लद्दाख में राज्य का दर्जा पाने की उठने लगी मांग, दो साल पहले बना था केंद्र शासित प्रदेश
By सुरेश एस डुग्गर | Published: June 18, 2022 03:53 PM2022-06-18T15:53:09+5:302022-06-18T15:53:09+5:30
जानकारी के लिए वर्ष 1947 से क्षेत्र में यह मांग बुलंद हो रही थी कि लद्दाख को कश्मीर से अलग कर इसे केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाए। भाजपा ने यह मांग पूरी कर अपना वायदा निभाया।
जम्मू: करीब 30 सालों के आंदोलन के बाद लद्दाख ने केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा 5 अगस्त 2019 को पाया तो मन की मुराद पूरी होने की खुशी अब हवा होने लगी है। कारण स्पष्ट है वे लोकतांत्रिक अधिकारों से वंचित कर दिए जाने के कारण अब राज्य का दर्जा पाने को छटपटा रहे हैं। जानकारी के लिए वर्ष 1947 से क्षेत्र में यह मांग बुलंद हो रही थी कि लद्दाख को कश्मीर से अलग कर इसे केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाए। भाजपा ने यह मांग पूरी कर अपना वायदा निभाया। वर्ष 1989 में लद्दाख बुद्धिस्ट एसोसिएशन ने अपने गठन के साथ ही इस मांग को लेकर एकजुट होकर आंदोलन छेड़ दिया था।
केंद्र शासित प्रदेश की मांग को लेकर लेह व करगिल जिलों में राजनीतिक पार्टियों के साथ लोग भी एकजुट थे। वर्ष 2002 में लद्दाख यूनियन टेरेटरी फ्रंट के गठन के साथ इस मांग को लेकर सियासत तेज हो गई थी। वर्ष 2005 में लद्दाख यूनियन टेरेटरी फ्रंट ने लेह हिल डेवेलपमेंट काउंसिल की 26 में से 24 सीटें जीत ली थी। इसके बाद से लद्दाख ने इस मांग को लेकर पीछे मुड़ कर नही देखा।
इसी मुद्दे को लेकर वर्ष 2004, 2014 व 2019 में लद्दाख ने सांसद जिताकर दिल्ली भेजे थे। पर जो यूटी का दर्जा बिना विधानसभा के मिला वह लद्दाखवासियों को रास नहीं आ रहा है। यूटी मिलने के कुछ ही महीनों के बाद उन्होंने आंदोलन छेड़ दिया। हालांकि इस आंदोलन ने अभी उतनी हवा नहीं पकड़ी है जितनी आग यूटी पाने की मांग ने पकड़ी थी।
इस मुद्दे पर पिछले तीन सालों में कई बार बुलाई गई हड़ताल के बाद केंद्र सरकार लद्दाख को धारा 371 के तहत नार्थ ईस्ट की तर्ज पर हद से बढ़कर अधिकार देने को तैयार है पर लद्दाखी मानने को राजी नहीं हैं। हालांकि कुछ दिनों पहले लद्दाखी नेताओं की केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात के दौरान, उन्होंने दो संसदीय क्षेत्र देने की बात को मान लिया पर राज्य का दर्जा देकर विधानसभा न देने के पीछे कई कारण गिना दिए गए थे।
लद्दाख में अब राज्य का दर्जा पाने के साथ ही विधानसभा पाने को जिस आंदोलन को हवा दी जा रही है उसका नेतृत्व लेह अपेक्स बाडी कर रही है जिसके चेयरमेन थुप्स्टन छेवांग बनाए गए हैं। नार्थ ब्लाक में अधिकारियों से मुलाकातों के बाद छेवांग को भी धारा 371 के तहत ही और अधिकार देने का आश्वान दिया गया है जिसे लेह अपेक्स बॉडी तथा करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस मानने को राजी नहीं हैं।
ऐसे में लद्दाख से मिलने वाले संकेत यही कहते हैं कि लद्दाख के दोनों जिलों- लेह और करगिल में राज्य का दर्जा पाकर लोकतांत्रिक अधिकार पाने का लावा किसी भी समय फूट सकता है। तीन साल पहले जब करगिल को जम्मू कश्मीर से अलग किया गया था था तब भी उसने इसी चिंता को दर्शाते हुए कई दिनों तक बंद का आयोजन किया था। करगिलवासी भी लोकतांत्रिक अधिकारों की खातिर विधानसभा चाहते हैं।