भारत में निर्मित धनुष आर्टिलरी गन सेना में हुई शामिल, एक ही ठिकाने पर गिरेंगे तीन फायर
By भाषा | Published: April 8, 2019 06:55 PM2019-04-08T18:55:19+5:302019-04-08T18:56:28+5:30
देश में निर्मित पहली आर्टिलरी गन ‘धनुष’ को सोमवार को भारतीय सेना के बेड़े में शामिल कर लिया गया। जबलपुर की गन कैरेज फैक्टरी (जीसीएफ) में निर्मित छह धनुष गन सेना के सुपुर्द की गई। केन्द्र सरकार के रक्षा सचिव, उत्पादन डॉ अजय कुमार जीसीएफ में आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि थे।
कार्यक्रम में भारतीय सेना के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल पी के श्रीवास्तव को धनुष आर्टिलरी गन की पहली खेप सौंपी गयी। कार्यक्रम में आयुध निर्माणी बोर्ड के अध्यक्ष तथा महानिर्देशक सौरभ कुमार, आर्टिलरी स्कूल के कमांडेंट लेफ्टिनेंट जनरल आर एस सलारिया, मेजर जनरल मनमीत सिंह, आयुध बोर्ड के सदस्य हरिमोहन विशेष रूप से उपस्थित थे। कार्यक्रम के बाद नव निर्मित धनुष आर्टिलरी गन को हरि झंडी दिखाकर फैक्टरी से रवाना किया गया।
इस अवसर पर डॉ अजय कुमार और आयुध निर्माणी बोर्ड के अध्यक्ष सौरभ कुमार ने पत्रकारों को बताया कि धनुष 155 एमएम 45 कैलीबर की आधुनिक आर्टिलरी गन है। इस आर्टिलरी गन में 81 प्रतिशत पुर्जे स्वदेशी हैं और हमारा लक्ष्य 91 प्रतिशत पुर्जे स्वदेशी करने का है। इस गन की मारक क्षमता 38 किलोमीटर तक है। यह 13 सेकेंड में तीन फायर कर सकती है और इसका निशाना इतना अचूक है कि तीन फायर एक ठिकाने पर गिरेंगे।
उन्होंने बताया कि आर्टिलरी गन का वजन 13 टन है और यह पहाड़, रेगिस्तान, बर्फ की पहाडिय़ों के साथ समतल स्थल पर एक समान रुप से कार्य करती है तथा यह पहाडिय़ों में 22 डिग्री तक बिना किसी सहयोग से चढ़ सकती है। दुर्गम रास्तों में भी आसानी से जा सकती है और माइनस 3 डिग्री से लेकर 70 डिग्री तक एलिवेशन कर सकती है।
#MadhyaPradesh: Visuals of Dhanush artillery gun inducted in Indian Army, at Jabalpur. pic.twitter.com/5EQBWGpZTJ
— ANI (@ANI) April 8, 2019
उन्होंने इस बात से इंकार किया कि यह बोफोर्स का अपग्रेड वर्जन है। हालांकि बोफोर्स तथा धनुष के कुछ कार्य समान हैं। यह रात के समय भी अपने लक्ष्य पर निशाना लगा सकती है और इन गन के माध्यम से सामूहिक रूप से एक स्थान को निशाना बनाया जा सकता है। कुमार ने कहा कि जीसीएफ के 115 वर्षों के इतिहास में यह सबसे उल्लेखनीय सफलता है।
भारतीय सेना ने कुल 414 गन की मांग की है। हमें तीन वर्षो में भारतीय सेना को 114 धनुष गन देनी है जबकि हमारा लक्ष्य प्रतिवर्ष 60 गन के निर्माण का है।