केंद्र का नया प्रस्ताव, एसपी-डीआईजी पद पर सेवा नहीं देने वाले अधिकारियों की केंद्र में नियुक्ति पर लग सकता है आजीवन प्रतिबंध
By विशाल कुमार | Published: April 17, 2022 07:37 AM2022-04-17T07:37:51+5:302022-04-17T07:42:05+5:30
केंद्रीय गृह मंत्रालय एक प्रस्ताव लेकर आया है जिसके तहत आईपीएस के जो अधिकारी एसपी या डीआईजी स्तर पर केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर नहीं आएंगे उनकी नौकरी के बाकी सालों में केंद्रीय नियुक्ति पर रोक लगाई जा सकती है।
नई दिल्ली: सिविल सेवा अधिकारियों की केंद्रीय प्रतिनियुक्त को लेकर केंद्र और राज्य सरकार के बीच चल रहे विवाद के बीच केंद्रीय गृह मंत्रालय एक और ऐसा प्रस्ताव लेकर आया है जो राज्य सरकारों के साथ उसके विवाद को बढ़ा सकता है।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्रीय गृह मंत्रालय एक प्रस्ताव लेकर आया है जिसके तहत भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के जो अधिकारी पुलिस अधीक्षक (एसपी) या उप महानिदेशक (डीआईजी) स्तर पर केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर नहीं आएंगे उनकी नौकरी के बाकी सालों में केंद्रीय नियुक्ति पर रोक लगाई जा सकती है।
इससे पहले केंद्र सरकार ने अखिल भारतीय सेवा नियमों में बदलाव के लिए राज्यों को एक प्रस्ताव भेजा था जिसमें केंद्र सरकार को किसी भी आईएएस, आईपीएस या भारतीय वन सेवा के अधिकारी को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर बुलाने के लिए राज्य की मंजूरी की जरूरत नहीं रह जाएगी।
सूत्रों के अनुसार, विभिन्न केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों और केंद्रीय पुलिस संगठनों में इन दोनों स्तरों पर 50 प्रतिशत से अधिक रिक्तियां हैं। वर्तमान में, नियम कहते हैं कि यदि कोई आईपीएस अधिकारी तीन साल तक केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर महानिरीक्षक (आईजी) स्तर तक नहीं बिताता है, तो उसे केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए पैनल में नहीं रखा जाएगा।
गृह मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि मौजूदा नियमों के चलते ज्यादातर आईपीएस अधिकारी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर आईजी स्तर पर ही आते हैं, जिससे एसपी और डीआईजी स्तर पर भारी कमी हो जाती है।
अधिकांश राज्य केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए एसपी और डीआईजी को राहत नहीं देते क्योंकि उनके पास इन स्तरों पर पर्याप्त रिक्तियां हैं। चूंकि आईजी और उससे ऊपर के स्तर पर कम पद हैं, इसलिए इन अधिकारियों को केंद्र में भेजा जाता है।
आईपीएस अधिकारियों की कमी का कारण क्या है?
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, सूत्रों ने कहा कि तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा अपने लागत में कटौती के उपायों के तहत नए आईपीएस बैचों के आकार को कम करने के फैसले के कारण यह हालात पैदा हुए हैं।
बता दें कि, 80-90 नए अधिकारियों के बैचों को छोटा करके साल 1999-2000 में में आईपीएस अधिकारियों के बैचों को काटकर 35-40 अधिकारियों का कर दिया गया। दूसरी ओर, हर साल औसतन लगभग 85 आईपीएस अधिकारी सेवानिवृत्त होते हैं।
2009 में 4,000 से अधिक आईपीएस अधिकारियों की स्वीकृत संख्या के मुकाबले 1,600 से अधिक रिक्तियां थीं। इसके बाद तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने पहले के नियम को बहाल करके इस गलती को दूर करने की कोशिश की।
इसके कारण साल 2020 में आईपीएस बैचों की संख्या बढ़कर 150 तक पहुंच गई। 1 जनवरी, 2020 तक, 4,982 की स्वीकृत संख्या के मुकाबले 908 रिक्तियां थीं।
इससे पहले, बिहार जैसी एनडीए सरकारों सहित अधिकांश राज्यों ने आईएएस और आईपीएस सेवा नियमों को बदलने के केंद्र के प्रस्ताव की आलोचना करते हुए इसे संविधान के संघीय ढांचे पर हमला बताया था।