चंद्रयान-2ः ISRO ने कहा- हमारे द्वारा खड़े होने के लिए धन्यवाद, हम दुनिया भर में भारतीयों की आशाओं और सपनों से प्रेरित होकर आगे बढ़ते रहेंगे!
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: September 17, 2019 08:50 PM2019-09-17T20:50:51+5:302019-09-17T20:50:51+5:30
‘चंद्रयान-2’ के लैंडर ‘विक्रम’ से पुन: संपर्क करने और इसके भीतर बंद रोवर ‘प्रज्ञान’ को बाहर निकालकर चांद की सतह पर चलाने की संभावनाएं हर गुजरते दिन के साथ क्षीण होती जा रही हैं। उल्लेखनीय है कि गत सात सितंबर को ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ की प्रक्रिया के दौरान अंतिम क्षणों में ‘विक्रम’ का जमीनी स्टेशन से संपर्क टूट गया था।
चंद्रयान-2 पर इसरो ने कहा कि हमारे द्वारा खड़े होने के लिए धन्यवाद, हम दुनिया भर में भारतीयों की आशाओं और सपनों से प्रेरित होकर आगे बढ़ते रहेंगे! इसरो ने कहा कि अब मेरे पास सिर्फ चार दिन बचे है। लेकिन उम्मीद पर दुनिया कायम है।
‘चंद्रयान-2’ के लैंडर ‘विक्रम’ से पुन: संपर्क करने और इसके भीतर बंद रोवर ‘प्रज्ञान’ को बाहर निकालकर चांद की सतह पर चलाने की संभावनाएं हर गुजरते दिन के साथ क्षीण होती जा रही हैं। उल्लेखनीय है कि गत सात सितंबर को ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ की प्रक्रिया के दौरान अंतिम क्षणों में ‘विक्रम’ का जमीनी स्टेशन से संपर्क टूट गया था।
यदि यह ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने में सफल रहता तो इसके भीतर से रोवर बाहर निकलता और चांद की सतह पर वैज्ञानिक प्रयोगों को अंजाम देता। लैंडर को चांद की सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ के लिए डिजाइन किया गया था। इसके भीतर बंद रोवर का जीवनकाल एक चंद्र दिवस यानी कि धरती के 14 दिन के बराबर है। सात सितंबर की घटना के बाद से लगभग 10 दिन निकल चुका है व अब इसरो के पास मात्र चार दिन शेष बचा है।
Thank you for standing by us. We will continue to keep going forward — propelled by the hopes and dreams of Indians across the world! pic.twitter.com/vPgEWcwvIa
— ISRO (@isro) September 17, 2019
इसरो, डीआरडीओ ने ‘गगनयान’ मिशन के लिए सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने ‘गगनयान’ परियोजना के लिए मानव केंद्रित प्रणालियां विकसित करने के लिहाज से सहमति पत्र (एमओयू) पर हस्ताक्षर किये।
रक्षा मंत्रालय ने एक विज्ञप्ति में बताया कि डीआरडीओ द्वारा इसरो को मुहैया कराई जाने वाली कुछ महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों में अंतरिक्ष में भोजन संबंधी तकनीक, अंतरिक्ष जाने वाले दल की सेहत पर निगरानी, सर्वाइवल किट, विकिरण मापन और संरक्षण, पैराशूट आदि शामिल हैं।
मानव अंतरिक्ष उड़ान केंद्र (एचएसएफसी) के निदेशक डॉ एस उन्नीकृष्णन नैयर की अध्यक्षता में इसरो के वैज्ञानिकों के एक दल ने यहां डीआरडीओ की विभिन्न प्रयोगशालाओं के साथ करार किये जिनके तहत मानव अंतरिक्ष मिशन से जुड़ी तकनीक तथा मानव केंद्रित प्रणालियां मुहैया कराई जाएंगी।
