राहुल गांधी ने पीएम पर फिर बोला हमला, 'मोदी सरकार अर्थव्यवस्था को पूरी ताकत के साथ बर्बाद करने पर उतारू है, क्योंकि...'
By शीलेष शर्मा | Published: June 7, 2020 06:56 AM2020-06-07T06:56:24+5:302020-06-07T06:56:24+5:30
भारत में कोरोना वायरस संक्रमण को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन की वजह से देश की अर्थव्यवस्था ठप हो गई है। लाखों लोग बेरोजगार हो गए हैं। हालांकि मोदी सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए 20 लाख करोड़ का पैकेज दिया है।
नई दिल्ली:नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए की जा रही कोशिशों को खारिज करते हुए कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने आज (6 जून) सरकार पर फिर हमला किया. उन्होंने कहा कि मोदी सरकार देश की अर्थव्यवस्था को पूरी ताकत के साथ बर्बाद करने पर उतारू है, क्योंकि वह देश के गरीब तथा दूसरे लोगों और छोटे उद्योगों के हाथों में सीधे पैसा नहीं देना चाहती. गौरतलब है कि कोविड-19 महामारी के कारण देश में बड़े पैमाने पर इकाइयां बंद हो गई हैं, जिससे करोड़ों लोग बेरोजगार हुए हैं. बेरोजगार लोगों की संख्या में लगभग 28% का इजाफा हुआ है. हैरत की बात यह है कि कल जब पूरी दुनिया साइकिल दिवस मना रही थी, ठीक उसी समय देश की सबसे पुरानी साइकिल बनाने वाली कंपनी एटलस की गाजियाबाद वाली फैक्टरी को बंद करना पड़ा और 1000 से अधिक लोग एक झटके में ही बेरोजगार हो गए. ॉ
प्रियंका ने उठाया किसान और बेरोजगारी का मामला
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने इस दर्द को अपनी आवाज दी और ट्वीट किया, ''लोगों की नौकरियां बचाने के लिए सरकार को अपनी नीतियां और योजना स्पष्ट करनी पड़ेगी.'' उन्होंने गन्ना किसानों का भी मुद्दा उठाया और कहा कि आर्थिक तंगी के बावजूद राज्य सरकार आखिर क्यों गन्ने का भुगतान नहीं कर रही. कोविड-19 महामारी के कारण फैक्टरियां और कंपनियां बंद हुईं और लोग बेरोजगार हो गए. मुश्किल हालातों में यह लोग पलायन कर अपने-अपने गांव तो पहुंच गए लेकिन वहां भी इनके सामने रोजी-रोटी का बड़ा संकट खड़ा है. कुछ दिन गांव में बिताने के बाद अब बेरोजगार नौजवान रोजगार के लिए दर-दर भटक रहे हैं.
ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट मनरेगा के तहत काम पर जा रहे हैं
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा, उत्तरप्रदेश और बिहार के बेरोजगार नौजवान इसके सबसे अधिक शिकार हुए हैं. उन्होंने कहा कि कंपनियों में काम करने वाले ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट मनरेगा के तहत काम पर जा रहे हैं. राजधानी दिल्ली से सटे ग्रेटर नोएडा में जहां तमाम औद्योगिक इकाइयां हैं, 30 साल के दिनेश को एमबीए मार्केटिंग की डिग्री हासिल करने के बावजूद पास के इलाकों में मनरेगा के तहत दिहाड़ी मजदूरी करनी पड़ रही है. यह तो महज एक बानगी है. पूर्वी उत्तरप्रदेश और बिहार में तो हालात और भी ज्यादा खराब हैं. नौकरी पाने के लिए नौजवान बेरोजगारों ने अपने मोबाइल नंबर फैक्टरियों की दीवारों पर लिखने शुरू कर दिए हैं, जिसके नीचे लिखा है ''काम हो तो हमें बुलाएं.''
कांग्रेस नेता ने कहा कि पंजाब, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों में उत्तरप्रदेश और बिहार से बड़ी संख्या में लोग काम के लिए जाते हैं लेकिन महामारी ने उनका काम छीन लिया और अब वह बेरोजगार हैं. यह हालात देश के अंदर ही नहीं, देश के बाहर भी हैं. पैसे कमाने के लिए विदेशों में गए भारतीय भी अब वहां बेरोजगार हो रहे हैं, कुछ बेरोजगार तो स्वदेश लौट आए और कुछ लौटने की तैयारी में हैं क्योंकि वह पहले वहीं हाथ-पैर मार लेना चाहते हैं. यदि सफलता नहीं मिलती है तो स्वदेश लौटने की तैयारी करेंगे. आंकड़े बताते हैं कि अकेले अमेरिका में एशिया मूल के लोग सबसे अधिक बेरोजगारी के शिकार हुए हैं और अब उनके पास कोई काम नहीं है जिससे वह स्वदेश लौटने को मजबूर हैं लेकिन यहां उनको काम मिलेगा या नहीं, उनको नहीं पता.