शौच मुक्त बिहार की खुली पोल, कागजों में हो रही खानापूर्ति

By एस पी सिन्हा | Published: July 11, 2019 07:57 PM2019-07-11T19:57:20+5:302019-07-11T21:08:21+5:30

2 अक्टूबर तक बिहार को खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) बनाने का दावा किया जा रहा है. कई जिले ओडीएफ घोषित भी कर दिए गए हैं. लेकिन यह सच्चाई से कोसों दूर है.

Bihar is yet to be open defecation free, officials making records only on papers | शौच मुक्त बिहार की खुली पोल, कागजों में हो रही खानापूर्ति

तस्वीर का इस्तेमाल केवल प्रतीकात्मक तौर पर किया गया है। (फाइल फोटो)

देशभर में खुले में शौच से मुक्ति के लिए बड़े अभियान चलाए जा रहे हैं और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह सपना है कि 2 अक्टूबर तक पूरा देश खुले में शौच से मुक्त हो. इसी कड़ी में 2 अक्टूबर तक बिहार को खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) बनाने का दावा किया जा रहा है. कई जिले ओडीएफ घोषित भी कर दिए गए हैं. लेकिन यह सच्चाई से कोसों दूर है. सूबे में खुले शौच से मुक्ति की दिशा में हो रहे कार्यों की सुस्ती का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राज्य की राजधानी पटना शहर में ही खुले में शौच के काफी प्रमाण आपको देखने को मिल जाएंगे.

बिहार में जहां राज्य सरकार का मकसद 2 अक्टूबर 2019 यानी महात्मा गांधी की 150वीं जयंती तक राज्य के सभी 38 जिलों को खुले में शौच से मुक्त करने का लक्ष्य हासिल करने का है, तो वहीं राज्य सरकार के संबंधित विभागों का दावा है कि यह लक्ष्य अगले साल मार्च तक ही हासिल कर लिया जाएगा. खुले में शौच से मुक्ति के लिए राष्ट्रीय लक्ष्य की समय सीमा भी 2 अक्टूबर 2019 ही तय की गई है.

स्वच्छ भारत मिशन की वेबसाइट के मुताबिक, ग्रामीण बिहार में फिलहाल शौचालय का कवरेज यानी इसकी पहुंच 99.36 फीसदी है. हालांकि, वेबसाइट पर उपलब्ध कराए गए ताजा आंकड़ों के मुताबिक, पटना के ग्रामीण इलाकों में खुले में शौच से मुक्ति का कवरेज का आंकड़ा सिर्फ 27.40 फीसदी है. पटना शहर में मौजू आर ब्लॉक-दीघा रेलवे लाइन पर बड़े पैमाने पर मल-मूत्र का दिखना काफी आम बात है. यह लाइन राज्य की राजधानी के सचिवालय, फुलवारीशरीफ और दानापुर इलाके से गुजरती है.

यहां तक कि पटना के बाहरी इलाके खगौली यानी राजधानी से सटे दानापुर रेलवे स्टेशन वाले इलाके में झुग्गी बस्तियों में रहने वाले भी मोबाइल शौचालय का इस्तेमाल नहीं करते हैं. उनका इस तरह के शौचालय का इस्तेमाल नही करने की वजह भी बिल्कुल साफ है. खगौल इलाके में दानापुर रेलवे स्टेशन से सटे ओवरब्रिज के पास रहने वाले गणेश राम ने बताया, 'मोबाइल शौचालय से दुर्गंध आती रहती है और इसमें काफी मल भरा होता है. जाहिर तौर पर ऐसी स्थिति में इन शौचालयों का इस्तेमाल करना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन जैसा है.

बिहार में अब तक पांच जिलों-सीतामढ़ी, रोहतास (सासाराम), बेगूसराय, कैमूर (भभुआ) और शेखपुरा को प्रशासन की तरफ से आधिकारिक तौर पर खुले में शौच से मुक्त घोषित किया चुका है. इसके अलावा, राज्य के तकरीबन एक दर्जन अन्य जिलों को भी जल्द खुले में शौच से मुक्त घोषित करने के लिए जोरशोर से प्रयास किए जा रहे हैं. बिहार के उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कुछ दिन पहले पटना में एक कार्यक्रम में कहा था कि राज्य को इस साल बिहार दिवस के आयोजन यानी 22 मार्च 2019 से पहले ही खुले में शौच से मुक्त घोषित कर दिया जाएगा. हालांकि, ताजा आंकड़े इस दावे के बिल्कुल झुठलाते नजर आते हैं. इन आंकड़ों के मुताबिक खुले में शौच से मुक्ति के मामले में राज्य के कुछ जिलों का प्रदर्शन काफी सुस्त था.