इस मौके पर डीआरडीओ के अध्यक्ष जी सतीश रेड्डी ने कहा कि रक्षा अनुप्रयोगों के लिए डीआरडीओ की प्रयोगशालाओं की मौजूदा तकनीकी क्षमताओं को इसरो के मानव अंतरिक्ष मिशन की जरूरतों के हिसाब से ढाला जाएगा।
डीआरडीओ वैज्ञानिक और महानिदेशक (जीवन विज्ञान) डॉ ए के सिंह ने कहा कि डीआरडीओ मानव अंतरिक्ष मिशन के लिए इसरो को सभी जरूरी सहयोग मुहैया कराने के लिए प्रतिबद्ध है। इसरो ने 2022 में भारत की स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने से पहले मानव के अंतरिक्ष में पहुंचने की क्षमता प्रदर्शित करने की योजना बनाई है।
चंद्रयान-2 पर बोले नोबेल विजेता वैज्ञानिक-समस्याएं, अप्रत्याशित घटनाएं देती हैं अनुसंधान को धार
नोबेल पुरस्कार विजेता फ्रांसीसी भौतिक विज्ञानी सर्जे हरोशे ने शुक्रवार को कहा कि समस्याएं, हादसे और अप्रत्याशित घटनाएं अनुसंधान को धार देने का काम करती हैं तथा भारत को चांद के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में ऐतिहासिक ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ के प्रयास के दौरान आई खामी के बाद आगे की ओर देखना चाहिए।
वर्ष 2012 में भौतिकी के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले 75 वर्षीय हरोशे 'नोबेल प्राइज सीरीज इंडिया 2019' के लिए भारत में हैं और यह देश में इस तरह की तीसरी श्रृंखला है। फ्रांसीसी वैज्ञानिक ने कहा कि ‘चंद्रयान-2’ मिशन एक बड़ी वैज्ञानिक परियोजना है और इस तरह की परियोजनाओं में आम तौर पर सरकार का काफी योगदान होता है।
उन्होंने कहा, ‘‘यह एक तरह से प्रतिष्ठा से जुड़ी परियोजना है जिसमें आम तौर पर काफी धन खर्च होता है और जब आपको असफलता मिलती है या कोई दुर्घटना होती है तो मीडिया का ध्यान केंद्रित होने के कारण काफी निराशा होती है।’’ भारत के दूसरे चंद्र मिशन के बारे में पूछे जाने पर हरोशे ने कहा, ‘‘जब मैंने अपनी रिसर्च की तो मुझे इसके परिणाम मिलने तक किसी की भी इसमें रुचि नहीं थी...और मुझे लगता है कि इस तरह की समस्याएं, इस तरह के हादसे तथा इस तरह की अप्रत्याशित घटनाएं अनुसंधान को धार देने का ही काम करती हैं।’’
उल्लेखनीय है कि ‘चंद्रयान-2’ के लैंडर ‘विक्रम’ का गत सात सितंबर को चांद की सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ के प्रयास के अंतिम क्षणों में इसरो के जमीनी स्टेशन से संपर्क टूट गया था। उन्होंने कहा कि अनुसंधान के दौरान इस तरह की चीजें आम होती हैं तथा भारत को अब आगे की ओर देखना चाहिए।
फ्रांसीसी वैज्ञानिक ने कहा, ‘‘सवाल यह है कि आगे क्या होगा और यह केवल वैज्ञानिक मुद्दा नहीं है। यह राजनीतिक और वित्तीय मुद्दा है। किसी को देखना होगा कि समस्या कहां थी और फिर से दुरुस्त कर दोबारा कोशिश करें।’’ भारतीय छात्रों से बताचीत के उनके अनुभव के बारे में पूछे जाने पर हरोशे ने कहा, ‘‘वे (भारतीय छात्र) अत्यंत प्रतिभाशाली और ज्ञानी हैं। उन्होंने कई अच्छे सवाल पूछे।’’ यह पूछे जाने पर कि वह भारतीय छात्रों को क्या सलाह देना चाहेंगे, हरोश ने कहा कि यही कि उन्हें हर चीज के बारे में जानने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा, ‘‘सबसे पहले मैं छात्रों से कहना चाहूंगा कि आप वह विषय चुनें जिसके प्रति आपका जुनून है और फिर इस पर आगे बढ़ें।’’