छत्तीसगढ़ विधानसभा में हंगामा, न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट लीक करने का आरोप
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: December 2, 2019 04:55 PM2019-12-02T16:55:47+5:302019-12-02T16:55:47+5:30
भाजपा सदस्यों का आरोप है कि 2012 में दक्षिण बस्तर में एक कथित मुठभेड़ की जांच करने वाले न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट को "लीक" किया गया था।
छत्तीसगढ़ विधानसभा में राज्य के मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और सामान्य प्रशासन विभाग के सचिव के खिलाफ विशेषाधिकार हनन करने का सोमवार को आरोप लगाया और इस विषय पर चर्चा कराने की मांग की।
भाजपा सदस्यों का आरोप है कि 2012 में दक्षिण बस्तर में एक कथित मुठभेड़ की जांच करने वाले न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट को "लीक" किया गया था। इस घटना में 17 लोग मारे गए थे। विधानसभा में आज मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने वर्ष 2012 में 28-29 जून की रात को सारकेगुड़ा (बीजापुर जिले) और सिलगेर और चिमलिपेन्टा गांव (पड़ोसी सूकमा जिले) के बीच हुई मुठभेड़ की न्यायिक जांच की रिपोर्ट पेश की।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर सदन की अनदेखी का आरोप लगाते हुए सिंह ने कहा कि यह सदस्यों के विशेषाधिकार का हनन और विधानसभा की अवमानना है। उन्होंने कहा कि इस मामले में बघेल और जीएडी के सचिव के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस दिया है। इस विषय पर चर्चा कराई जानी चाहिए।
इस मुद्दे पर उनका समर्थन करते हुए, विपक्ष के नेता धरमलाल कौशिक के नेतृत्व में अन्य भाजपा विधायकों ने भी विशेषाधिकार हनन के नोटिस पर चर्चा की मांग की। इस बीच कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम ने रिपोर्ट के निष्कर्षों पर चर्चा की मांग की जिसमें कहा गया कि सुरक्षा बलों ने ग्रामीणों पर एकतरफा गोलीबारी की थी। जब आसंदी पर आसीन कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक सत्यनारायण शर्मा ने कार्यसूची के कार्यों को बढ़ाने की कोशिश की तब भाजपा विधायक चर्चा की मांग करते हुए विरोध करने लगे और सरकार विरोधी नारे लगाए।
शर्मा ने कहा कि यह मामला अध्यक्ष के समक्ष विचाराधीन है लेकिन विपक्ष ने हंगामा जारी रखा। हंगामे के कारण पांच मिनट के लिए सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी गई। सदन की कार्यवाही फिर से शुरू होने पर शर्मा ने कहा कि मामला विचाराधीन है। सारकेगुड़ा मुठभेड़ मामले की जांच कर रहे न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट रविवार को सोशल मीडिया में वायरल हो गई थी। मामले की जांच मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति वी के अग्रवाल की अध्यक्षता वाले एक सदस्यीय आयोग ने की।
उल्लेखनीय है 28 जून, 2012 की रात में सीआरपीएफ और छत्तीसगढ़ पुलिस के दल ने बीजापुर जिले के बसागुड़ा थाना क्षेत्र के सारकेगुड़ा में सात नाबालिगों सहित 17 लोगों को मार गिराया था। सुरक्षा बलों ने तब दावा किया था कि माओवादियों की मौजूदगी के बारे में सूचना के आधार पर उन्होंने माओवादियों के खिलाफ कार्रवाई की थी जिसमें नक्सलियों ने भी गोलीबारी की थी। इस घटना के बाद राज्य में भाजपा सरकार ने इसमें न्यायिक जांच के आदेश दिए थे।
रिपोर्ट में निष्कर्ष निकाला गया है कि सुरक्षा बलों ने ग्रामीणों पर गोलियां चलायीं थी जिसमें लोग मारे गए और घायल हुए। इस दौरान ग्रामीण वहां बैठक कर रहे थे और उन्होंने कोई गोलीबारी नहीं की थी। रिपोर्ट के अनुसार सुरक्षा बलों ने घबराहट में गोलीबारी कर दी। वहीं छह सुरक्षाकर्मियों को आपसी गोलीबारी के कारण चोटें आईं।
सुरक्षा बलों ने इसके बाद ग्रामीणों के साथ मारपीट की और अगली सुबह एक व्यक्ति की भी हत्या कर दी। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस घटना की पुलिस जांच में हेराफेरी की गई है। इस बात के सबूत नहीं हैं कि मृतक या घायल ग्रामीणों में से कोई नक्सली था। यह भी जानकारी मिली है कि बैठक में कोई नक्सली मौजूद नहीं था। हांलाकि यह भी संदेह है कि ग्रामीणों ने यह बैठक उत्सव के लिए बुलाई थी।