आईडी कानून के प्रावधानों संबंधी मामलों पर सुनवाई दीवानी अदालत का अधिकार क्षेत्र नहीं: न्यायालय

By भाषा | Updated: October 8, 2021 21:07 IST2021-10-08T21:07:24+5:302021-10-08T21:07:24+5:30

Civil court has no jurisdiction to hear matters related to provisions of ID Act: Court | आईडी कानून के प्रावधानों संबंधी मामलों पर सुनवाई दीवानी अदालत का अधिकार क्षेत्र नहीं: न्यायालय

आईडी कानून के प्रावधानों संबंधी मामलों पर सुनवाई दीवानी अदालत का अधिकार क्षेत्र नहीं: न्यायालय

नयी दिल्ली, आठ अक्टूबर उच्चतम न्यायालय ने सेवा समाप्ति के आदेश को चुनौती देने वाले एक व्यक्ति की याचिका खारिज करते हुए शुक्रवार को कहा कि औद्योगिक विवाद (आईडी) कानून के प्रावधानों पर आधारित मुकदमों की सुनवाई करने का अधिकार किसी दीवानी अदालत के पास नहीं है।

न्यायमूर्ति एस सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय की पीठ ने कहा कि दीवानी अदालतों का सेवा मामलों में सीमित अधिकार क्षेत्र हो सकता है, लेकिन अनुशासनिक प्राधिकारी द्वारा पारित आदेशों पर निर्णय लेने का अधिकार उसके पास नहीं हो सकता।

पीठ ने कहा, ‘‘यह न्यायालय (निचली) अदालतों द्वारा प्रतिपादित दृष्टिकोण को स्वीकार नहीं कर सकती और उसका यह मानना है कि दीवानी अदालतों के पास आईडी कानून के प्रावधानों पर आधारित किसी मुकदमे की सुनवाई करने का अधिकार नहीं है।’’

शीर्ष अदालत ने कहा कि उपयुक्त सरकार और औद्योगिक अदालतों सहित आईडीए के तहत निर्दिष्ट प्राधिकारी विभिन्न कार्य करते हैं और आईडी अधिनियम ‘‘सेवा की समाप्ति’’ की व्यापक परिभाषा मुहैया कराता है।

पीठ ने कहा, ‘‘उनका उल्लंघन करने के परिणाम भी आईडी अधिनियम में बताए गए हैं। जब कोई वादी सामान्य कानूनी उपाय का विकल्प चुनता है, तो वह दीवानी अदालत या औद्योगिक मंच चुन सकता है।’’

उसने अपने पूर्व के फैसलों का जिक्र करते हुए कहा कि जब दीवानी अदालत का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है, तो ऐसी कार्यवाही में पारित आदेश की कोई कानूनी ताकत नहीं होती।

पीठ ने कहा, ‘‘जैसा कि रिकॉर्ड में मौजूद सामग्री से देखा जा सकता है, सेवा की समाप्ति को दी गई चुनौती आईडी कानून के प्रावधानों पर आधारित है। ’’

उसने कहा, ‘‘परिणामस्वरूप यह याचिका सुनवाई योग्य नहीं पाई गई और इसे खारिज किया जाता है।’’

पीठ ने कहा कि बर्खास्त कर्मचारी की मुश्किलों को देखते हुए अदालत के आदेश के अनुसार उसे दी गई बकाया राशि वापस नहीं ली जानी चाहिए।

शीर्ष अदालत हिमाचल प्रदेश राज्य बिजली बोर्ड के एक दिहाड़ी कर्मचारी मिल्खी राम की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसकी अस्थायी सेवा को कार्यकारी अभियंता द्वारा जारी आदेश के बाद समाप्त कर दिया गया था।

इस आदेश को दीवानी अदालत में चुनौती दी गई थी। दीवानी अदालत ने कहा था कि मिल्खी ने एक साल में 240 से अधिक दिन सेवाएं दीं और इसलिए वैधानिक अनिवार्यता का अनुपालन किए बिना उनकी सेवा समाप्त नहीं की जा सकती थी। वादी को उसका पिछला बकाया वेतन दिए जाने के साथ ही सेवा में बहाल करने का आदेश दिया गया था। प्रतिवादी को वादी के लिए सेवा के नियमन पर भी विचार करने का आदेश दिया गया था।

बोर्ड ने इस आदेश को जिला न्यायाधीश, धर्मशाला के समक्ष चुनौती दी थी, जिसमें दीवानी अदालत के अधिकार क्षेत्र पर सवाल किया गया था, लेकिन न्यायाधीश ने इसे खारिज कर दिया था। इसके बाद बोर्ड ने सेवा से बर्खास्त किए गए दिहाड़ी श्रमिक को एलडीसी के पद पर नियमित वेतनमान के साथ नियुक्त करने का प्रस्ताव दिया।

नियुक्ति प्रस्ताव का जवाब देते हुए मिल्खी ने विभिन्न शर्तों के साथ नौकरी स्वीकार करने की जानकारी दी, जिस पर प्रबंधन ने कार्रवाई नहीं की। बाद में, उसने दीवानी अदालत के न्यायाधीश (जूनियर डिवीजन) के समक्ष आदेश का पालन किए जाने के लिए आवेदन किया, जिसने बोर्ड को आदेश का पालन करने का निर्णय सुनाया। इस आदेश को बोर्ड ने हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी, जिसने वादी के पक्ष में पारित आदेश को रद्द कर दिया।

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