2019 का रणः मायावती-अखिलेश ने आपस में बांटी सीटें, कांग्रेस का पत्ता साफ, बस सोनिया-राहुल को बख्शा
By ऐश्वर्य अवस्थी | Published: June 12, 2018 01:15 PM2018-06-12T13:15:58+5:302018-06-12T13:15:58+5:30
उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में समाजवादी पार्टी 40 और बहुजन समाज पार्टी 35 पर चुनाव लड़ेगी।
लखनऊ, 12 जून: यूपी में चुनाव में विजय हासिल करने की राजनीतिक रणनीति हर किसी के सामने है। बीजेपी को हराने के लिए सभी पार्टियों ने एक दूसरे का दामन थाम लिया है। लेकिन अब इस गठबंधनके दौर से कांग्रेस को बाहर को रास्ता दिखा दिया गया है।
खबरों के मुताबिक 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी 35 और बहुजन समाज पार्टी 40 सीटों पर लड़ सकती हैं। बाकी की राज्य की बची हुई सीटें कांग्रेस के लिए सपा और बसपा ने छोड़ दी हैं। इस समझौते पर लगभग मोहर भी लग गई है। इस पर हाल ही में अखिलेश यादव ने कहा भी था कि वह बसपा से समझौता करने के लिए वह कुछ सीटों को छोड़ भी सकते हैं। जिसके बाद बची सीटें राष्ट्रीय लोक दल को दी जा सकती हैं।
उत्तर प्रदेश में बन रही विपक्षी एकता में कांग्रेस को यूं तो शामिल नहीं किया जा रहा है। लेकिन कांग्रेस के गढ़ रायबरेली और अमेठी पर सपा और बसपा अपना कोई प्रतियाशी नहीं उतारेगी। यूपी में कांग्रेस लगभग अपना बजूद खो चुकी है। हाल ही में हुए फूलपुर और गोरखपुर के लोकसभा उपचुनावों में कांग्रेस अकेले मैदान में उतरी थी। जहां कांग्रेस के उम्मीदवारों को महज 19,353 और 18,858 वोट ही मिल पाए थे।
ऐसे में अब सपा और बसपा को लग रहा है कि अब कांग्रेस के पास ना तो दलित वोट हैं और न पिछड़े और न ही अल्पसंख्यक। ऐसे में ज्यादातर कांग्रेस को वोट सवर्णों के मिल रहे हैं जो कि बीजेपी के भी वोट बैंक हैं। यानी कांग्रेस को मिल रहा हर वोट बीजेपी के खाते से ही जा रहा है। ऐसे में अगर कांग्रेस गठबंधन में जाती है तो ये सवर्ण भी भाजपा में चले जाएंगे।
इसीलिए सपा-बसपा को लगता है कि कांग्रेस के अलग लड़ने से ही उन्हें ज्यादा फायदा है। जबकि 2014 के लोकसभा चुनावों में विपक्षी दलों के अलग-अलग लड़ने की वजह से बीजेपी को सहयोगियों के साथ राज्य की 80 में से 73 सीटें मिली थीं जबकि सपा पांच और कांग्रेस दो सीटों पर ही जीत पाई थी। बसपा के खाते में एक भी सीट नहीं आई थी। ऐसे नें यही कारण माना जा सकता है कि इस बार सभी विपक्षी दल साथ मिलकर लड़ने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसे में देखना होगा कि 2019 के चुनाव में बीजेपी को इससे कितना लाभ मिलता है।