महिलाओं के खिलाफ अपराध: देश भर में करीब 14.50 लाख पीड़िताओं को न्याय का इंतजार, बंगाल सहित महाराष्ट्र और यूपी में सबसे अधिक मामले
By नितिन अग्रवाल | Published: October 8, 2020 06:38 AM2020-10-08T06:38:28+5:302020-10-08T06:38:28+5:30
यूपी के हाथरस का मुद्दा अभी छाया हुआ है लेकिन आंकड़े देखों तो करीब 14.50 लाख महिलाएं इस देश में अभी इंसाफ के लिए इंतजार कर रही हैं. इनमें 20 प्रतिशत से अधिक 2.56 लाख मामले अकेले प.बंगाल के हैं.
उत्तर प्रदेश के हाथरस में हुए रेपकांड की पीडि़ता को इंसाफ दिलाने के लिए देशभर में मांग जोर पकड़ रही है. हालांकि हकीकत यह है कि देशभर में करीब 14.50 लाख महिलाएं इंसाफ का इंतजार कर रही हैं. इनमें सबसे अधिक मामले प.बंगाल, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के हैं. साल दर साल इंसानियत को शर्मसार करने वाली घटनाओं का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है.
सबसे अधिक मामले यूपी में दर्ज किए जा रहे हैं. यहां पिछले पांच वर्षों में महिलाओं से जुड़ी अपराध की घटनाएं डेढ़ गुना हो गई हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े बताते हैं कि सरकारी प्रयासों के बावजूद महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है.
वर्ष 2014 में देशभर में महिला अपराध के कुल 3.39 लाख मामले दर्ज किए गए थे वहीं 2018 तक आते-आते यह संख्या बढ़कर 3.78 लाख हो गई.
उत्तर प्रदेश में 14 प्रतिशत मामले
5 वर्षों में देशभर में दर्ज ऐसे कुल 17.45 लाख मामलों में से सबसे अधिक 2.40 लाख (14%) यूपी के हैं. 2014 में दर्ज 38,918 मामलों के मुकाबले 2018 में 59,445 मामले दर्ज किए गए. इस दौरान प.बंगाल में 1.65 लाख तथा महाराष्ट्र में 1.56 लाख मामले दर्ज किए गए.
एनसीआरबी के अनुसार महिलाओं के प्रति अपराध के 14.50 लाख लंबित मामलों में 20 प्रतिशत से अधिक 2.56 लाख मामले अकेले प.बंगाल के हैं. इसके बाद 1.92 लाख महाराष्ट्र तथा 1.64 लाख मामले यूपी के हैं. सजा केवल 23 फीसदी मामलों में जघन्य अपराध को अंजाम देने के बाद भी अपराधी कई मामलों में बरी हो जाते हैं.
आंकड़े बताते हैं कि ऐसे लगभग 23 प्रतिशत मामलों में ही सजा हो पाती है. यूपी में दर्ज मामलों में सबसे अधिक 60 प्रतिशत में सजा दिलाई गई. प.बंगाल में यह आंकड़ा महज 5.3 प्रतिशत है. जबकि महाराष्ट्र में 13.2 प्रतिशत मामलों में ही सजा हो पाई.
जांच में देरी बनी न्याय में बाधा
न्याय में हो रही देरी के लिए गृह मंत्रालय जांच में देरी को जिम्मेदार ठहराया है. फास्टट्रैक अदालतों की कमी, जांच एजेंसियों द्वारा समय पर कार्रवाई नहीं करना, एफएसएल रिपोर्ट देरी से मिलना इसके प्रमुख कारण हैं. इसके अलावा अदालतों पर बढ़ते बोझ को भी न्याय में देरी का कारण माना गया है.
हाल में गृह राज्य मंत्री ने संसद में स्वीकार किया कि महिला अपराधों में बढ़ोत्तरी हुई है. हालांकि उन्होंने पुलिस तथा न्याय व्यवस्था के मामले में गेंद राज्य के पाले में डालते हुए इसे राज्यों की जिम्मेदारी भी बताया.
निर्भया फंड की जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि इसके तहत 2019-20 में राज्यों को 4357.62 करोड़ रुपए तथा उसके पिछले पांच वर्षों में 2357.62 करोड़ रुपए की रकम आवंटित की गई थी.
राज्यों में महिला अपराध के मामले (2014-2018 के बीच)
उत्तर प्रदेश | 239544 |
पश्चिम बंगाल | 165641 |
महाराष्ट्र | 156898 |
राजस्थान | 140721 |
मध्य प्रदेश | 138321 |
बिहार | 74328 |
गुजरात | 43625 |