रस्सी जल गई लेकिन ऐंठन नहीं गई?, 10 सर्कुलर रोड को लेकर सियासत, पिछले 20 साल रह रहे लालू यादव-राबड़ी देवी
By एस पी सिन्हा | Updated: November 27, 2025 16:36 IST2025-11-27T16:35:04+5:302025-11-27T16:36:18+5:30
तेजस्वी ने नीतीश कुमार से जितना कुछ सीखा था सब 2020 के चुनाव में उनके ही खिलाफ लगा दिया। 2022 में फिर तेजस्वी को नीतीश का सानिध्य मिला।

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पटनाः बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के सरकारी बंगले को लेकर राजद और भाजपा में सियासी घमासान छिड़ा हुआ है। सरकार ने विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष राबड़ी देवी को आवास, 10 सर्कुलर रोड को खाली करने का नोटिस दिया है। इस बंगले में राबड़ी देवी के साथ लालू यादव पिछले 20 साल से रहे हैं और यहीं से अपनी पार्टी को चलाते रहे हैं। उन्हें अब 39, हार्डिंग रोड वाला बंगला आवंटित हुआ है। लेकिन राजद पार्टी ने बंगला खाली करने से साफ इनकार कर दिया है। वहीं भाजपा के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि रस्सी जल गई है, लेकिन ऐंठन नहीं गई है।
उन्होंने कहा कि बंगला तो खाली करना पड़ेगा। इस बीच सियासी गलियारों में चर्चा है कि राजद और भाजपा की अदावत काफी पुरानी है और इसकी शुरुआत 1990 से हुई थी। उस वक्त लालू यादव ने रथ यात्रा निकाल रहे लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया था। लालू यादव अक्सर इस घटना का जिक्र करके मुसलमानों को अपने पक्ष में लाते रहे हैं।
वे कहते हैं कि उन्होंने संविधान की रक्षा के लिए कानून के तहत आडवाणी को गिरफ्तार किया था। पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में भी राजद प्रमुख ने पीएम मोदी पर निशाना साधते हुए इस घटना का जिक्र कर दिया था, भाजपाईयों इसे सुनकर उबल जाते हैं। अब भाजपा को मौका मिला है। इस चुनाव में राजद को सिर्फ 25 सीटें मिली हैं।
भाजपा पूरी कोशिश करेगी अब राजद कभी उभर ना पाए। अब भाजपा नियम-कानूनों के तहत ही राबड़ी देवी का बंगला खाली कराने की कोशिश में जुटी है। बता दें कि राजद ने इससे खराब दौर 2010 में देखा था, तब उसे सिर्फ 22 सीटें मिली थीं। उस वक्त सियासी गलियारों में चर्चा थी कि अब राजद समाप्त हो जाएगी।
लेकिन 2015 में नीतीश कुमार ने लालू के साथ ना सिर्फ गठबंधन किया बल्कि उनके दोनों बेटों (तेज प्रताप और तेजस्वी यादव) को सियासत में लॉन्च भी किया। महागठबंधन सरकार में तेजस्वी पहली बार उपमुख्यमंत्री बने और तेजप्रताप मंत्री। नीतीश कुमार के करीब रहकर तेजस्वी ने सियासत के कई दांव-पेंच सीखे। वह ज्यादा कुछ सीख पाते इससे पहले नीतीश कुमार ने एनडीए में वापसी कर ली।
तेजस्वी ने नीतीश कुमार से जितना कुछ सीखा था सब 2020 के चुनाव में उनके ही खिलाफ लगा दिया। 2022 में फिर तेजस्वी को नीतीश का सानिध्य मिला। लेकिन अब इसकी संभावनाएं कम लग रही हैं, क्योंकि इस चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पीएम मोदी पर व्यक्तिगत काफी अभद्र टिप्पणियां की गई थीं। ऐसे में अब एनडीए सरकार अपना हिसाब किताब पूरा करने में जुट गई है।