कौन थे कृष्णानंद राय, जिनकी हत्या में शामिल था मुन्ना बजरंगी?
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: July 10, 2018 07:24 AM2018-07-10T07:24:01+5:302018-07-10T08:18:30+5:30
उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले की मोहम्मदाबाद सीट से 2002 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की टिकट पर कृष्णानंद राय ने चुनाव जीता था।
-विभव देव शुक्ल
उत्तर प्रदेश की राजनीति में बाहुबल और अपराध का हमेशा से बोलबाला रहा है। इस राजनीति में एक दौर ऐसा भी रहा है जब प्रत्याशी पर मुकदमों की संख्या उनकी उम्र के बराबर हुआ करती थी। इस फेहरिस्त के सबसे मजबूत दावेदार मुख्तार अंसारी हैं। अंसारी पर चालीस से अधिक आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें हत्या, अपहरण और फिरौती जैसे संगीन मामले भी शामिल हैं। अंसारी पर दर्ज मामलों में एक मामला ऐसा है जिसने पूर्वांचल की राजनीति का माहौल ही बदल कर रख दिया था।
दरअसल, उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले की मोहम्मदाबाद सीट से 2002 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की टिकट पर कृष्णानंद राय ने चुनाव जीता था। इसके बाद ग्रामीण पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखने वाले राय से अंसारी की अदावत बढ़ने लगी और उनका कद बढ़ता देख अंसारी को ये बात हजम नहीं हुई। धीरे-धीरे दोनों में तकरार बढ़ने लगी और क्षेत्र में बालू गिट्टी के निकलने वाले ठेके जंग का कारण बनने लगे।
हालांकि, मुख्तार अंसारी उत्तर प्रदेश की मऊ विधानसभा सीट से पांच बार विधायक चुने गए और बाहुबल के लिहाज से मुख्तार के सामने खड़े होने वाले चेहरे कम ही थे, लेकिन राज्य की राजनीतिक खींचतान ने कब भयानक रूप लिया इसकी भनक ना प्रशासन को लगी और ना ही आम जनता को। दागी और कद्दावर नेताओं के साथ एक खास बात हमेशा से रही है, इनकी बड़ी लड़ाइयां यह खुद नहीं लड़ा करते और ना ही सामने आ कर लड़ते हैं।
उस दौरान राय के करीबी हुआ करते थे बृजेश सिंह, जिन पर 30 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज हैं। हालांकि इनका राजनीतिक किरदार बहुत बड़ा नहीं रहा। ठीक उस समय अंसारी के करीबी हुआ करते थे। मुन्ना बजरंगी जिन पर भी हत्या, अपहरण और फिरौती जैसे गंभीर मामले दर्ज हैं। इन दोनों ने अपने-अपने नेताओं की हर बड़ी लड़ाई में अहम् किरदार निभाया। जब भी राय और अंसारी को जरूरत पड़ी, बृजेश और बजरंगी मौजूद रहे।
पूर्वांचल के दो बाहुबलियों के बीच चली आ रही अदावत से जनता को कुछ भयानक होने का अंदेशा जरूर था बस देर थी तो एक पहल या दोनों बाहुबलियों के आमने-सामने होने की। नब्बे के दशक के अंत से चली आ रही यह अदावत आखिरकार नवम्बर 2005 में पूरी तरह से सामने आ ही गई।
उत्तर प्रदेश की स्पेशल टास्क फोर्स ने कृष्णानंद राय को आगाह किया था। एक समारोह से लौटते हुए कई हथियार बंद लोगों ने कृष्णानंद राय के काफिले पर हमला किया। उनके पास एके-47 और कई ऑटोमैटिक हथियार थे, जिससे राय और उनके कुल छह साथियों की हत्या कर दी गई थी।
पुलिस के मुताबिक, घटनास्थल से सैकड़ों राउंड गोलियों के खोखे बरामद हुए थे। कई दिनों तक राजनीतिक गलियों में इस बात की चर्चा जोर-शोर से हुई कि जब एके-47 जैसे अत्याधुनिक हथियार केवल सेना और देश के चुनिन्दा सुरक्षा एंजेंसियों के पास है ऐसे में कुछ गैंगस्टर के पास यह हथियार कैसे पहुंचे?
अटल बिहारी वाजपायी, लाल कृष्ण आडवाणी, राजनाथ सिंह और कल्याण सिंह जैसे दिग्गज नेताओं ने इस हत्या पर सीबीआई जांच की मांग की थी। इसके अलावा कृष्णानंद राय की पत्नी अलका राय ने जो एफआईआर दर्ज कराई थी उसमें मुख्तार अंसारी, अफजल अंसारी, मुन्ना बजरंगी, अताहर रहमान, संजीव महेश्वरी, फिरदौस, राकेश पाण्डेय आदि का नाम शामिल थे।
कृष्णानंद राय की हत्या के बाद उपचुनाव हुए जिसमें उनकी पत्नी ने चुनाव जीता। उसके बाद जब साल 2007 में विधानसभा चुनाव हुए उसमें मुख्तार अंसारी के भाई सिबगतुल्लाह अंसारी ने जीत दर्ज की। 2012 में अलका राय को टिकट नहीं मिला, लेकिन बीजेपी का प्रत्याशी एक बार फिर हार गया। लेकिन 2017 के विधानसभा चुनावों में अलका राय ने बीजेपी के टिकट पर सिबगतुल्लाह को एक लाख मतों के अंतर से हरा दिया।
पूर्वांचल का राजनीतिक इतिहास ऐसी अनेक घटनाओं से भरा हुआ है और यह कहना गलत नहीं होगा कि यह घटना सबसे बड़ी घटनाओं में से एक है। लम्बे समय से पूर्वांचल की राजनीति ने ऐसा कोई भयावह नजारा नहीं देखा है, लेकिन इसके यह मायने बिल्कुल नहीं हैं कि प्रशासन उसको लेकर एक दम निश्चिन्त रहे। इतना ही नहीं, ऐसे बाहुबलियों को प्रतिनिधित्व देना जनता के लिए अच्छा निर्णय नहीं हो सकता। ऐसे में जनता के लिये बेहद जरूरी हो जाता है कि वह प्रतिनिधियों को चुनने के दौरान कोई गलती ना करें।
(विभव देव शुक्ला लोकमत न्यूज में इंटर्न कर रहे हैं)
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