Kargil Vijay Diwas - वीरगति पार्ट 5: कारगिल हीरो कैप्टन अनुज नायर, जिस 24 साल के लड़के ने पाकिस्तानियों की घिग्घी बंधवा दी
By भारती द्विवेदी | Published: July 26, 2018 10:08 AM2018-07-26T10:08:18+5:302018-07-26T10:13:04+5:30
kargil Vijay Diwas (Veergati Series): कहते हैं समुद्र तल से 16 हजार फीट ऊंचे इस चोटी से एक पत्थर भी गिरे तो गोली जैसी लगती है।
एक 22 साल का लड़का। जो हाल ही में भारतीय सेना का हिस्सा बना था। सेना का हिस्सा बनने के कुछ समय बाद ही उसे जिम्मेदारी मिली पिंपल टू नाम से मशहूर चोटी प्वाइंट 4875 को दुश्मनों को चंगुल से छुड़ाने का। पिंपल टू की चोटी टाइगर हिल का पश्चिमी इलाका था, जिसकी ऊंचाई लगभग 16 हजार फीट थी। कहते हैं समुद्र तल से 16 हजार फीट ऊंचे इस चोटी से एक पत्थर भी गिरे तो गोली जैसा लगता है। लेकिन उस युवा लड़के ने बिना किसी हवाई मदद के अपने सात सैनिकों के साथ दुश्मन से लोहा लेने के लिए कूच कर दिया था। कारगिल दिवस के मौके बात कारगिल हीरो कैप्टन अनुज नायर की।
उम्र में बेहद छोटे लेकिन जज्बा फौलादों वाली
दिल्ली के रहने वाले शहीद कैप्टन अनुज नायर की तैनाती 17 जाट रेजिमेंट में हुई थी। कारगिल युद्ध छिड़ने के बाद अनुज को चोटी से दुश्मन को खदेड़ने का आदेश मिला, जिसके बाद छह जुलाई को वो अपने सात साथियों के साथ चोटी पर विजय हासिल करने के लिए निकल पड़े। 16 हजार फीट ऊंची चोटी पर पाकिस्तानी सेना ने कई बंकर बना रखे थे। साथ ही उन्हें ऊंचाई पर होने का भी फायदा था। वो नीचे होने वाली हर हरकत पर नजर रख सकता था। लेकिन देशभक्ति के जुनून के आगे सारी ऊंचाई और परेशानियां कम पड़ गई। अनुज ने अपने बटालियन के साथ मिलकर पाकिस्तानी सेना पर हमला बोल दिया।
दुश्मन के गोलियां का सीधा निशाना होने के बाद भी अनुज ने हौसला नहीं हारी थी। उन्होंने अकेले 9 पाकिस्तानी सैनिकों को मारा था। साथ ही तीन मशीनगन बंकरों को उड़ाया था। चौथे बंकर को उड़ाने के दौरान उनपर बम का गोला सीधे आकर गिरा। जिसका बाद अनुज शहीद हो गए। लेकिन शहीद होने से पहले अनुज और उनके साथियों ने पाकिस्तानी सेना की कमर तोड़कर रख दी।
बहादुरी के लिए मिला देश का दूसरा सबसे बड़ा वीरता चक्र
कारगिल युद्ध में शहीद हुए कैप्टन अनुज नायर को उनकी बहादुरी के लिए युद्ध के लिए मिलने वाला दूसरे सबसे बड़े सम्मान से नवाजा गया। अनुज को मरणोपरांत मिलने वाला सम्मान महावीर चक्र से दिया गया। दिल्ली के जनकपुरी में 'कैप्टन अनुज नायर मार्ग' नाम से एक रास्ता है, जो कि उनके नाम पर रखा गया है। दिल्ली विश्वविद्यालय के साउथ कैंपस में भी एक स्टडी हॉल का नाम, कैप्टन अनुज नायर के नाम पर रखा गया है।
बचपन का वो सपना जो टूट गया
अनुज का जन्म 28 अगस्त 1975 को दिल्ली में हुआ था। उनके पिता एसके नायर दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में विजटिंग प्रोफेसर थे औऱ मां मीना नायर साउथ कैंपस की लाइब्रेरी में काम करती थीं। अनुज बचपन से ही पढ़ने-लिखने के अलावा खेलकूद में भी आगे थे। शुरुआती पढ़ाई धौला कुआं स्थित आर्मी पब्लिक स्कूल ऑफ से की थी। फिर वो नेशनल डिफेंस एकेडमी से ग्रेजुएट हुए। साल 1997 में उनका चयन 17 जाट रेजिमेंट में हुई थी। और उस वक्त वो मात्र 22 साल के थे।
अनुज अपनी बचपन की दोस्त से प्यार करते थे और उससे सगाई करना चाहते थे लेकिन उनके छुट्टी से पहले ही भारत-पाकिस्तान के बीच कारगिल वार शुरू हो गई। जंग पर जाने से पहले अनुज ने अपने सीनियर अधिकारी से एक मदद मांगी और उन्हें अपनी जेब से एक अंगूठी निकालकर दिया। अनुज ने वो अंगूठी अपने सीनियर को देते हुए कहा ये मैंने अपनी होने वाली मंगेतर के लिए लिया था। मैं अब युद्ध पर जा रहा हूं, लौटूंगा या नहीं कुछ पता नहीं। मैं नहीं चाहता कि यह अंगूठी दुश्मन के हाथों में आ जाए, इसलिए आपको दे रहा हूं ताकि ये सुरक्षित रहे।
कैप्टन अनुज नायर की कहानी
नोट: लोकमतन्यूज़ अपने पाठकों के लिए एक खास सीरीज़ कर रहा है 'वीरगति'। इस सीरीज के तहत हम अपने पाठकों को रूबरू करायेंगे भारत के ऐसे वीर योद्धाओं से जिन्होंने देश के लिए अपने प्राणों की भी परवाह नहीं की।