बिहारः चंपारण से पदयात्रा शुरू करेंगे प्रशांत किशोर, लालू-नीतीश के कार्यकाल पर जमकर बरसे, कांग्रेस के साथ से इंकार नहीं

By एस पी सिन्हा | Published: May 5, 2022 03:53 PM2022-05-05T15:53:34+5:302022-05-05T16:18:38+5:30

चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने बृहस्पतिवार को घोषणा की कि देश के कद्दावर राजनेताओं के लिए पर्दे के पीछे से काम करने के बाद अब वह अपने गृह राज्य बिहार को बदलने के उद्देश्य से समान विचारधारा वाले लोगों का एक मंच बनाने का इरादा रखते हैं.

Bihar Prashant Kishor start padyatra Champaran Lalu yadav-Nitish kumar tenure rained heavily not ruled out with Congress | बिहारः चंपारण से पदयात्रा शुरू करेंगे प्रशांत किशोर, लालू-नीतीश के कार्यकाल पर जमकर बरसे, कांग्रेस के साथ से इंकार नहीं

‘‘बात बिहार की’’ का जिक्र करते हुए कहा कि इसके लॉन्च के तुरंत बाद कोविड 19 महामारी ने दस्तक दे दी थी, जिसने सभी सार्वजनिक गतिविधियों को ठप कर दिया था.

Highlightsबिहार में विकास के लिए काम करेंगे.17500-18000 लोगों की पहचान की गई है.बिहार को बदलने के लिए एक नई सोच और नए प्रयास की जरूरत है.

पटनाः चुनावी रणनीतिकार से अब सियासत में दाव आजमाने जा रहे प्रशांत किशोर ने आज यह घोषणा की है कि वे अभी बिहार में कोई नई पार्टी नहीं बनाने जा रहे हैं और फिलहाल सक्रिय राजनीति से दूर रहकर ही लोगों का नब्ज टटोलने का काम करेंगे.

इसके बाद लोगों ने अगर चाहा तो वह अन्य लोगों के साथ मिलकर राजनीतिक दल बना सकते हैं. उन्‍होंने कहा कि वे अपने सुराज की परिकल्‍पना के तहत बिहार में बदलाव के वाहक बनने की कोशिश करेंगे. बिहार की राजधानी पटना में एक पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए पीके ने 2 अक्टूबर से तीन हजार किलोमीटर की पैदल पदयात्रा करेंगे.

इस दौरान बिहार के जल-जन तक पहुंचकर लोगों से बात करेंगे. उनके सुझावों के आधार पर यदि लोग पार्टी बनाना चाहेंगे तो लोगों के साथ एक ईंट उनकी भी लगेगी. उन्होंने कहा कि बिहार को बदलने की सोच रखने वाले करीब 17-18 हजार लोगों को जोड़ा गया है. वह सभी से चर्चा करेंगे और यदि इनमें से अधिकांश की राय बनती है तो अगले 3-4 महीनों में किसी संगठन या पार्टी का गठन किया जा सकता है.

उन्‍होंने कहा कि फिलहाल वे लोगों से मिलकर अपने जन सुराज की बात समझाएंगे. उन्होंने राज्‍य के लोगों से बदलाव के लिए आगे आने का आह्वान किया. पीके ने  कहा कि वे लोगों का विश्‍वास जीतेंगे. जिन्हें संदेह है, वे उन्‍हें एक मौका दें. उन्होंने कहा कि बिहार को नयी सोच की जरूरत है. 

इस दौरान पीके ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के राज पर एक साथ सवाल खड़ा करते हुए कहा कि बिहार में इन दोनों की सरकार 30 सालों तक रही. फिर भी बिहार विकास के अधिकांश मानकों पर देश में सबसे पीछे है. उन्होंने कहा कि बिहार में विकास के दावे चाहे जो भी किए जाएं, लेकिन हकीकत यह है कि दो बड़े नेताओं ने 30 साल तक के शासन करने के बावजूद बिहार की समस्या का समाधान नहीं किया. लालू जी और उनके समर्थकों का मानना है कि उनके शासन के समय सामा‍जिक न्‍याय का काम हुआ.

वहीं नीतीश जी मुख्यमंत्री हुए तो उनका और उनके समर्थकों का मानना है कि उन्‍होंने आर्थिक विकास और दूसरे सामा‍जिक पहलुओं पर काम किया है, दोनों के दावों में कुछ सच्‍चाई जरूर है. लेकिन यह भी सच है कि विकास के ज्‍यादातर मानकों पर बिहार देश के सबसे निचले पायदान पर है. बिहार में आज भी मूलभूत सुविधाओं की कमी है.