स्वच्छ भारत मिशन की वेबसाइट के होम पेज के मुताबिक, अरवल (3.13 प्रतिशत), मधुबनी (5.17 प्रतिशत), अररिया (8.22 प्रतिशत), मधेपुरा (9.44 प्रतिशत), समस्तीपुर (14.90 प्रतिशत) में खुल में शौच से मुक्ति का कवरेज काफी कम है. ऐसे में इस बात को साफ तौर पर खारिज नहीं किया जा सकता कि इन आंकड़ों के कारण पूरे राज्य के ग्रामीण इलाकों में खुले में शौच से मुक्ति को लेकर पेश किया गया 99.36 फीसदी का आंकड़ा संदेह पैदा करता है. अगर हम आंकड़ों की बात करें तो अपनी तरफ से खुले में शौच से मुक्त घोषित किए गए कुल 18,703 गांवों में से सिर्फ 3,413 गांवों की इस संबंध में जांच और पुष्टि हो पाई है. 

बहरहाल, इन आंकड़ों के उलट राज्य के ग्रामीण विकास सचिव अरविंद कुमार चौधरी का दावा है कि राज्य के 19 जिले पहले ही खुले में शौच से मुक्त हो चुके हैं और बाकी 19 जिलों में भी यह काम तकरीबन पूरा होने की स्थिति में है. उनके मुताबिक, बाकी 19 जिलों के अधिकतर इलाके (89 प्रतिशत से लेकर 99 प्रतिशत तक) भी खुले में शौच से मुक्त हो चुके हैं. लेकिन यह जमीनी हकिकत से कोसों दूर नजर आते हैं. शौचालय के निर्माण और उसके भुगतान में एक बड़े खेल की बात भी सामने आने लगी है. इसमें शौचालय के निर्माण और उसके भुगतान के प्रमाण देने की जिम्मेवारी ’जिविका’ नामक संस्था को दी गई है.

कहा जा रहा है कि जिविका के द्वारा प्रत्येक व्यक्ति कुछ अलग से भुगतान लेने के बाद हीं यह प्रमाण दिया जा रहा है. इस बात को भोजपुर जिले के सहार प्रखंड अन्तर्गत कोरनडिहरी पंचायत के पतरिहां गांव के लोग कहते नजर आते हैं. यह केवल एक उदाहरण मात्र है. ऐसे कई गांव हैं जहां शौचालय का निर्माण केवल कागजी तौर पर दिखा दिया जा रहा है. इसमें पैसों का बंदरबांत भी कर दिया जा रहा है. लेकिन जमीनी हकिकत जानने कोई अधिकारी स्थल पर नही जाता है. यहां शायद हीं किसी के यहां काम हुआ हो, जिसने कराया है, वह भी कागजी खानापूर्ति के लिए.

वैसे शौचालयों का निर्माण एक चीज है, जबकि उनका इस्तेमाल अलग मामला है. दरसअल, पिछले कार्यक्रम- निर्मल भारत अभियान के तहत बड़ी संख्या में शौचालयों के निर्माण के बावजूद खुले में शौच की समस्या बदस्तूर जारी है. ऐसे में लोगों का कहना है कि जब तक लोग पूरी तरह से शौचालय का इस्तेमाल करना शुरू नहीं करेंगे, तब तक कुछ नहीं हो सकता. सिर्फ शौचालयों के निर्माण से कुछ नहीं होने वाला है.

बताया जाता है कि तत्कालीन केंद्रीय पेय जल और सफाई मंत्री रमेश चंदप्पा जीगीजीनागी ने बीते साल 27 दिसंबर’18 में लोकसभा में सांसदों को बताया था कि बिहार के 33 जिलों और 21,352 गांवो को अब तक खुले में शौच की समस्या से मुक्त किया जाना बाकी है. पेय जल और सफाई मंत्रालय के सचिव परमेश्वरन अय्यर ने भी अगस्त 2018 में आयोजित एक बैठक में कहा था कि इस मिशन के मामले में बिहार और ओडिशा को लेकर सरकार को चिंता है क्योंकि घरों में शौचालयों के मामले में इन राज्यों का आंकड़ा अब भी तकरीबन 65 फीसदी ही है, जो तय लक्ष्य से काफी दूर है. उन्होंने कहा था कि मिशन में शामिल इन राज्यों के पिछड़े जिले सामाजिक-आर्थिक मापदंडों के मामले में भी सबसे निचले स्तर पर मौजूद हैं.

Web Title: Bihar is yet to be open defecation free, officials making records only on papers

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