सामूहिक नेतृत्व, संसदीय बोर्ड के गठन और कार्यसमिति के चुनाव से समाप्त होगा कांग्रेस का संघर्ष
By शीलेष शर्मा | Published: November 23, 2020 08:24 PM2020-11-23T20:24:34+5:302020-11-23T20:26:48+5:30
गुलामनबी आज़ाद ने कड़ी आलोचना कर पांचतारा संस्कृति, नीचे से ऊपर तक चुनाव कराने का मुद्दा उठाया था। आज़ाद से जब पूछा गया कि वह लम्बे समय से 1998 से 2017 तक मनोनीत हो चुके है तो चुनाव कराने की बात आज कैसे कर रहे हैं, उस समय उन्होंने चुनाव के रास्ते पदों को भरने की बात क्यों नहीं उठाई।
नई दिल्लीः कांग्रेस नेतृत्व उन नेताओं के खिलाफ़ कोई कार्रवाई करने के मूड में नहीं है, जो लगातार सार्वजनिक तरीके से नेतृत्व की कार्यशैली पर हमला कर रहे हैं।
यह संकेत आज पार्टी के प्रवक्ता पवन खेड़ा ने पार्टी नेतृत्व की सोच का खुलासा करते हुये दिये। उनकी सलाह थी कि सार्वजनिक मंच से ऐसी बातें न कही जायें, क्योंकि कल तक जो हमको अनुसाशन सिखाते थे आज वही उसके खिलाफ़ काम कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि पिछले एक सप्ताह से पार्टी के वरिष्ठ नेता एक के बाद एक हमलावर है।
पहले कपिल सिब्बल, चिदंबरम और रविवार को गुलामनबी आज़ाद ने कड़ी आलोचना कर पांचतारा संस्कृति, नीचे से ऊपर तक चुनाव कराने का मुद्दा उठाया था। आज़ाद से जब पूछा गया कि वह लम्बे समय से 1998 से 2017 तक मनोनीत हो चुके है तो चुनाव कराने की बात आज कैसे कर रहे हैं, उस समय उन्होंने चुनाव के रास्ते पदों को भरने की बात क्यों नहीं उठाई।
आज़ाद के पास इसका कोई सीधा जबाब नहीं था ,लेकिन उन्होंने नरसिम्हा राव का कार्यकाल याद दिलाया और दलील दी कि 1992 में उन्होंने ही संघटन में चुनाव कराने की मांग की थी, जिसका नतीज़ा हुआ कि तिरुपति अधिवेशन में चुनाव कराये गये। लोकमत ने जब तमाम वरिष्ठ नेताओं से इस विवाद का कारण जानने की कोशिश की तो ग्रुप 23 के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि झगड़े की मूल जड़ राहुल गाँधी ,सोनिया गाँधी का नेतृत्व नहीं है ,पार्टी के किसी नेता को उनसे शिकायत नहीं, शिकायत राहुल के सलाहकारों से है, जिनको राजनीति का ज्ञान नहीं है।
इस नेता ने इशारा किया कि के राजू,रणदीप सुरजेवाला, के सी वेणुगोपाल सरीखे नेता पार्टी चला रहे हैं, इनको पांच तारा होटल सहित विलासता के संसाधन चाहिये। केवल ट्विटर,फेसबुक जैसे मात्र सोशल मीडिया या टीवी में चेहरा दिखाने से पार्टी नहीं चलती जिसकी तरफ आज़ाद ने इशारा किया है।
आनंद शर्मा औपचारिक तौर पर सोनिया को लिखे पत्र पर हस्ताक्षर करने के बाद से मौन हैं लेकिन अनौपचारिक बातचीत में वह खुल कर समाधान बताते हैं। सूत्रों के अनुसार तमाम वरिष्ठ नेता नेतृत्व के फ़ैसलों में अपनी भागी दारी चाहते हैं। यही कारण हैं कि आलोचना करने वाले नेता सामूहिक नेतृत्व की बात कर रहे हैं, इनकी यह भी मांग है कि संसदीय बोर्ड का गठन हो और कार्यसमिति सदस्यों का चुनाव ताकि विवाद सुलझ सके।