राज्य में शिक्षा और स्वास्थ्य की व्यवस्था ध्वस्त है. राज्य में एक नई व्यवस्था बनाने की जरूरत है. पीके ने कहा कि नीतीश कुमार बिहार में विकास की लंबी चौड़ी बातें करते हैं, लेकिन में आधारभूत विकास को लेकर बिहार के आंकड़े क्या है? यह बात सबको मालूम है. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार के आंकड़ों को देखें तो बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थिति समेत तमाम पैरामीटर की सच्चाई सामने आ जाती है.

उन्होंने कहा कि केंद्र में कोई विपक्षी दलों की सरकार तो बैठी नहीं है. बिहार में जिस गठबंधन की सरकार है वही सरकार केंद्र में हैं और उनके आंकड़ों पर भरोसा किया जा सकता है. लालू और नीतीश दोनों के प्रयासों के बावजूद इनके 30 वर्षों के शासनकाल में बिहार देश का सबसे पिछड़ा राज्‍य बना हुआ है.

उन्‍होंने यह भी कहा कि उनके नीतीश कुमार जी से अच्‍छे संबंध है. लेकिन व्‍यक्तिगत संबंध की बात अलग है. लेकिन यह जरूरी नहीं है कि उनकी बातों या हर कार्य पर सहमति हो. स्थिति यह है कि आज हजारों-लाखों लड़के दूसरे राज्‍यों में जाकर विषम स्थितियों में काम करने को मजबूर हैं.

पीके ने कहा कि अब यदि बिहार को आगे के 10-15 वर्षों में अग्रणी राज्‍य की श्रेणी में आना है तो जिस रास्‍ते पर यह पिछले 15-20 वर्षों से चल रहा है उसे बदलना होगा. उस रास्‍ते पर चलकर विकास नहीं हो सकता. बिहार के लोग जब तक एक साथ नई सोच और प्रयास के पीछे नहीं आएंगे, बिहार की दशा ठीक नहीं हो सकती.

उन्होंने कहा कि अगर उनका लक्ष्य चुनाव लड़ना होता तो वे चुनाव के छह महीने पहले आते और चुनाव लड़ते. उनका लक्ष्य जन सुराज की सोच रखने को साथ लाकर काम करने की है. जो दल बनेगा, वो प्रशांत किशोर के साथ उसमें साथ देनेवाले सबका होगा. बिहार में जाति की राजनीति को लेकर उन्‍होंने आंकड़ों का हवाला देकर कहा कि बिहार में केवल जातीय समीकरण से वोट नहीं पड़ते.

बगर ऐसा होता तो प्रधानमंत्री मोदी को सबसे ज्यादा वोट नहीं मिले होते. अपनी व्‍यवसायिक गतिविधियों को लेकर कहा कि उनकी संस्‍था 'आई पैक' काम करती रहेगी. उसके साथ उनका कोई सीधा वर्किंग रिलेशन नहीं है. आई पैक बेहतर हाथों में है. मैं पूरी तरह से बिहार पर ध्यान केंद्रीत करूंगा.

कांग्रेस के साथ होने के सवाल पर पीके ने कहा कि कांग्रेस को यह तय करने की जरूरत है कि वे आगे कैसे काम करना चाहते हैं. कांग्रेस को किसी प्रशांत किशोर की जरूरत नहीं है. पार्टी के पास कई सक्षम लोग हैं. वे जानते हैं कि उन्हें किस तरह काम करना है.

उन्होंने कहा कि कांग्रेस के साथ उनका मतभेद केवल इतना था कि वह कांग्रेस के पावर्ड एक्शन ग्रुप का सदस्य नहीं बनना चाहते थे, क्योंकि वह समूह कांग्रेस अध्यक्ष के कार्यकारी आदेश के तहत काम करेगा. पीके ने देश की सबसे पुरानी पार्टी में शामिल होने के प्रस्ताव को ठुकराने की बात पर कहा कि "मैंने सोचा कि इस तरह के एक समूह में कोई बड़ा बदलाव लाने की शक्ति नहीं होगी.

मैं कांग्रेस में कुछ भी नहीं जोड सकता था. उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने पार्टी की वर्तमान स्थिति के आकलन पर पूरी गंभीरता दिखाई है. पार्टी ने समितियों का गठन किया. शीर्ष नेतृत्व कई बार मिला, मैंने जो सोंचा और जो मैंने उन्हें बताया. वे उससे पूरी तरह सहमत थे. भविष्य में साथ आने के सवाल पर पीके ने कहा कि तत्काल मैं जन सुराज के मुहिम को आगे बढा रहा हूं, कल क्या होगा यह सबकी सहमति से तय किया जायेगा. इसतरह से पीके ने कांगेस के साथ जाने की संभावना से इंकार नही किया जा सकता है.

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