बिहार की आर्थिक हालत बेहद खस्ता, कर्ज के सहारे चल रही है नीतीश कुमार की सरकार
By एस पी सिन्हा | Published: November 9, 2022 04:50 PM2022-11-09T16:50:30+5:302022-11-09T16:55:06+5:30
बिहार सरकार के पास अपनी क्षमता से राजस्व पैदा करने की संभावना बेहद कम है। मद्य निषेध कानून के लागू होने के बाद से बिहार का राजस्व बेहद तेजी से घटा है। वहीं खनिज संपदा के नाम पर बिहार सरकार के पास मात्र बालू बचा है।
पटना: बिहार में नीतीश सरकार के द्वारा 20 लाख युवाओं को नौकरी देने का भले ही ढिंढोरा पीटा जा रहा हो, लेकिन राज्य की वित्तीय स्थिति का हाल यह हि कि इसे अपनी हर जरूरत को पूरा करने के लिए ऋण लेना पड़ रहा है। जिसके चलते ऋण मद की राशि में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।
वर्ष 2020-21 में राज्य का कुल लोक ऋण 35915 करोड़ रुपये था, जो वर्ष 2022-23 में बढ़कर 40756 करोड़ रुपये हो जाने का अनुमान है। ऐसे में अगर केन्द्र सरकार के द्वारा क्षतिपूर्ति नहीं मिलती है तो लोक ऋण की इस राशि में और बढ़ोतरी हो सकती है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार कोरोना काल के दो वर्षों के दौरान मार्च 2020 से 2022 के बीच में बिहार सरकार ने 55,515 करोड़ रुपए का कर्ज लिया है। जिसमें 2020-21 में 36,297 करोड़ रुपए और 2021-22 में सरकार ने 19,218 करोड़ रुपए का कर्ज लिया था। सूत्रों के अनुसार मार्च 2022 के आखिर तक बिहार सरकार का कुल कर्ज बढ़कर लगभग 2,46,413 करोड़ रुपए से अधिक का हो गया है।
वहीं, 31 मार्च 2021 तक बिहार सरकार का कुल कर्ज बढ़कर 2,27,195 करोड़ रुपए हो गया था, जो मार्च 2020 से 36,297 करोड़ रुपए अधिक है। 31 मार्च 2020 तक सरकार के ऊपर कुल ऋण 1,90,898 करोड़ रुपए था। मौजूदा समय में बिहार की कुल आबादी लगभग 12 करोड़ है। इस हिसाब से देखें तो बिहार के एक नागरिक पर यह कर्ज लगभग 19 हजार रुपए का हो जाता है।
जानकार बताते हैं कि बिहार सरकार की ओर से आंतरिक कर्ज और केंद्र सरकार के माध्यम से विभिन्न परियोजनाओं के लिए कर्ज लिए जाते हैं। फिलहाल सरकार की ओर से बाजार कर्ज, आरबीआई, नाबार्ड, आरआईडीएफ समेत केंद्र सरकार की अन्य एजेंसियों से कर्ज ली गई है। हालांकि राज्य सरकार का दावा है कि यह फिजिकल रिस्पांसिबिलिटी और बजट मैनेजमेंट के तहत निर्धारित कानून के तय दायरे के भीतर है।
इन दो वित्त वर्षों के दौरान राज्यों ने जो लोन लिया था, उसे चुकता करना है। हाल यह है कि राज्य सरकार के आस अपनी आंतरिक संसाधन की बदौलत राजस्व की प्राप्ति बहुत ही कम है। मद्य निषेध कानून लागू होने के बाद राजस्व की प्राप्ति घटी है। वहीं खनिज संपदा के नाम पर राज्य सरकार के पास मात्र बालू बचा है। इसके अलावे कोई उद्योग धंधों से राजस्व की प्राप्ति नहीं ही है।
ऐसे में तंबाकू, सिगरेट, हुक्का, एयरेटेड वॉटर, हाई-एंड मोटरसाइकिल, एयरक्राफ्ट, याट और मोटर व्हीकल्स पर सेस से ही राजस्व की प्राप्ति मात्र उपाय बचा है। यहां उल्लेखनीय है कि जीएसटी लागू होने के बाद राज्यों के पास स्थानीय स्तर पर वस्तुओं और सेवाओं पर अप्रत्यक्ष कर लगाने की शक्ति नहीं रह गई है। ऐसे में बिहार सरकार की आर्थिक हाल बेहाल ही कहा जा सकता है।
इन सबके बीच वित्त मंत्री विजय कुमार चौधरी ने कहा कि राज्य सरकार जीएसटी क्षतिपूर्ति की अवधि अगले पांच साल यानी 2027 तक बढ़ाने की मांग करेगी। क्षतिपूर्ति अवधि नहीं बढ़ाई गई तो बिहार को बड़ा नुकसान होगा और विकास की कई योजनाएं प्रभावित हो सकती हैं।