आधार कार्ड की अनिवार्यता पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई आगे बढ़ी, जानें इससे जुड़ी 6 बातें
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: January 17, 2018 07:40 PM2018-01-17T19:40:42+5:302018-01-17T20:53:53+5:30
आधार के खिलाफ एक याचिका दायकर निजता के मौलिक अधिकार हनन का आरोप लगाया गया है।
आधार पर सुनवाई में बुधवार सुप्रीम कोर्ट में वकील श्याम दीवान ने 5 जजों की बेंच से इसकी कानूनी वैधता पर अपना पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि लोगों के संविधान को राज्य के संविधान में बदलने की कोशिश की जा रही है। अपनी याचिका में दीवान ने यह कहा 'आधार कार्ड को अब बैंक एकाउंट, मोबाइल नंबर, इंश्योरेंस पॉलिसी और ट्रांजेक्शन के लिए अनिवार्य कर दिया गया है। हमारे देश में कई लोग ऐसे है जो आधार कार्ड को बनवाने के लिए आधार कार्ड के सेंटर तक भी नहीं पहुंच पाते। यहीं नहीं, लोग तीन-चार बार लगातार फिंगर प्रिंट देते है उनको ये नहीं पता होता कि पहली बार में सही गया था या नहीं? ऐसे में इस बात का भी शक होता है कि उनके एकाउंट को खाली ना कर दिया गया हो।' बता दें कि इस बेंच की अध्यक्षता चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा कर रहे हैं।
जानें आधार कार्ड मामले की याचिका से जुड़ी बातें
1- इस केस में याचिकाकर्ता ने लोगों की निजता के मौलिक अधिकार पर सवाल उठाए थे। इसके बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने 9 सदस्यीय बेंच का गठन किया था ताकि वह इसका फैसला करें।
2- जब इसपर मौलिक अधिकार का फैसला आया इसके के बाद चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने पांच सदस्यीय बेंच पीठ का गठन किया।
3- इस पांच सदस्यीय बेंच जस्टिस दीपक मिश्रा के अलावा अन्य जज हैं- जस्टिस एके सीकरी, एम खांडविलकर, डीवाई चंद्रचूड़ और अशोक भूषण।
4- सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर में कहा था कि कोर्ट के सामने जो याचिकाएं रखी गई है उसपर जल्द से जल्द सुनवाई पूरी हो जानी चाहिए। ताकि इससे आम नागरिकों, केन्द्र और राज्य सरकार के बीच चीजें साफ हो पाएंगी।
5- आधार कार्ड को नागरिकों के डिजिटल पहचान के लिए लाया गया था जिसका इस्तेमाल उन्हें वह सरकारी सेवाओं के लिए करना होता है। इसको एग्जक्यूटिव ऑर्डर के जरिए लाया गया और इच्छाधीन था।
6- साल 2013 में सरकार ने आधार को कल्याणकारी योजनाओं के लिए अनिवार्य करने पर रोका था। इसके बाद साल 2016 में एनडीए सरकार ने संसद से कानून बनाकर इसे अनिवार्य करने की इजाजत ली। इसके बाद सरकार को आधार की अनिवार्यता को लेकर व्यापक अधिकार मिल गया है।
आधार की शुरुआत यूपीए सरकार के कार्यकाल साल 2009-10 में हुई थी। सरकार ने सब्सिडी बिल और गृह मंत्रालय से संचालित नेशनल पोपुलेशन रजिस्टर से डुप्लीकेसी को खत्म करने के लिए इसकी शुरुआत की थी। इसके बाद साल 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद सरकार ने अपना सारा ध्यान आधार के पीछे संकेन्द्रित किया। बता दें कि आधार के खिलाफ साल 2012 में याचिका दायकर निजता के मौलिक अधिकार हनन का आरोप लगाया गया है।