कोर्ट ने दिए आदेश, स्पेशल केस में साढ़े सात महीने का गर्भ गिरा सकती हैं महिलाएं
By पल्लवी कुमारी | Published: September 22, 2018 04:15 AM2018-09-22T04:15:12+5:302018-09-22T04:15:12+5:30
गर्भपात कानून के एमटीपी एक्ट के तहत किसी एक डॉक्टर की सलाह पर ही आप 12 हफ्ते तक के भ्रूण का गर्भपात करा सकते थे
मुम्बई, 22 सितम्बर: बंबई उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को 33 वर्षीय एक महिला को गर्भधारण के 30वें हफ्ते में गर्भपात की अनुमति दे दी क्योंकि चिकित्सकीय जांच से पता चला था कि भ्रूण में विकास संबंधी खामियां हैं।
न्यायमूर्ति ए. एस. ओका और न्यायमूर्ति ए. एस. गडकरी की खंडपीठ ने नासिक के एक निजी क्लीनिक में महिला को गर्भपात कराने की अनुमति दे दी। उच्च न्यायालय के निर्देश पर सरकारी जे जे अस्पताल के चिकित्सकों ने महिला की जांच की थी और भ्रूण की स्थिति को देखते हुए अंतिम चरण में गर्भपात की अनुमति प्रदान कर दी। हालांकि सरकार ने महिला के आग्रह का विरोध किया था कि नासिक के क्लीनिक में उसका गर्भपात कराया जाए।
क्या था मामला
दरअसल कुछ महीने पहले 33 वर्षीय एक महिला ने कोर्ट में अर्जी दी थी। महिला का पहले से एक पॉंच साल का बच्चा है, जिसे डॉउन सिंड्रोम है। इसी वजह से महिला और उसके पति ने कोर्ट का रुख कर गर्भपात कराने की अनुमति मांगी थी। उन्होंने कहा है कि वह पहले से ही एक दिव्यांग बच्चे की देखभाल कर रहे हैं और मौजूदा गर्भावस्था को जारी रखने के लिए मजबूर करने पर उन्हें और अधिक शारीरिक एवं भावनात्मक आघात पहुंचेगा। कोर्ट ने उनकी इस अर्जी पर सुनवाई करते हुए, उनके हक में फैसला सुनाया है।
क्या है देश में मौजूदा कानून
गौरतलब है कि गर्भपात कानून के एमटीपी एक्ट के तहत किसी एक डॉक्टर की सलाह पर ही आप 12 हफ्ते तक के भ्रूण का गर्भपात करा सकते थे। 12 से 20 हफ्ते के भ्रूण के लिए दो चिकित्सकों की राय लेना जरूरी होता है। जबकि 20 हफ्ते से अधिक के भ्रूण का गर्भपात कराने की इजाजत नहीं है। मां को फिर गर्भपात कराने की इजाजत तभी मिलती है, जब प्रग्नेंसी को बनाने रखने से मां या फिर होने वाले बच्चे के जिंदगी को खतरा हो।
(समाचार एजेंसी भाषा इनपुट के साथ)