कोविड प्रबंधन पर अदालतें कार्यपालिका के क्षेत्र में हस्तक्षेप कर सकती हैं और किस हद तक : न्यायालय करेगा समीक्षा

By भाषा | Published: July 14, 2021 05:57 PM2021-07-14T17:57:20+5:302021-07-14T17:57:20+5:30

Courts can interfere in the field of executive on Kovid management and to what extent: Court will review | कोविड प्रबंधन पर अदालतें कार्यपालिका के क्षेत्र में हस्तक्षेप कर सकती हैं और किस हद तक : न्यायालय करेगा समीक्षा

कोविड प्रबंधन पर अदालतें कार्यपालिका के क्षेत्र में हस्तक्षेप कर सकती हैं और किस हद तक : न्यायालय करेगा समीक्षा

नयी दिल्ली, 14 जुलाई उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि वह समीक्षा करेगा कि कार्यपालिका के दायरे में आने वाले कोविड-19 प्रबंधन से जुड़े मुद्दों में संवैधानिक अदालतें किस सीमा तक हस्तक्षेप कर सकती है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि अदालतों को भारत के संविधान में किए गए अधिकारों के बंटवारे का सम्मान करना जरूरी है, भले ही इसका उद्देश्य सभी के लिए निष्पक्षता से जुड़ा हुआ ही क्यों ना हो।

न्यायालय ने कहा कि वह इस पहलू पर भी गौर करेगा कि क्या इलाहाबाद उच्च न्यायालय को इस मामले में कूदने की जरुरत थी भी या नहीं और उसकी ‘राम भरोसे’ वाली टिप्पणी न्यायसंगत है या नहीं।

न्यायमूर्ति विनित सरन और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने उत्तर प्रदेश में कोविड-19 प्रबंधन से जुड़े मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि उत्तर प्रदेश के छोटे शहरों/कस्बों और गांवों में पूरी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली ‘राम भरोसे’ है।

पीठ ने कहा, ‘‘हम यह प्रतिपादित करना चाहते हैं कि कोई संवैधानिक अदालत इस तरह के मुद्दों पर किस हद तक हस्तक्षेप कर सकती है। क्या उच्च न्यायालय को इस मुद्दे के बीच में कूदने की जरुरत थी भी? सभी के लिए निष्पक्षता का उद्देश्य होने के बावजूद हमें अधिकारों के बंटवारे का सम्मान करना होगा। ‘राम भरोसे’ वाली टिप्पणी किस हद तक न्यायसंगत है।’’

न्यायमूर्ति सरन ने कहा, ‘‘ऐसे सवाल हैं, जैसे कितनी एम्बुलेंस हैं, कितने ऑक्सीजन युक्त बिस्तर हैं। हम इन सवालों पर टिप्पणी नहीं करना चाहते हैं। ऐसा नहीं है कि आप सलाह नहीं दे सकते, लेकिन आप स्थानीय कंपनियों से टीके का फॉर्मूला लेकर उसका उत्पादन करने को कैसे कह सकते हैं? ऐसे निर्देश कैसे दिए जा सकते हैं?’’

न्यायमूर्ति माहेश्वरी ने भी कहा कि कुछ मुद्दे कार्यपालिका की जद में आते हैं और ऐसे संकट के समय में सभी को संयम बरतना होगा और यह ध्यान रखना होगा कि किसे क्या काम करना है।

न्यायमूर्ति माहेश्वरी ने कहा, ‘‘हमारे पास देने के लिये 110 सलाह हो सकती हैं, लेकिन क्या हम उन्हें अपने आदेश का हिस्सा बना सकते हैं? हमें याद रखना होगा कि हम संवैधानिक अदालतें हैं।’’

उन्होंने यह भी कहा कि संकट के समय सबके एकजुट प्रयास की आवश्यकता है, लेकिन सिर्फ मंशा अच्छी होने से किसी को भी दूसरे के अधिकार क्षेत्र में कूदने का हक नहीं मिल जाता है।

मामले की सुनवाई शुरू होते ही पीठ ने सालिसीटर जनरल से इस प्रकरण की स्थिति के बारे मे पूछा तो उन्होंने जवाब दिया कि उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की पीठ इस पर सुनवाई कर रही है।

मेहता ने कहा कि शीर्ष अदालत उच्च न्यायालय का यह आदेश निरस्त कर सकती है।

पीठ ने कहा कि उसने अपने पहले के आदेश में स्पष्ट कर दिया था कि उच्च न्यायालय के निर्देशों को सुझाव माना जाए और इसलिए इसे निरस्त करने के लिए किसी औपचारिक आदेश की आवश्यकता नहीं है।

इस मामले में न्याय मित्र की भूमिका निभा रहे वरिष्ठ अधिवक्ता निदेश गुप्ता ने कहा कि उच्च न्यायालय ने कहा है कि उसके निर्देशों की व्यावहारिकता को राज्य को देखना होगा। उन्होंने कहा कि न्यायालय उत्तर प्रदेश सरकार से पूछ सकती है कि कोविड की तीसरी लहर से पहले क्या करने का उसका प्रस्ताव है क्योंकि इस समय तूफान से पहले की खामोशी है।

पीठ ने कहा कि वह 12 अगस्त को इस मामले की आगे सुनवाई करेगी। इस बीच, उच्च न्यायालय अपनी सुनवाई जारी रख सकता है।

राज्य सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि उसके पास कुल 2200 बुनियादी जीवन रक्षक से लैस एम्बुलेंस हैं। इनके अलावा 250 उन्नत जीवन रक्षक प्रणाली से लैस एम्बुलेंस हैं। सरकार ने यह भी कहा है कि राज्य में 298 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र हैं और 273 ऐसे केन्द्रों को 177 आक्सिजन कंसेन्ट्रेटर उपलब्ध कराये गये हैं और वह 20,000 से ज्यादा आक्सिजन कंसेन्ट्रेटर खरीद रही है।

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Web Title: Courts can interfere in the field of executive on Kovid management and to what extent: Court will review

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