जमानत याचिकाओं के लंबित रहने का मामला : उच्चतम न्यायालय का स्वत: संज्ञान मामला पंजीकृत करने का आदेश

By भाषा | Published: October 5, 2021 02:42 PM2021-10-05T14:42:25+5:302021-10-05T14:42:25+5:30

Case of pendency of bail petitions: Supreme Court order to register suo motu case | जमानत याचिकाओं के लंबित रहने का मामला : उच्चतम न्यायालय का स्वत: संज्ञान मामला पंजीकृत करने का आदेश

जमानत याचिकाओं के लंबित रहने का मामला : उच्चतम न्यायालय का स्वत: संज्ञान मामला पंजीकृत करने का आदेश

नयी दिल्ली, पांच अक्टूबर शीर्ष अदालत ने मंगलवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में लंबे समय से लंबित आपराधिक अपीलों के निपटारे के लिए दिशा निर्देश देने पर विचार करने के लिए स्वत: संज्ञानइसका लिया और इस मामले को पंजीकृत करने का आदेश दिया।

न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की पीठ ने कहा कि ऐसा तंत्र होना चाहिए कि अगर कोई आरोपी उच्च न्यायालय जाए तो जमानत अर्जियों को सुनवाई के लिए तत्काल सूचीबद्ध किया जाए।

पीठ ने कहा, ‘‘उच्च न्यायालय (इलाहाबाद) द्वारा एक हलफनामा दायर किया गया जिसमें सरकार के सुझावों को स्वीकार किया गया है। अगर हम इन सुझावों पर गौर करें तो इससे जमानत देने की प्रक्रिया और अधिक बोझिल हो जाएगी। अगर कोई अपील उच्च न्यायालय में लंबित है और दोषी आठ साल से अधिक की सजा काट चुका है तो अपवाद के अलावा ज्यादातर मामलों में जमानत दे दी जाती है। इसके बावजूद मामले विचार के लिए सामने नहीं आते। हमें यह स्पष्ट नहीं है कि जमानत के ऐसे मामलों को सूचीबद्ध करने में कितना वक्त लगता है।’’

शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसे दोषी हो सकते हैं कि जिनके पास जमानत अर्जियां देने के लिए कानूनी सलाह लेने की सुविधा नहीं हो और ऐसी स्थिति में उच्च न्यायालय को उन सभी मामलों पर गौर करना चाहिए जहां आठ साल की सजा काट चुके दोषियों को जमानत दी जा सकती हे।

पीठ ने कहा कि दोषी को पहले उच्च न्यायालय जाना चाहिए ताकि उच्चतम न्यायालय पर अनावश्यक रूप से मामलों का बोझ नहीं बढें। लेकिन कोई तंत्र होना चाहिए कि अगर कोई आरोपी उच्च न्यायालय का रुख करता है तो जमानत याचिका तत्काल सूचीबद्ध की जाए।

उसने कहा, ‘‘कुछ मामले उम्रकैद की सजा के भी हो सकते हैं और ऐसे मामलों में जहां 50 प्रतिशत सजा की अवधि पूरी हो चुकी हो वहां इस आधार पर जमानत दी जा सकती है। हम उच्च न्यायालय को इस संबंध में अपनी नीति रखने के लिए चार हफ्तों का वक्त देते हैं। हम अपने सामने लंबित सभी मामलों पर विचार नहीं करना चाहेंगे।’’

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि उसके समक्ष लंबित मौजूदा जमानत अर्जियों को सुनवाई के लिए उच्च न्यायालय के समक्ष तत्काल रखा जाए। पीठ ने कहा, ‘‘इस मामले पर और गौर करने के लिए आगे के निर्देशों के लिए अदालत के समक्ष एक अलग स्वत: संज्ञान मामला दर्ज किया जा सकता है। हम पंजी को इस संबंध में स्वत: संज्ञान मामला दर्ज करने और 16 नवंबर को इसे अदालत के समक्ष सूचीबद्ध करने का निर्देश देते हैं। हमारे समक्ष जमानत के लिए सूचीबद्ध की गयी अन्य याचिकाओं को उच्च न्यायालय स्थानांतरित किया जाए।’’

सुनवाई की शुरुआत में वरिष्ठ अधिवक्ता विराज दतार ने कहा कि उच्च न्यायालय ने सरकार के सुझावों को स्वीकार कर लिया है।

इससे पहले उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार और इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अधिकारियों को एक साथ बैठने और दोषी व्यक्तियों की अपीलों के लंबित रहने के दौरान जमानत अर्जियों के मामलों के नियमन के लिए संयुक्त रूप से सुझाव देने का निर्देश दिया था।

उच्चतम न्यायालय जघन्य अपराधों में दोषियों की 18 आपराधिक अपीलों पर सुनवाई कर रहा था जिसमें इस आधार पर जमानत मांगी गयी है कि उन्होंने जेल में सात या उससे अधिक साल की सजा काट ली है और उन्हें जमानत दी जाए क्योंकि उनकी दोषसिद्धि के खिलाफ अपीलें लंबित हैं।

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Web Title: Case of pendency of bail petitions: Supreme Court order to register suo motu case

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