बिहार में गुरुकुल परंपरा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सरकार गुरुओं के साथ-साथ शिष्यों को भी देगी मानदेय
By एस पी सिन्हा | Published: June 12, 2022 04:06 PM2022-06-12T16:06:47+5:302022-06-12T16:08:30+5:30
राज्य में गुरुकुल परंपरा के तहत दी जाने वाली शिक्षा के तहत गुरुओं के साथ-साथ संगत करने वाले सहयोगी और शिक्षा ग्रहण करने वाले शिष्यों को भी विभाग की ओर से राशि दी जाएगी।
पटना:बिहार में अब गुरूकुल परंपरा को बढ़ावा दिए जाने की दिशा में पहल की जा रही है। ऐसे में सरकार ने यह निर्णय लिया है कि राज्य में गुरुकुल परंपरा के तहत दी जाने वाली शिक्षा के तहत गुरुओं के साथ-साथ संगत करने वाले सहयोगी और शिक्षा ग्रहण करने वाले शिष्यों को भी विभाग की ओर से राशि दी जाएगी।
इसके तहत गुरुओं को प्रत्येक माह साढ़े सात हजार रुपये, जबकि संगत करने वालों को साढ़े तीन हजार रुपये मासिक मानदेय दिया जाएगा। इसके साथ ही प्रत्येक शिष्य को 1500-1500 रुपये दिए जाएंगे। फिलहाल यह तय नहीं कि इस योजना को कबतक चलाया जायेगा। इस संबंध में राज्य की सांस्कृतिक निदेशक करुणा कुमारी ने बताया कि पूर्वी क्षेत्र सांस्कृतिक परिषद की यह योजना करीब 22 महीने तक चलेगी।
इसी माह जून के तीसरे सप्ताह से इसकी शुरुआत होगी जो मई, 2024 तक जारी रहेगी। गुरुकुल परंपरा के तहत गुरु अपने स्तर से शिष्यों का चयन करेंगे। गुरुकुल की तरह ही गुरु के द्वारा तय की गई जगहों पर शिष्यों को जाकर शिक्षा ग्रहण करनी होगी। हर माह प्रत्येक गुरु को कम से कम 12 सत्र का आयोजन अनिवार्य रूप से करना होगा। इसके साथ ही इसकी रिपोर्ट डाक्यूमेंट रूप में विभाग को भी भेजनी होगी।
निदेशक ने बताया कि विभाग ने इसके लिए तीन गुरुओं को जिम्मेदारी सौंपी है, जो आठ-आठ शिष्यों को संगीत व कला की शिक्षा देंगे। करुणा कुमारी ने बताया कि अभीतक जिन गुरूकुलों को अभी मान्यता प्रदान की गई है, उसमें बेगूसराय के लक्ष्मी प्रसाद यादव बहुरा गोडिन लोक गाथा गायन की शिक्षा देंगे। यह 400 साल पुरानी प्रेम गाथा है, जो बेगूसराय व आसपास के इलाके में प्रचलित है। इसके अलावा समस्तीपुर के रामचंद्र राम बांस शिल्प कला और पटना के मनोरंजन ओझा भोजपुरी लोकगीतों की शिक्षा देंगे।