पर्यटकों की पहली पसंद है कश्मीर, कोरोना काल में बना नया रिकॉर्ड
By सुरेश एस डुग्गर | Published: January 14, 2022 02:17 PM2022-01-14T14:17:12+5:302022-01-14T14:21:24+5:30
धारा 370 हटाने और कोरोना पाबंदियों के चलते कई वर्षों के बाद कश्मीर में आई बहार कश्मीरियों को खुशी जरूर दे रही थी। आने वालों का सिलसिला थमा नहीं है।
जम्मू: गुलमर्ग और पहलगाम में चारों ओर बर्फ की सफेद की चादर। कहीं बर्फ से अठखेलियां करते मेहंदी लगे हाथ तो कहीं स्लेज पर बैठ दूसरे की ताकत को आजमाने की कोशिश। बच्चों के लिए बर्फ का मानव बनाना तो जैसे सेकंडों का काम हो गया हो। बर्फ का पुतला बनाते बनाते रूई के फाहों के समान लगने वाले बर्फ के गोले एक दूसरे पर फैंक फिर प्यार जताने की प्रक्रिया में डूबे नवविवाहित जोड़े। भयानक सर्दी। फिर भी सभी के मुंह से बस यही निकलता है: 'जमीं पर अगर कहीं जन्नत है तो यहीं है, यहीं है।'
कश्मीर में बर्फबारी कोई पहली बार नहीं हुई है। बर्फीले सुनामी के दौर से भी यह गुजर चुकी है। मगर शांति की बयार के बीच होने वाली बर्फबारी ने एक बार फिर कश्मीर को धरती का स्वर्ग बना दिया है। कुछ साल पहले तो यह धरती का नर्क बन गया था इसी बर्फबारी के कारण। वैसे आतंकवाद के कारण आज भी यह उन लोगों के लिए नर्क ही है जिनके सगे-संबंधी आए दिन आतंकवादियों की गोलियों का शिकार होते रहते हैं।
इस बार कोरोना के बावजूद कश्मीर में आने वालों ने एक नया रिकॉर्ड बनाया है। पिछले साल नवंबर और दिसंबर में अढ़ाई लाख पर्यटक कश्मीर आए हैं जो कोरोना काल में बनने वाला एक रिकॉर्ड था। धारा 370 हटाने और कोरोना पाबंदियों के चलते कई वर्षों के बाद कश्मीर में आई बहार कश्मीरियों को खुशी जरूर दे रही थी। आने वालों का सिलसिला थमा नहीं है। अनवरत रूप से जारी आने वालों के लिए आज भी सैर सपाटे का प्रथम गंतव्य कश्मीर ही है।
'आखिर हो भी क्यों न, यह तो वाकई धरती का स्वर्ग है' महाराष्ट्र का भौंसले कहता था। उसकी नई नई शादी हुई थी एक महीना पहले। बर्फ देखने की चाहत थी तो वह पूरी हो गई। यह बात अलग है कि बर्फ ने उसके बजट को भी बिगाड़ दिया है क्योंकि बर्फ के कारण रास्ता बंद होने के कारण उसे अब कुछ दिन और रुकना पड़ेगा और ऐसी हालत में घरवालों से एटीएम में वैसे डलवाने के लिए निवेदन करने के अतिरिक्त उसके पास कोई चारा नहीं है।
ऐसी परिस्थिति के बावजूद उन सभी के लिए कश्मीर फिर भी धरती का स्वर्ग है। सफेद चादर में लिपटा हुआ गुलमर्ग और पहलगाम, उन्हें किसी फिल्मी सपने के पूरा होने से कम नहीं लगता। गुलमर्ग में 2 से 3 फुट बर्फ ने तो कई जगह पहाड़ बनाए थे तो पहलगाम में इतनी ही बर्फ गिरी और अभी यह सिलसिला थम नहीं रहा था।
सिर्फ गुलमर्ग या पहलगाम ही कश्मीर को धरती का स्वर्ग नहीं बनाते थे बल्कि डल झील में तैरते शिकारों पर गिरी बर्फ और करीब 95 प्रतिशत जम चुकी डल झील भी आने वालों के लिए किसी सपने से कम नहीं थी। उड़ी-मुजफ्राबाद मार्ग पर एक किनारे से सड़क के दूसरे छोर तक दिखने वाली मीलों बर्फ की सड़क और उसके दोनों ओर चिनार के पेड़ों की कतारों से झांकती धुंध जो नजारा पैदा करती थी उसे अपने कैमरे में कैद कर लेने को बेताब भीड़ के लिए गुलमर्ग में गंडोला भी कम आकर्षण पैदा नहीं करता था। गंडोले की सवारी के दौरान नीचे सिवाय बर्फ के दरिया के जब कुछ नजर नहीं आता तो कईयों के मुंह से यकायक चीख भी निकल पड़ती थी। यह चीख सर्द वादियों में गूंज कर फिर वापस लौट आती थी। इस चीख का सुखद अहसास यही था कि यह चीख डर या आतंकी माहौल के मारे नहीं बल्कि खुशी के मारे की थी।