न्यायालय ने बलात्कार के मामले में सजा बरकरार रखी
By भाषा | Updated: December 5, 2020 13:46 IST2020-12-05T13:46:57+5:302020-12-05T13:46:57+5:30

न्यायालय ने बलात्कार के मामले में सजा बरकरार रखी
नयी दिल्ली, पांच दिसंबर उच्चतम न्यायालय ने मानसिक रूप से अस्वस्थ युवती के बलात्कार के मामले में आरोपी की दोष सिद्धि तथा सजा को बरकरार रखते हुए कहा कि मानसिक रोगों से पीड़ित लोगों का शोषण नहीं होना चाहिए तथा उन्हें विशेष देखभाल और प्रेम की जरूरत होती है।
शीर्ष न्यायालय ने हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के सितंबर 2016 के फैसले के खिलाफ अपील को खारिज करते हुए कहा कि दोषी ने युवती की मानसिक स्थिति का फायदा उठाते हुए उसका शोषण किया। गौरतलब है कि उच्च न्यायालय ने आरोपी को बरी करने के निचली अदालत को आदेश को रद्द करते हुए उसे दोषी करार दिया था।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ ने अपने फैसले में कहा कि डीएनए रिपोर्ट के मुताबिक 19 वर्षीय पीड़िता ने जिस बच्चे को जन्म दिया उसका जैविक पिता दोषी व्यक्ति ही है। यह मामला जब सामने आया तब पीड़ित लड़की को 31 हफ्ते का गर्भ था।
न्यायमूर्ति आरएस रेड्डी और न्यायमूर्ति एमआर शाह भी पीठ का हिस्सा थे।
पीठ ने कहा, ‘‘सबूतों के आधार पर यह साबित हो चुका है कि पीड़ित युवती मानसिक रूप से विकसित नहीं है, उसका आईक्यू स्तर 62 है और वह यौन उत्पीड़न के बारे में समझने की स्थिति में नहीं है।’’
पुलिस के मुताबिक पीड़ित युवती के पिता ने 2008 में प्राथमिकी दर्ज करवाई थी जिसमें कहा था कि उनकी बेटी गर्भवती है और उसने अपनी मां को बताया कि आरोपी ने उसका तब बलात्कार किया जब वह मवेशियों को चराने के लिए गई थी। युवती ने जून 2008 में बच्चे को जन्म दिया था।
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