कांग्रेस के नाराज सांसदों ने लोकसभा से किया वॉक आउट, वेणुगोपाल बोले- आरक्षण समाप्त करना चाहती है बीजेपी
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: February 10, 2020 06:11 PM2020-02-10T18:11:38+5:302020-02-10T18:16:35+5:30
वेणुगोपाल ने आगे कहा कि सदन में सरकार के एक मंत्री ने इसके लिए 2012 की कांग्रेस सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। हम सदन में इसके खिलाफ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव लाएंगे।
कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने सोमवार को संसद भवन में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में बताया कि दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग का आरक्षण समाप्त कर देना चाहती है। भारतीय जनता पार्टी इसी एजेंडे के तहत देश भर के लोगों को गुमराह कर रही है। लेकिन उनकी पार्टी इस मुद्दे को इतनी आसानी से नहीं छोड़ेगी और हर मंच पर उठाएगी। सभी राज्यों के लोगों तक इस बात को पहुंचाने के लिए 16 फरवरी को कांग्रेस एक प्रदर्शन आयोजित करेगी।
वेणुगोपाल ने आगे कहा कि सदन में सरकार के एक मंत्री ने इसके लिए 2012 की कांग्रेस सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। हम सदन में इसके खिलाफ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव लाएंगे। इस बात को लेकर सोमवार को लोकसभा में कांग्रेस और माकपा समेत विपक्षी दलों ने हंगामा भी किया। गहलोत ने कहा- यह केस 2012 में उत्तराखंड सरकार के पदोन्नति में आरक्षण नहीं देने पर सबकी नजरों में आया था और इस दौरान राज्य में कांग्रेस की सरकार थी। इसके बाद कांग्रेस ने कोर्ट के फैसले पर असहमति जताई।
संसद में केन्द्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत द्वारा प्रमोशन को लेकर दिए गए आरक्षण वाले जवाब पर कांग्रेस सांसद नाराज आए। लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने अपनी बात रखने की कोशिश की, लेकिन आसन ने अनुमति नहीं मिलने पर वह और कांग्रेस के अन्य सदस्य सदन से वाकआउट कर गए। वहीं भाकपा ने कहा कि नियुक्तियों और पदोन्नति में उच्चतम न्यायालय की व्यवस्था से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) खुश हो सकता है, लेकिन दलित, आदिवासी और पिछड़ा वर्ग “ मायूस और क्षुब्ध’’ हैं।
न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि राज्य, नियुक्तियों में आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है और पदोन्नति में आरक्षण का दावा करने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है। एक बयान में भाकपा ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 16 के तहत सरकारी नौकरियों के मामले में अवसरों की समानता देना राज्य का दायित्व है।
बयान में पार्टी ने कहा, “ इस अनुच्छेद में ऐसा कुछ नहीं है जो राज्य को किसी भी पिछड़े वर्ग के नागरिकों के लिए नियुक्तियों या पदों में आरक्षण के लिए कोई प्रावधान करने से रोक सकता है, जिसके बारे में राज्य को लगता हो कि राज्य के तहत आने वाली सेवाओं में उसका पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।”