देश के हर इलाके में अब नक्सली बैकफुट पर, कोबरा के डीआईजी रह चुके जंभोलकर का दावा
By फहीम ख़ान | Published: October 21, 2020 09:52 PM2020-10-21T21:52:52+5:302020-10-21T21:52:52+5:30
केंद्र और राज्य सरकारों की आत्मसमर्पण नीति और नक्सल प्रभावित इलाकों में सुरक्षा बलों द्वारा ग्रामीणों के दिल जीतने के लिए की जा रही कोशिशें हैं.
नागपुरः नक्सलवादियों को धूल चटाने वाली सीआरपीएफ की कोबरा बटालियन के चार साल तक उपमहानिरीक्षक रहे पी. आर. जंभोलकर का कहना है कि किसी समय चरम पर रहने वाला नक्सलवाद अब बैकफुट पर आ गया है.
उनका मानना है कि इसकी मुख्य वजह केंद्र और राज्य सरकारों की आत्मसमर्पण नीति और नक्सल प्रभावित इलाकों में सुरक्षा बलों द्वारा ग्रामीणों के दिल जीतने के लिए की जा रही कोशिशें हैं. ‘लोकमत समाचार’ से बातचीत में उन्होंने कहा कि नक्सल प्रभावित इलाकों में रहने वाले लोग अब ये जान चुके हैं कि नक्सली उनका अबतक सिर्फ इस्तेमाल कर रहे हैं.
सुरक्षा बलों की कोशिशों से ग्रामीणों का नक्सलियों के प्रति सहायता वाला दृष्टिकोण अब बदल चुका है. अब गांव में रहने वाले लोग भी स्कूल, रोड, मोबाइल-इंटरनेट की कनेक्टिविटी चाहते हैं. वे नक्सलियों के बहकावे में भी नहीं आ रहे हैं. इसका सीधा फायदा सुरक्षा बलों को मिल रहा है. अब ज्यादा ताकत के साथ सुरक्षा बल नक्सलियों को जंगलों से खदेड़ने में लगे हैं.
नक्सलवादियों के मुख्य गढ़ भी ढहने लगे
उनका मानना है कि देश में छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा, सुकमा और बीजापुर में जितना नक्सलवाद है, उतना शायद ही कहीं और होगा. लेकिन आज इस इलाके में भी नक्सलियों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. क्योंकि सुरक्षा बल नक्सलियों के इलाकों में काफी भीतर तक घुसकर आपरेशन करने लगे हैं.
विकास की चाहत ने बदली तस्वीर
उनका कहना है कि देश के नक्सल प्रभावित इलाकों में रहने वाले भोले भाले ग्रामीणों को बरगलाकर अबतक नक्सलवादी अपना उल्लू साध रहे थे. लेकिन जब से कनेक्टिविटी बढ़ी है. तब से इन इलाकों में रहने वाले नागरिकों के बीच भी विकास की चाहत तेजी से बढ़ी है. यही कारण है कि लोग विकास की चाहत में नक्सलवादियों को सपोर्ट नहीं कर रहे है. जिसका सीधा फायदा नक्सल विरोधी आॅपरेशन को मिलने लगा है.
नक्सलियों की भर्ती भी हो रही प्रभावित
उन्होंने कहा कि जब से सुदूर इलाकों में रहने वाले नागरिकों में विकास की चाहत जगी है, तभी से नक्सलवादी संगठनों में भर्ती होने वाले युवाओं की संख्या भी तेजी से कम हुई है. अब तो ये आलम है कि नक्सली संगठन नए कैडर के लिए तरसने लगे है. ग्रामीण अपने बच्चों को अब नक्सलियों के पास भेजना नहीं चाहते है. ऐसे में नक्सली संगठन दम तोड़ने लगे है.