देश की राजधानी बुधवार को भी जहरीली धुंध की चादर से लिपटी रही तथा इसकी वायु गुणवत्ता में और अधिक गिरावट आ गई। सरकारी एजेंसियों ने दिल्ली के इस हाल का प्रमुख कारण पड़ोसी हरियाणा और पंजाब में किसानों द्वारा पराली जलाए जाने को बताया है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के आंकड़ों के अनुसार शहर में प्रदूषण बीती रात दो बजे बढ़कर 423 के स्तर पर पहुंच गया।
कुल वायु गुणवत्ता सूचकांक दिन के दौरान 410 से 420 के बीच रहा। दिल्ली में स्थित 37 वायु गुणवत्ता केंद्रों में से 27 ने ‘‘गंभीर’’ श्रेणी का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) दर्ज किया। आनंद विहार राष्ट्रीय राजधानी का सर्वाधिक प्रदूषित इलाका रहा जहां एक्यूआई 464 दर्ज किया गया। इसके बाद 462 एक्यूआई के साथ वजीरपुर दूसरे नंबर पर रहा।
एनएसआईटी द्वारका सबसे कम प्रदूषित क्षेत्र रहा जहां एक्यूआई 355 दर्ज किया गया। गाजियाबाद में प्रदूषण का स्तर 478, गेटर नोएडा में 440 और नोएडा में 451 रहा है। एक्यूआई जब 0-50 होता है तो इसे ‘‘अच्छी’’ श्रेणी का माना जाता है। 51-100 ‘‘संतोषजनक’’, 101-200 ‘‘मध्यम’’, 201-300 ‘‘खराब’’, 301-400 ‘‘अत्यंत खराब’’, 401-500 ‘‘गंभीर’’ और 500 से ऊपर ‘‘गंभीर और आपात’’ श्रेणी का माना जाता है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के वायु गुणवत्ता निगरानी केंद्र ‘सफर’ के अनुसार दिल्ली में प्रदूषण के कारणों में पराली जलाने की हिस्सेदारी में 35 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जो इस मौसम में सर्वाधिक है।
पराली जलाना बुधवार को शहर में छाई धुंध की चादर के लिए ‘‘पूरी तरह’’ जिम्मेदार हो सकता है। इसने कहा कि मंगलवार को अत्यंत शांत सतही हवाओं ने समस्या को और बढ़ा दिया। केंद्र ने पूर्वानुमान व्यक्त किया है कि गुरुवार को हवा की गति में वृद्धि से वायु गुणवत्ता में थोड़ा सुधार होने की संभावना है क्योंकि इससे प्रदूषक कणों को तेजी से उड़ा ले जाने में मदद मिलेगी।
दिल्ली में घातक प्रदूषण स्तर के चलते डॉक्टरों ने मास्क पहनकर चलने, भोर और देर शाम सैर करने से बचने सहित कई सावधनियां बरतने का परामर्श दिया है क्योंकि इस समय प्रदूषक कणों का स्तर सर्वाधिक होता है।