासत का आदेश रद्द करते हुए अदालत ने कहा, इस मामले में हमने पाया कि कारण संबंधी कड़ी गायब है या पूरी तरह से टूटी हुई है। वास्तव में हिरासत में लेने वाले अधिकारियों ने समर्थन वाले तथ्यों के बगैर ही आशंका जाहिर कर दी है जिसका कोई आधार नहीं है।
अदालत ने कहा, हमने इस हिरासत की वैधता भी परखी है जिसमें भारत के संविधान के अनुच्छेद 22 के उपबंध (5) के तहत डॉक्टर कफील को हिरासत के आधार और तथ्य उपलब्ध कराए गए जिससे वह जल्द से जल्द सक्षम अधिकारियों को इसकी प्रस्तुति दे सकें। जो सामग्री उन्हें उपलब्ध कराई गई वह उनके उस भाषण को सीडी में डालकर दिया गया था जो उन्होंने 12 दिसंबर, 2019 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में दिया था।
पूछे जाने पर अदालत को बताया गया कि डॉक्टर खान को भाषण की नकल नहीं उपलब्ध कराई गई। यदि डॉक्टर खान को सीडी चलाने का उपकरण उपलब्ध कराया गया होता तो भाषण की नकल उपलब्ध नहीं कराए जाने का कोई असर नहीं होता।
अदालत ने आगे कहा कि इस मामले का और एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि हिरासत बढ़ाने का आदेश डॉक्टर खान को कभी नहीं उपलब्ध कराया गया। हमें दिखाये गए रिकार्ड से पता चलता है कि हिरासत की अवधि बढ़ाने के राज्य सरकार के आदेश से संबंधित केवल रेडियोग्राम डॉक्टर खान को उपलब्ध कराया गया। रेडियाग्राम में इस बात का उल्लेख है कि वास्तविक आदेश स्पीड पोस्ट के जरिए भेजा जाएगा, लेकिन वास्तव में डॉक्टर खान को रेडियोग्राम के अलावा कुछ भी नहीं दिया गया। इन बातों को देखते हुए हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि ना तो डॉक्टर कफील खान की रासुका के तहत हिरासत और ना ही हिरासत की अवधि बढ़ाया जाना कानून की नजर में कायम रहने वाला है।